सचेतन, पंचतंत्र की कथा-52 : सौ रुपये की किताब
“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।”
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जब जीत हाँसिल नहीं होती तो हम कहते हैं की, “जीवन में हर किसी का भाग्य उसके कर्मों से बंधा होता है। जो धन मुझे मिलना था, वह किसी और के हाथ से मेरे पास आया है। इसलिए, मैंने जो किया, वह मेरे कर्म का परिणाम है और इसे मेरी नियति ने स्वीकार किया है। देवता भी इसे बदल नहीं सकते।”
कौआ और कछुआ दोनों ही उसकी बात सुनकर विचारमग्न हो गए। हिरण्यक ने आगे कहा, “जीवन में हमें जो भी मिलता है, चाहे वह धन हो, यश हो या ज्ञान, वह सब हमारे पूर्व कर्मों का फल है। इसलिए हमें अपने कर्मों को सावधानीपूर्वक चुनना चाहिए और अपनी नियति का सम्मान करना चाहिए।”
इस प्रकार, हिरण्यक के शब्दों ने कौआ और कछुआ को न केवल धन के पीछे भागने के विषय में नई दृष्टि दी, बल्कि यह भी समझाया कि कैसे हमारे कर्म हमारी दिशा और भाग्य को आकार देते हैं।
किसी शहर में सागर दत्त नाम का एक बनिया रहता था। उसका बेटा एक दुकान से सौ रुपये में एक किताब खरीद कर लाया। उस किताब में लिखा था-
“जो धन मनुष्य को मिलना होता है, वह उसे मिल ही जाता है, देवता भी उसे नहीं रोक सकते। इसलिए मैं न तो दुःखी हूँ और न ही आश्चर्यचकित हूँ, जो मेरा है वह किसी और का नहीं हो सकता।”
सागर दत्त ने अपने बेटे से पूछा, “तुमने इस किताब के लिए कितने पैसे दिए?” उसने उत्तर दिया, “सौ रुपये।” यह सुनकर सागर दत्त ने कहा, “शर्म की बात है! अगर तुम सौ रुपये में सिर्फ एक लाइन खरीदोगे तो तुम कैसे धन कमाओगे? इसलिए आज से तुम मेरे घर में मत आना।” और इस तरह उसने अपने बेटे को घर से निकाल दिया।
दुखी होकर वह लड़का एक दूसरे शहर में चला गया और वहां रहने लगा। कुछ दिनों के बाद, जब लोगों ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आये हो और तुम्हारा नाम क्या है?” तो उसने हमेशा यही जवाब दिया, “मनुष्य जो धन प्राप्त करने वाला होता है, वह पाता है।” इस तरह वह ‘प्राप्तव्यमर्थं’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
एक दिन, एक उत्सव के दौरान, चंद्रवती नाम की एक सुंदर राजकुमारी ने उसे देखा और प्रेम में पड़ गई। उसने अपनी सखी से कहा कि उसे उस लड़के से मिलवाओ। उसकी सखी ने राजकुमारी का संदेश लड़के तक पहुंचाया और कहा कि राजकुमारी उसे देखने के लिए तरस रही है। लड़के ने पूछा कि वह कैसे राजमहल में प्रवेश कर सकता है, तो सखी ने कहा कि रात में वह एक रस्सी के सहारे ऊपर आ सकता है।
रात को वह राजमहल में घुस गया और राजकुमारी ने उसका स्वागत किया। राजकुमारी ने उसे अपना दिल दे दिया और कहा कि वह सिर्फ उसकी है। लेकिन जब उसने उससे पूछा कि वह कौन है, तो लड़के ने सिर्फ यही कहा, “प्राप्तव्यमर्थ लभते मनुष्यः।” यह जानकर कि यह कोई और है, राजकुमारी ने उसे नीचे उतार दिया। वह लड़का एक टूटे-फूटे मंदिर में जाकर सो गया।
एक बार एक दंडपाशक जिसे एक महिला से रिश्ता था, वह उस जगह पर आया जहां पहले से ‘प्राप्तव्यमर्थं’ नाम का व्यक्ति सो रहा था। अपनी बात छिपाने के लिए उसने पूछा, “तुम कौन हो?” उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।” यह सुनकर दंडपाशक ने कहा, “यह मंदिर खाली है, तो तुम मेरी जगह पर जाकर सो जाओ।” इसे मान लेने के बाद वह व्यक्ति दूसरे घर में जाकर सो गया।
उस दंडपाशक की प्रेमिका, जिसका नाम विनयवती था और वह बहुत सुंदर थी, वह दूसरे पुरुष के प्रेम में थी और उसके साथ मिलने उसी जगह पर आई थी। जब वह ‘प्राप्तव्यमर्थं’ को देखी तो रात के अंधेरे में समझी कि वह उसका प्रेमी है और उसके पास आ गई। उसने उसकी खातिरदारी की और उसके साथ विवाह भी किया। फिर पूछा, “अब भी तुम मुझसे साफ साफ क्यों नहीं बोलते?” उसने फिर वही जवाब दिया, “प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।” यह सुनकर उस महिला ने सोचा, “बिना सोचे-समझे जो काम किया जाता है उसका यही परिणाम होता है।” इस विचार से दुखी होकर उसने उसे बाहर निकाल दिया।
जब वह गली में जा रहा था, तब बरकीति नाम का एक विदेशी दूल्हा बैंड-बाजे के साथ वहाँ पहुंचा। विवाह का समय होने पर, सेठ के घर के दरवाजे पर मंडप के नीचे बनिए की लड़की बैठी थी। उसी समय एक हाथी अपने महावत को मारकर और लोगों को घायल करते हुए वहां पहुंच गया। उसे देखकर सारे बराती इधर-उधर भाग गए। तभी उस कन्या ने अकेली देखकर एक व्यक्ति ने कहा, “तू मत डर, मैं तेरा रक्षक हूं।” इस तरह उसने कन्या का हाथ पकड़ा और हाथी को बहादुरी से भगाने में सफल हो गया। बाद में, जब वरकीति वहां पहुंचा, तो उसने देखा कि कन्या किसी और के हाथ में है और उसने अपने ससुर से कहा, “आपने मुझे वचन देने के बाद भी कन्या दूसरे को दे दी, यह गलत है।” उसके पिता ने जवाब दिया, “मैं भी डर के मारे भाग गया था और मुझे नहीं पता यहाँ क्या हुआ।” इस पर कन्या ने कहा, “इसने मेरी जान बचाई है, इसलिए मैं उसके सिवा किसी और का हाथ नहीं पकड़ सकती।” इस तरह उनकी बातचीत में रात बीत गई।