सचेतन- बुद्धचरितम् 28 पच्चीसवाँ सर्ग प्रेम और शांति से विदाई

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सचेतन- बुद्धचरितम् 28 पच्चीसवाँ सर्ग प्रेम और शांति से विदाई

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जब महात्मा बुद्ध ने निर्वाण (मोक्ष) की इच्छा से वैशाली नगर को छोड़ने का निश्चय किया, तब वहां के लोगों का दिल भर आया। लिच्छवि राजा सिंह और नगर के अनेक लोग गहरे दुःख में डूब गए। राजा सिंह ने बहुत विलाप किया, आँखों में आँसू भर आए।

यह क्षण बुद्ध के जीवन का अत्यंत भावुक और सारगर्भित क्षण है — जहाँ एक महान आत्मा संसार से विदा लेने से पहले अंतिम बार अपनी करुणा से भरे मन से विश्व को देखती है। 

बुद्ध की अंतिम विदाई के समय वैशाली को अंतिम दृष्टि

जब भगवान बुद्ध वैशाली से विदा ले रहे थे,
उन्होंने एक बार शांति से पीछे मुड़कर देखा।
फिर बहुत ही मृदु स्वर में बोले:

हे भाई, हे वैशाली!
इस जीवन में अब मैं तुम्हें दोबारा नहीं देख सकूंगा।

यह वाक्य न केवल उनके इस जन्म से विदा लेने का संकेत था,
बल्कि यह भी दर्शाता है कि बुद्ध का हर शब्द, हर दृष्टि, और हर क्षण – सजीव प्रेम और विवेक से भरा हुआ था।

 यह क्षण हमें सिखाता है कि जीवन में प्रत्येक विदाई को भी प्रेम और शांति के साथ स्वीकार करना चाहिए।
जिनसे हम जुड़े होते हैं, उनसे बिछड़ना तय है —
पर अगर वह बिछड़ना भी करुणा और शांति से हो, तो वह भी एक आशीर्वाद बन जाता है।

उन्होंने सभी पीछे आ रहे अनुयायियों को वहीं रुक जाने को कहा और अकेले ही आगे की ओर चल पड़े।

इसके बाद महात्मा बुद्ध भोगवती नगरी पहुँचे। वहाँ कुछ देर रुककर अपने साथियों और अनुयायियों को उपदेश दिया और फिर आगे पावापुरी की ओर बढ़े।

पावापुरी में मल्ल जनों ने बुद्ध का बड़े सम्मान और श्रद्धा से स्वागत किया। इसी नगर में दयानिधि चुन्द नामक व्यक्ति के घर बुद्ध ने अपना अंतिम भोजन किया। भोजन के बाद उन्होंने चुन्द को धर्म से जुड़ा उपदेश दिया और फिर आगे कुशीनगर के लिए प्रस्थान किया।

कुशीनगर पहुँचकर बुद्ध ने हिरण्यवती नदी में स्नान किया। उसके बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनन्द से कहा,
“आनन्द, अब मेरे लिए शयन स्थान (सोने का स्थान) तैयार करो।”

शिष्य ने आज्ञा का पालन किया और एक शांत स्थान पर शयनस्थल रचाया। फिर बुद्ध ने फिर से आनन्द को बुलाया और बोले—
“आनन्द! अब मेरा अंतिम समय आ गया है। मल्ल जनों को इसकी सूचना दे दो, ताकि वे मेरे अंतिम दर्शन कर सकें और बाद में उन्हें कोई पछतावा न हो।”

यह प्रसंग भगवान बुद्ध के अंतिम क्षणों का अत्यंत प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद दृश्य है, जहाँ वे अपने अंतिम उपदेश के माध्यम से जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं। 

बुद्ध का अंतिम उपदेश भी जीवन की सच्ची राह के लिए था 

जब आनन्द ने भगवान बुद्ध के शरीर त्यागने का समाचार मल्लों (स्थानीय लोगों) तक पहुँचाया,
तो वे सभी श्रद्धा और प्रेम से भरकर बुद्ध के दर्शन करने आए।

बुद्ध ने उन्हें स्नेहपूर्वक देखा और अपने अंतिम उपदेश में कहा:

“आलस्य छोड़ो।
धर्म का पालन करो।
विनय (विनम्रता) और अनुशासन से जीवन जियो।”

यह उपदेश संक्षिप्त होते हुए भी बहुत गहरा था।

 बुद्ध यह समझा रहे थे कि जीवन में सच्ची सफलता और शांति पाने के लिए:

  • आलसी नहीं बनो,
  • धर्म यानी सच्चाई, करुणा और कर्तव्य का पालन करो,
  • और विनम्रता व अनुशासन से अपना जीवन सार्थक बनाओ।

बुद्ध की वाणी सुनकर मल्लजन गहरे भाव में डूब गए। वे दुखी मन से, लेकिन ज्ञान और प्रेरणा से भरकर अपने घरों को लौट गए।

यह था वह मार्मिक क्षण, जब महात्मा बुद्ध अपने जीवन की अंतिम यात्रा की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन जाते-जाते भी उन्होंने मानवता को धर्म, करुणा और अनुशासन का संदेश दे दिया।

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