सचेतन 2.110 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी का लंका में प्रवेश
हनुमान जी की लंका यात्रा का वृत्तांत
हनुमान जी की लंका यात्रा का अद्भुत और प्रेरणादायक वृत्तांत का एक प्रारंभिक भाग कल हमें सुना था। । नमस्कार और स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में। आज हम सुनेंगे हनुमान जी की लंका यात्रा का रोमांचक वृत्तांत में लंका में प्रवेश, जो उन्होंने जाम्बवान के पूछने पर सुनाया। चलिए, शुरू करते हैं।
सूर्यदेव के अस्ताचल में जाने के बाद हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया। लंका में प्रवेश करते ही काली कान्तिवाली एक स्त्री अट्टहास करती हुई उनके सामने खड़ी हो गई। उसके सिर के बाल प्रज्वलित अग्नि के समान दिखते थे। वह हनुमान जी को मार डालना चाहती थी। वह बोली, वीर! मैं साक्षात् लङ्कापुरी हूँ। तुमने अपने पराक्रम से मुझे जीत लिया है, इसलिए तुम समस्त राक्षसों पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर लोगे।
अब सीता जी की खोज
हनुमान जी ने पूरी रात लंका में घर-घर घूमकर सीता जी की खोज की। रावण के महल में प्रवेश करने पर भी उन्हें सीता जी का दर्शन नहीं हुआ। शोक में डूबे हनुमान जी ने एक उत्तम गृहोद्यान देखा। वहाँ उन्हें एक अशोक-वृक्ष के पास सीता जी का दर्शन हुआ।
श्रीरामपत्नी सीता जी उपवास करने के कारण अत्यन्त दुर्बल हो चुकी थीं। उनके केश धूल से धूसर हो गए थे। वे राक्षसियों से घिरी हुई थीं, जो उन्हें बारम्बार धमका रही थीं। हनुमान जी ने उन्हें अशोक-वृक्ष के नीचे बैठा देखा और वहीं से निहारने लगे। इतने में रावण के महल से करधनी और नूपुरों की झनकार के साथ एक गम्भीर कोलाहल सुनाई पड़ा।
सीता का संदेश
रावण के महल में, सीता माता की रक्षा के लिए हनुमान जी अपने स्वरूप को समेट कर, एक छोटे पक्षी की तरह अशोक वृक्ष में छिपे बैठे थे। इतने में रावण की स्त्रियाँ और स्वयं रावण उस स्थान पर आ पहुँचे, जहाँ सीता माता विराजमान थीं।
रावण का आना और सीता का भयभीत होना- जैसे ही राक्षसों के स्वामी रावण ने सीता माता को देखा, वे अत्यन्त भयभीत हो गईं। उन्होंने अपनी जाँघों को सिकोड़ लिया और अपने उभरे हुए दोनों स्तनों को भुजाओं से ढककर बैठ गईं। अत्यन्त भयभीत और उद्विग्न होकर सीता इधर-उधर देखने लगीं, लेकिन उन्हें कोई भी रक्षक नहीं दिखाई दिया।
रावण: (उदास स्वर में बोलता है) “विदेहकुमारी! मैं तुम्हारा सेवक हूँ। तुम मुझे अधिक आदर दो।”
फिर रावण का क्रोधित हो जाता है सीता के उपेक्षा देख, रावण कुपित होकर बोला:
“गर्वीली सीते! यदि तू घमंड में आकर मेरा अभिनन्दन नहीं करेगी तो आज से दो महीने के बाद मैं तेरा खून पी जाऊँगा।”
सीता: (क्रोधित स्वर में) “नीच निशाचर! अमित तेजस्वी भगवान् श्रीराम की पत्नी और इक्ष्वाकुकुल के स्वामी महाराज दशरथ की पुत्रवधू से यह न कहने योग्य बात कहते समय तेरी जीभ क्यों नहीं गिर गयी? दुष्ट पापी! तुझमें क्या पराक्रम है? मेरे पतिदेव जब निकट नहीं थे, तब तू उन महात्मा की दृष्टि से छिपकर चोरी-चोरी मुझे हर लाया।”
