सचेतन 230: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण-शक्ति सक्रिय है और इसके कुछ नियम हैं
सचेतन में जब हम सभी ध्यान और प्राणायाम करते वक़्त प्राण की जागरूकता बना कर रखें
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हर एक वस्तु सृष्टि के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए निरन्तर गति एवं क्रिया के साथ स्फुरण रहती है यानी हरेक चीज में हलचल होता है। छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य सभी पिण्ड पदार्थ गतिशील हैं। यह परिवर्तन तो अस्थाई है लेकिन इसका मूल तत्व स्थायी है, जिसका नाम प्राण है।
यह गति और बदलाव ही ताल और रिदम है और वही ताल-इस प्रकृति का नियम है और मानव शरीर में प्राण तत्व इन सभी ताल और रिदम को शक्ति प्रदान करता है। इसी प्राण तत्व के ताल और नियम के कारण हम सभी में चेतना सजीवता, प्रफुल्लता, स्फूर्ति, सक्रियता जैसी शारीरिक विशेषता है जिसके कारण हम उत्तरदायित्व होने के साथ साथ जागृत है।यहाँ तक की मानसिक तरंगें जैसे हमारी मनस्विता, तेजस्विता, चातुर्य, दक्षता, प्रतिभा और हमारी अभिव्यक्ति जैसे हमारी सहृदयता, करुणा, कर्तव्यनिष्ठा, संयमशीलता, तितीक्षा, श्रद्धा, सद्भावना, समस्वरता आदि भी प्राण के द्वारा संचालित होती है और इन सम्वेदनाओं को समझने का अवसर भी इसी से मिलता है।
सचेतन में जब हम सभी ध्यान और प्राणायाम करते वक़्त प्राण की जागरूकता का ज्ञान बना कर रखेंगे तो सारे हमचल, ताल, लय और प्राकृतिक सौंदर्य को देख पायेंगे और इसके आनन्द को महसूस भी कर पायेंगे।
एक उदाहरण ले कर समझें अगर आप सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट को ध्यान से सुनिए तो उस में भी सुन्दर सुमधुर संगीत की स्वर लहरी सुनाई देगा आप उस हलचल से जुड़ रहे हैं तो यही योग है।
लेकिन प्रायः ऐसा होता है की आप इस प्रकृति का सौंदर्य और आनन्द महसूस नहीं कर पाते हैं और आपको इन चिड़ियों की चहचहाहट कोई बेसुरा शोर सुनने जैसा महसूस होने लगता है और आपके अंदर वियोग शुरू हो जाता है।
आप यह भी ध्यान रखें की अगर आप प्रकृति में संव्याप्त प्राण तत्व के लय-ताल के नियमों से अनभिज्ञ होकर भी चल रहे हैं तो भी यह हलचल यह लय और ताल आपके सामने प्रकट ज़रूर होती है। आपका प्राण एक विद्युत करेंट की तरह है, वह जहां भी जिस भी क्षेत्र में, जिस भी स्तर पर है वह प्रकृति के लय-ताल से जुड़ता ज़रूर है और चमत्कार भी करता है। प्रकृति का हरेक लय-ताल आपके शरीर में प्राण के द्वारा प्रवेश करता है और आपके मेमोरी में स्टोर भी रहता है।
हमारी प्राण-शक्ति सक्रिय है और इस सक्रियता का निश्चय ही कुछ नियम है जिस नियम से यह प्राण-शक्ति प्रत्येक चीज में स्फुरणा लता है, लय बनाता है, ताल भी देता है।
वस्तुतः यह प्राणतत्व सर्वत्र नटराज की तरह हरेक वस्तु में निरन्तर नृत्य-निरत करवाता रहता है। इसके नृत्य की हर भंगिमा में लय है, सौंदर्य है, रस है, भाव है, आनन्द है। प्राणों की शक्ति से जो नृत्य आप महसूस करते हैं वही आपका जीवन है। जीवन-शक्ति प्राण-शक्ति का ही दूसरा नाम है।
अध्यात्म शास्त्र में प्राण तत्व की गरिमा का भाव भरा उल्लेख है। प्राण की उपासना का आग्रह किया गया है। इसका तात्पर्य इसी प्राणतत्व की लय-तालबद्धता के नियमों को जानना और उससे लाभ उठाना है।
अपने प्राण को प्रखर, पुष्ट, और संकल्प मय बनाना होगा जिससे आप हर क्रिया में सिद्धि का आधार बना सकते हैं। प्राण को आकर्षित करने में सफलता उन्हें ही मिल सकती हैं, जो इस लय-ताल की विधि को समझते और अपनाते हैं। योगी इसी विधि को जानकर प्राणाकर्षण द्वारा प्राण संवर्धन में समर्थ होते हैं।
अपने प्राण से हुए अनुभवों को साझा करने से आपको स्वान्तः सुख का अनुभव होने लगेगा। सृजनात्मक चिंतन करने के लिए और प्रश्नाकुलता होने के लिए प्राण हमारा साध्य, साधन और माध्यम है।
यह चिंतन ही हमारी वैश्विक दृष्टिकोण को उजागर करता है जो समस्याओं के बदले समाधान को ढूँढता है।