सचेतन, पंचतंत्र की कथा-36 : बगला, सांप और केकड़े की कहानी

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नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” के नए एपिसोड में। पिछले एपिसोड में हमने धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कहानी सुनी, जिसमें हमने सीखा कि बिना सोचे-समझे उठाए गए कदम विनाशकारी हो सकते हैं। आज की कहानी भी एक ऐसी ही सीख देती है, जहां एक बगले ने अपनी मूर्खता से अपने पूरे परिवार का नाश कर लिया।

एक जंगल में बगलों से भरा हुआ एक बड़ा बड़ का पेड़ था। उस पेड़ के खोखले में एक काला सांप रहता था, जो पेड़ पर रहने वाले बगलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था। अपने बच्चों को खोने के दुःख से परेशान एक बगला तालाब के किनारे बैठकर आंसू बहा रहा था। यह देखकर एक केकड़ा उसके पास आया और बोला, “मामा! तुम क्यों रो रहे हो?” बगले ने जवाब दिया, “भाई, क्या करूं? पेड़ के खोखले में रहने वाला सांप मेरे बच्चों को खा गया है। अगर इसे मारने का कोई उपाय हो, तो मुझे बताओ।”

केकड़ा सोचने लगा, “यह बगला तो हमारा स्वाभाविक शत्रु है। क्यों न इसे ऐसा उपाय बताऊं, जिससे न केवल सांप मरे, बल्कि इसका पूरा परिवार भी नष्ट हो जाए।” उसने बगले से कहा, “मामा, तुम मछली के मांस के टुकड़े सांप के बिल से लेकर नेवले के बिल तक बिछा दो। नेवला मांस खाते-खाते सांप के बिल तक पहुंच जाएगा और उसे मार डालेगा।”

बगले ने केकड़े की सलाह मान ली और मांस के टुकड़े बिछा दिए। नेवला मांस खाते-खाते सांप के बिल तक पहुंचा और सांप को मार डाला। लेकिन इसके बाद नेवले ने उसी पेड़ पर रहने वाले सभी बगलों को भी धीरे-धीरे मारकर खा लिया।

कहानी की सीख: सोच-समझकर उठाएं कदम

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बिना सोचे-समझे किसी से मदद मांगने का परिणाम विनाशकारी हो सकता है। शत्रु को जब भी कोई सलाह दी जाए, तो वह ऐसी होनी चाहिए जो उसके पूरे वंश का नाश कर दे। परंतु, बगले ने मूर्खता में यह समझने की कोशिश नहीं की कि केकड़ा उसका शुभचिंतक नहीं है।

ठीक ही कहा गया है कि, “अगर मूर्ख मोर बादल गरजने पर नाचना न शुरू करें, तो उनके छुपे हुए दोषों को कौन देख सकता है?” मूर्खता और लालच हमेशा नुकसानदायक होती है।

तो दोस्तों, यही था आज का एपिसोड। उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगली बार एक और नई और प्रेरणादायक कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।

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