पंचतंत्र की कथा-06 : पिंगलक का दमनक पर विश्वास
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आप सभी का पंचतंत्र की कहानियों की इस खास श्रृंखला में। आज हम फिर से चलेंगे जंगल की ओर, जहाँ सिंहराज पिंगलक और चतुर गीदड़ दमनक के बीच हो रही है एक दिलचस्प चर्चा। इस कहानी में हम सीखेंगे कि धैर्य और समझदारी कैसे बड़े से बड़े डर का सामना करने में मदद कर सकते हैं। तो आइए, शुरू करते हैं।पिछले विचार के सत्र में हमलोगों ने सियार और ढोल की कथा सुनी थी। आज उसी कथा का विश्लेषण सुनते हैं।
एक दिन पिंगलक, जंगल का राजा, यमुना के तट पर पानी पीने गया था। वहां उसने एक भयंकर गर्जना सुनी, जिससे वह बहुत डर गया और प्यासा ही लौटकर वापस आ गया। जब वह अपने मंडल में बैठा हुआ था, तभी दमनक ने उसे देखा। दमनक ने प्रणाम किया और पिंगलक ने उसे पास बुलाया।
पिंगलक के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। दमनक ने पूछा, “स्वामी, आप पानी पीने गए थे, फिर प्यासे ही लौट क्यों आए?” पिंगलक कुछ हिचकते हुए मुस्कराया और बोला, “कुछ नहीं, बस यूं ही।”
दमनक ने आदरपूर्वक कहा, “स्वामी, यदि यह बताने योग्य नहीं है तो मैं इसे जाने देता हूँ। लेकिन कभी-कभी बड़ी बातें छोटी हो सकती हैं, और उनके पीछे कोई महत्वपूर्ण कारण छिपा हो सकता है।”
यह सुनकर पिंगलक विचार करने लगा और फिर उसने दमनक को अपनी चिंता बताई। उसने कहा, “मैंने तट पर एक भयंकर गर्जना सुनी। ऐसा लगता है जैसे कोई अद्भुत जीव इस जंगल में आया है। उस गर्जना को सुनकर मुझे लगा कि हमें यह जंगल छोड़ देना चाहिए।”
दमनक ने पिंगलक को समझाया, “महाराज, केवल एक आवाज से भयभीत होकर अपना राज्य छोड़ देना उचित नहीं है। जैसे जल से पुल टूट सकता है, वैसे ही रहस्य उजागर होने से शक्ति भी क्षीण हो सकती है। हमें अपने डर का सामना करना चाहिए। आवाजें तो अनेक प्रकार की होती हैं—वेणु, वीणा, मृदंग, ताल, और ढोल जैसी। क्या हर आवाज का मतलब कोई बड़ा खतरा होता है? नहीं। इसलिए सिर्फ एक गर्जना से डरना ठीक नहीं है।”
दमनक ने आगे कहा, “जो राजा विपत्ति में धैर्य नहीं खोता, उसका कभी पराभव नहीं होता। यह धैर्य ही है जो हमें महान बनाता है। जैसे सिंधु (समुद्र) गर्मी में भी बढ़ता रहता है जबकि सरोवर सूख सकते हैं। हमें विपत्ति में धैर्य रखना चाहिए, तभी हम विजयी हो सकते हैं।”
पिंगलक ने पूछा, “तो फिर तुम क्या करना चाहते हो, दमनक?” दमनक ने कहा, “स्वामी, मुझे उस गर्जना का स्रोत जानने दीजिए। मैं वहाँ जाऊँगा और जानूँगा कि वह कौन-सा प्राणी है।”
पिंगलक ने आश्चर्य से पूछा, “तुम सच में वहाँ जाना चाहते हो?” दमनक ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “स्वामी की आज्ञा से योग्य सेवक कहीं भी जाने से नहीं डरता, चाहे उसे सर्प के मुँह में हाथ डालना पड़े या महासागर पार करना पड़े। एक सच्चा सेवक स्वामी की आज्ञा का पालन करने में ही अपना कर्तव्य समझता है।”
पिंगलक ने दमनक को अनुमति दी और उसे सफलता की शुभकामनाएं दीं। दमनक खुशी-खुशी वहां से निकल पड़ा, यह सोचते हुए कि उसे पिंगलक का विश्वास जीतने का एक शानदार मौका मिला है।
यह कथा मित्र भेद से है पिंगलक और दमनक की एक ऐसी बातचीत के बारे में जो हमारे जीवन में धैर्य, सावधानी और विश्वास से जुड़े कई महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है।
तो आइए, इस दिलचस्प कहानी के आगे सुनते हैं।
स्वामी और भृत्य के बीच का रिश्ता सिर्फ आज्ञा पालन का नहीं होता, यह रिश्ता विश्वास और समर्पण का होता है। जो भृत्य स्वामी की आज्ञा को न सम मानता है और न विषम, उसे ही सच्चा सेवक कहा जाता है। ऐसे सेवक को राजाओं को सदा अपने पास रखना चाहिए, विशेषकर तब जब वे ऐश्वर्य और शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।
