सचेतन 2.72: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – प्रभु राम के लक्षणों और गुणों का वर्णन
आपका सचेतन में स्वागत है विचार का हरेक सत्र यह एक और संस्कृति और धर्म के अद्वितीय किस्सों में से एक है। आज, हम आपको एक बार फिर महान वारदान के रूप में हनुमान और देवी सीता के बीच वार्ता में खुद को डुबोते हैं, जहां हनुमान जी प्रभु राम के शारीरिक लक्षणों और गुणों का वर्णन करते हैं।
हनुमान जी और सीता जी का मिलन अशोक वाटिका में कैसे हुआ उस वृतांत पर हमने विचार किए, हनुमान जी, सीता जी को सुनाने के लिये श्रीराम-कथा का वर्णन किए, हनुमान जी की बात सुनकर विदेह नन्दिनी सीता श्रीरामचन्द्रजी की चर्चा से बहुत प्रसन्न थीं और फिर सीताजी हनुमान जी को देख कर तर्क-वितर्क की। सीता जी ने अपने आप को परिचय कराया और कहा की रावण ने अनुग्रहपूर्वक मेरे जीवन-धारण के लिये दो मास की अवधि निश्चित कर दी है। उन दो महीनों के बाद मुझे अपने प्राणों का परित्याग करना पड़ेगा।
सीताजी के संदेश को सुनकर हनुमानजी दुखी हुए।हनुमान उन्हें संबोधित करके कहा, “देवी, मैं श्रीरामचन्द्रजी का दूत हूँ। उन्होंने आपका हाल-चाल पूछा है। वे सकुशल हैं और आपके भी कुशल पूछ रहे हैं। सीता ने अपने पति और भाई के सुरक्षित होने की खुशी से हनुमान को संदेश दिया। वे भगवान श्रीराम के गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं, “श्रीरामचन्द्रजी सूर्य के समान तेजस्वी और चन्द्रमा के समान मनोहारी हैं। उनके वचन सत्य होते हैं और वे धर्म के परिपालन में निपुण हैं। उनका रूप सुंदर है और वे सबका कल्याण करते हैं।”
हनुमान ने इस प्रकार सीता को आश्वस्त किया। सीता ने हनुमान की शक्ति और वीरता को देखकर आत्म संतुष्टि हुआ और उन्हें धन्यवाद दिया।
वानरश्रेष्ठ हनुमान जी कहते है विदेहराजकुमारी सीता, आप अपने प्रियदेव श्रीराम के और देवर लक्ष्मणजी के शरीर के विषय में जानती हैं भी जो मुझसे पूछ रही हैं, यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है॥
सीताजी ने कहा: मुझे बताओ भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण की आकृति कैसी है? उनका रूप किस तरह का है? उनकी जाँघे और भुजाएँ कैसी हैं?
वानरश्रेष्ठ हनुमान जी: ‘विशाललोचने! श्रीराम और लक्ष्मण के जिन-जिन चिह्नों को मैंने लक्ष्य किया है, उन्हें बताता हूँ मुझसे सुनिये- श्रीरामचन्द्रजी के नेत्र प्रफुल्लकमलदल के समान विशाल एवं सुन्दर हैं। मुख पूर्णिमा के चन्द्रमाके समान मनोहर है। वे जन्मकाल से ही रूप और उदारता आदि गुणों से सम्पन्न हैं॥
सीता जी ने यह सुनकर थोड़ी शांति महसूस की, लेकिन उनके दिल में अभी भी संदेह था। यदि तुम सचमुच श्रीरामचन्द्रजी के दूत हो, तो कृपया मुझे उनके गुणों के विस्तार से बताओ।” सीता ने विश्वास का परीक्षण करते हुए कहा।
सीताजी कहती है की: उनके गुणों के बारे में और सुनाओ।
वानरश्रेष्ठ हनुमान जी बोले: वे तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश और यश में इन्द्र के समान हैं। वे सम्पूर्ण जीव-जगत् के तथा स्वजनों के भी रक्षक हैं। शत्रुओं को संताप देने वाले श्रीराम अपने सदाचार और धर्म की रक्षा करते हैं।
वे राजनीति में पूर्ण शिक्षित, ब्राह्मणों के उपासक, ज्ञानवान्, शीलवान्, विनम्र तथा शत्रुओं को संताप देने में समर्थ हैं॥‘उन्हें यजुर्वेद की भी अच्छी शिक्षा मिली है। वेदवेत्ता विद्वानों ने उनका बड़ा सम्मान किया है। वे चारों वेद, धनुर्वेद और छहों वेदाङ्गों के भी परिनिष्ठित विद्वान् हैं ॥ उनके कंधे मोटे, भुजाएँ बड़ी-बड़ी, गला शङ्ख के समान और मुख सुन्दर है। गले की हँसली मांस से ढकी हुई है तथा नेत्रों में कुछ-कुछ लालिमा है। वे लोगों में ‘श्रीराम’ के नाम से प्रसिद्ध हैं॥ हनुमान की आँखों में भक्ति और प्रेम की किरणें थीं। “देवी, श्रीरामचन्द्रजी सूर्य के समान तेजस्वी हैं, और चन्द्रमा के समान मनोहारी। उनके वचन सत्य होते हैं और वे सभी के कल्याण के लिए प्रयत्नशील हैं।सीता ने हनुमान के वचनों को ध्यान से सुना और अंतर में गहरा विश्वास हुआ। उनका मन अब शांत था, और वे हनुमान की महिमा को समझने लगीं।
सीताजी ने कहा: मुझे अब तुम्हारे शब्दों पर विश्वास हो रहा है। धन्यवाद, हनुमान जी।