रावण का क्रोधित होना और मंदोदरी का रोकना- सीता माता की कठोर बात सुनकर, रावण आग की भांति क्रोधित हो गया। उसने अपनी क्रूर आँखें फाड़ते हुए सीता को मारने के लिए हाथ उठाया। यह देख, वहाँ खड़ी स्त्रियाँ हाहाकार करने लगीं। इतने में, रावण की भार्या मंदोदरी ने उसे रोक लिया और कहा: “महेन्द्र के समान पराक्रमी राक्षसराज! सीता से तुम्हें क्या काम है? आज मेरे साथ रमण करो। जनकनन्दिनी सीता मुझसे अधिक सुन्दरी नहीं है।”
राक्षसियों का सीता को डराना
मंदोदरी और अन्य स्त्रियों ने रावण को वहाँ से उठा लिया और अपने महल में ले गईं। रावण के जाने के बाद, विकराल मुखवाली राक्षसियाँ सीता को डराने-धमकाने लगीं। लेकिन सीता माता ने उनकी बातों को तिनके के समान तुच्छ समझा। राक्षसियों ने सीता का निर्णय रावण को जाकर सुना दिया और खुद हताश होकर सो गईं।
त्रिजटा: “अरी! तुम सब अपने-आपको ही जल्दी-जल्दी खा जाओ, कजरारे नेत्रोंवाली सीता को नहीं; ये राजा दशरथ की पुत्रवधू और जनक की लाड़ली सतीसाध्वी सीता इस योग्य नहीं हैं। आज मैंने बड़ा भयंकर स्वप्न देखा है; वह राक्षसों के विनाश और सीता के पति की विजय का सूचक है।”
सीता का संदेश और हनुमान का विचार
त्रिजटा की बात सुनकर सीता माता ने कहा: “यदि यह बात सच होगी तो मैं अवश्य तुमलोगों की रक्षा करूँगी।”
कुछ विश्राम के बाद, हनुमान जी सीता माता के पास गए और उनसे बातचीत करने का उपाय सोचा। उन्होंने इक्ष्वाकुवंश और श्रीराम की प्रशंसा की, जिसे सुनकर सीता माता के नेत्रों में आँसू भर आए।”कपिश्रेष्ठ! तुम कौन हो? किसने तुम्हें भेजा है? यहाँ कैसे आये हो? और भगवान् श्रीराम के साथ तुम्हारा कैसा प्रेम है? यह सब मुझे बताओ।”
हनुमान जी कहते हैं “देवि! तुम्हारे पतिदेव श्रीराम के सहायक वानरराज सुग्रीव हैं। मेरा नाम हनुमान है। श्रीराम ने मुझे यहाँ भेजा है। यह अंगूठी पहचान के लिए श्रीराम ने दी है। बताओ, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?”
सीता ने कहा “मेरी इच्छा है कि श्रीरघुनाथजी रावण का संहार करके मुझे यहाँ से ले चलें। यह चूडामणि ले जाओ, और श्रीराम को मेरा सारा वृत्तान्त सुनाना।”
सीता माता का यह करुणाजनक वचन सुनकर, हनुमान जी ने प्रणाम किया और उनके संदेश को श्रीराम तक पहुँचाने के लिए तत्पर हो गए। उन्होंने सीता के चारों ओर परिक्रमा की और उनके उत्तर को ध्यान से सुना।
दोस्तों, यह थी सीता माता और हनुमान जी की कहानी। इस प्रेरणादायक कथा में हमने देखा कि कैसे हनुमान जी ने अपने साहस और बल से सीता माता का संदेश श्रीराम तक पहुँचाया। आशा है, आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे। तब तक के लिए, नमस्ते।
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