जंगल के राजा, पिंगलक, अपने पुराने मंत्री दमनक से बात करते हुए कहते हैं, “अगर ऐसा है, तो तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो। जाओ और उस रहस्यमयी गर्जना का पता लगाओ।”
दमनक ने स्वामी को प्रणाम किया और गर्जना के स्रोत की दिशा में चल पड़ा। लेकिन जैसे ही दमनक वहां से चला गया, पिंगलक के मन में चिंता घर कर गई। वह सोचने लगा, “मुझे शायद नहीं करना चाहिए था जो मैंने दमनक पर भरोसा कर अपना भय उसे बताया। आखिरकार, वह अपने अधिकार से वंचित है और कोई भी अपनी खोई हुई शक्ति को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।”
पिंगलक ने अपने मन की बात को और स्पष्ट किया, “जिन्हें पहले राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है और बाद में वे सम्मान से वंचित हो जाते हैं, वे अपने नाश के लिए प्रयास कर सकते हैं, चाहे वे कुलीन ही क्यों न हों। इसलिए, मैं तब तक किसी और स्थान पर जाकर प्रतीक्षा करता हूँ, जब तक यह दमनक वापस नहीं आ जाता। कौन जाने, यह मुझे धोखा देकर शत्रु को साथ लाकर मुझे मारने की योजना बना रहा हो!”
विश्वास का महत्व
पिंगलक ने एक बात स्पष्ट कही, “किसी पर भी विश्वास न करना चाहिए, चाहे वह कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो। दुर्बल भी बलवान से इसलिए नहीं बंधता है क्योंकि वह विश्वास नहीं करता। और जो व्यक्ति अपनी आयु और सुख की कामना करता है, उसे किसी के विश्वास में नहीं जाना चाहिए।”
वह आगे सोचता है, “विश्वास से ही इंद्र ने दिति का गर्भ नाश कर दिया था। यही कारण है कि मैं अन्यत्र जाकर दमनक की प्रतीक्षा करूँगा और देखूँगा कि वह क्या करता है।”
उधर, दमनक संजीवक के पास पहुंचा और उसे देखकर प्रसन्न हो गया। “यह तो बस एक साधारण बैल है,” उसने मन में सोचा। “यह तो बहुत अच्छा हुआ। इस बैल से पिंगलक की संधि या संघर्ष कुछ भी करवा सकता हूँ। इससे पिंगलक मेरे वश में आ जाएगा।”
दमनक सोचने लगा, “राजा मंत्रियों की सलाह पर तभी चलता है जब वह किसी संकट या परेशानी में होता है। और जब राजा संकट में हो, तब ही मंत्री का भाग्य चमकता है। ठीक उसी तरह जैसे स्वस्थ व्यक्ति को वैद्य की आवश्यकता नहीं होती, वैसे ही संकट रहित राजा को मंत्री की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मंत्री चाहते हैं कि राजा किसी संकट में फंसे ताकि उनकी जरूरत बनी रहे।”
हमें यह सिखने को मिलता है कि केवल किसी आवाज या बाहरी संकेत से डरकर अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। जीवन में कई बार हमें ऐसे संकटों का सामना करना पड़ता है जो बाहर से बड़े लगते हैं, लेकिन वास्तव में वे खोखले होते हैं, जैसे गोमायु (गीदड़) ने ढोल के बारे में समझा।
तो दोस्तों, अब तक की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि किसी पर भी बिना सोच-समझे भरोसा करना हमेशा हानिकारक हो सकता है। जीवन में विश्वास महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें समझदारी से और सावधानीपूर्वक इसका उपयोग करना चाहिए। इसी प्रकार, एक सच्चा सेवक वही है जो स्वामी की आज्ञा का पालन निष्ठा से करता है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
आशा करता हूँ आपको आज की कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। जुड़े रहिए हमारे साथ पंचतंत्र की और भी ऐसी ही कहानियों के लिए। धन्यवाद, और सुनते रहिए, सीखते रहिए!