सचेतन, पंचतंत्र की कथा-32 : बंदर और गौरैया की कथा

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नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” के इस खास एपिसोड में, जहाँ हम पंचतंत्र की एक और रोचक कहानी लेकर आए हैं। आज की कहानी है, “बंदर और गौरैया।”

किसी जंगल में एक शमी के वृक्ष की एक डाल पर गौरय्या का एक जोड़ा अपना घोंसला बनाकर सुखपूर्वक रहता था। एक दिन ठंडी हवाओं के साथ हेमंत ऋतु की बारिश होने लगी। उसी समय एक बंदर, जो ठंड से कांप रहा था और अपने दांतों की ठक-ठक कर वीणा बजा रहा था, उस शमी के वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। वह बारिश और ठंड से बहुत परेशान था।

उसे इस हालत में देखकर गौरय्या ने कहा, “तू हाथ-पैर वाला है और इंसान जैसा दिखता है, फिर भी ठंड में यूं परेशान है। अरे मूर्ख! तूने अब तक अपना घर क्यों नहीं बनाया?” गौरय्या की यह बात सुनकर बंदर गुस्से से भड़क उठा और बोला, “तू चुप क्यों नहीं रहती? तेरी यह हिम्मत कैसे हुई कि मेरी स्थिति पर हंसी उड़ाए? यह पंडित जैसी बातें करने वाली और बेहूदा बातें बकने वाली तुम क्या सोचती है? इसे तो मैं अब सबक सिखाऊंगा!”

इस प्रकार सोच-विचार करने के बाद बंदर ने कहा, “अरे मूर्ख! तुझे मेरी चिंता करने की क्या जरूरत है? कहा गया है कि ‘श्रद्धा रखने वाले और पूछने वाले से ही कुछ कहना चाहिए। अश्रद्धालु को कुछ समझाना ऐसे ही है जैसे जंगल में रोना।'”

इसके बाद बंदर पेड़ पर चढ़ गया और उस गौरैया के घोंसले को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। उसने उसके घोंसले के सौ टुकड़े कर दिए। इसलिए कहा गया है कि “मूर्खों को उपदेश नहीं देना चाहिए। देखो, इस मूर्ख बंदर ने एक अच्छे घर वाले को बेघर कर दिया। मूर्ख! मैंने तुझे शिक्षा दी, लेकिन मेरी बात तुझे समझ नहीं आएगी। इसमें तेरा कोई दोष नहीं है, क्योंकि शिक्षा सज्जनों के लिए लाभकारी होती है, दुर्जनों के लिए नहीं।”

कहा गया है, “अंधकार से भरे हुए घड़े में रखे दीपक की तरह, अयोग्य व्यक्ति को दिया गया ज्ञान या पांडित्य किसी काम का नहीं होता।” तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग सही समय और व्यक्ति के लिए करना चाहिए। मूर्ख को उपदेश देना न सिर्फ व्यर्थ है, बल्कि आपके लिए भी हानिकारक हो सकता है।

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