सचेतन, पंचतंत्र की कथा-62 : बुद्धिमान को मित्र बनाओ

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-62 : बुद्धिमान को मित्र बनाओ

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पूर्व की कथा के माध्यम से हमने बड़ी सुंदरता से मित्रता, विश्वास, संकटों का सामना, और जीवन की अनित्यता के विषयों को उजागर किया है। मंथरक, हिरण्यक, और लघुपतनक के माध्यम से जो मित्रता और सहयोग की भावना दिखाई गई है, वह हमें बताती है कि किस प्रकार सच्चे मित्र हमेशा एक-दूसरे के लिए वहाँ होते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह भी दर्शाया गया है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करते समय, हमें अपनी आंतरिक शक्ति और धैर्य को मजबूत करने की आवश्यकता होती है।

इस कहानी के अंत में, हिरण्यक के शब्द यह बताते हैं कि जीवन में सब कुछ क्षणिक है और हमें हमेशा आशावादी रहते हुए, स्थितियों को स्वीकार करना सीखना चाहिए। यह जीवन की गहराई और उसकी चुनौतियों के प्रति एक व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो हमें व्यक्तिगत रूप से और सामाजिक रूप से अधिक सक्षम बनाता है।

कहा गया है: “एक आघात पर दूसरे आघात लगते हैं, धन की कमी से भूख बढ़ती है, आपदाओं में विरोध उत्पन्न होता है और जहां कमजोरी होती है, वहां अनेक समस्याएँ जन्म लेती हैं।” यह विचार जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों के बारे में एक गहरा सच बयान करता है। यह कहावत हमें सिखाती है कि जीवन में समस्याएं अक्सर एक के बाद एक आती हैं, और जब एक बार कमजोरी का पता चल जाता है, तो उसे और भी अधिक चुनौतियाँ और विपत्तियाँ घेर लेती हैं। इस तरह के विचार जीवन की अनिश्चितताओं और उनके प्रबंधन के तरीकों को समझने में मदद करते हैं।लोग अपनी स्थितियों का मुकाबला करने और अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते हैं।

किसी ने ठीक ही कहा है: “जब भय आता है, तो रक्षा और प्रेम का सहारा कहाँ मिलता है? ‘मित्र’ ये दो अक्षर ही असली रत्न हैं, इसे किसने बनाया होगा?” यह विचार भावनात्मक सुरक्षा और मित्रता के महत्व को गहराई से छूता है। जब व्यक्ति डर या अनिश्चितता का सामना करते हैं, तब मित्रों का समर्थन और प्रेम उनके लिए एक बड़ा सहारा बन जाता है। इस विचार में ‘मित्र’ शब्द को एक अमूल्य रत्न के रूप में देखा गया है, जो दिखाता है कि सच्चे दोस्त कितने अनमोल होते हैं। मित्रता वह बल है जो भय के क्षणों में भी आश्वासन और साहस प्रदान करता है। ‘मित्र’ ये दो अक्षर न केवल एक शब्द हैं बल्कि वे उन सभी गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हमें जीवन में सुरक्षित और समर्थ महसूस कराते हैं। 

इसी बीच, चित्रांग और लघुपतनक आँसू बहाते हुए वहाँ आए। हिरण्यक ने उनसे कहा, “हे! व्यर्थ में रोने से क्या लाभ? जब तक मंथरक दृष्टि से ओझल न हो जाए, तब तक उसे छुड़ाने के उपाय सोचने चाहिए।” हिरण्यक की इस सलाह में व्यवहारिकता और तत्परता का भाव झलकता है, जो दिखाता है कि कठिन समय में आवेगों को नियंत्रित करना और व्यावहारिक समाधान की ओर ध्यान केंद्रित करना कितना महत्वपूर्ण है। यह उनके चरित्र की गहराई और समझ को भी दर्शाता है, जिसमें वह भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के बजाय सार्थक कार्य करने पर जोर देते हैं।

हिरण्यक की यह सलाह हम सभी के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकती है जो चुनौतियों और संकटों का सामना कर रहे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि किसी भी समस्या का समाधान खोजने के लिए संयम और धैर्य रखना कितना जरूरी है। नीतिशास्त्र कहता है: “दुःख आने पर जो व्यक्ति केवल विलाप करता है, वह अपने आंसुओं को बढ़ाता है, परंतु दुख से पार नहीं पा सकता। आपत्ति का मुकाबला करने और विषाद को त्यागने का प्रयास ही उपयुक्त उपाय है।” 

“अतीत के लाभ की रक्षा, भविष्य के लाभ की प्राप्ति, और आपत्ति में फंसे हुए को बचाने के लिए जो सलाह दी जाती है, वही सबसे अच्छी सलाह है।” यह बात जीवन में संतुलन और प्राथमिकताओं को स्थापित करने के महत्व को दर्शाता है। यह बताता है कि अच्छी सलाह वह होती है जो न केवल वर्तमान की सुरक्षा करती है बल्कि भविष्य के लाभ को भी ध्यान में रखती है, और साथ ही उन्हें भी मार्गदर्शन प्रदान करती है जो आपत्ति में फंसे होते हैं। 

यह सुनकर कौए ने कहा, “अगर ऐसा है, तो मेरी बात मानो। शिकारी के रास्ते में चलो और किसी तालाब को ढूंढते हैं, जहां चित्रांग बेहोश होकर पड़ जाएगा और मैं उसके माथे पर बैठकर चोंच से हल्की चोटें लगाकर उसका सिर खोदूंगा, जिससे शिकारी सोचेगा कि वह मर गया है और मंथरक को छोड़ देगा। उसी समय तुम दर्भ के बंधन को काट देना, जिससे मंथरक जल्दी से तालाब में छलांग लगा सके।”

चित्रांग ने कहा, “तुमने बहुत सुंदर योजना बनाई है। निश्चित ही अब मंथरक को छुट्टा हुआ माना जा सकता है।” “सभी प्राणियों के कार्यों का परिणाम तो हमारा मन पहले ही बता देता है कि काम पूरा होगा या नहीं। यह बात सिर्फ बुद्धिमान व्यक्ति ही समझ सकते हैं। इसलिए तुम भी यही करो।”

शिकारी जंगल में तालाब के पास एक कौए और चित्रांग को देखकर खुश हो गया। उसने सोचा, “यह हिरन जिसे थोड़ी जिंदगी बची थी, अब फंदे के दर्द से मर गया है। और यह कछुआ, जो मजबूती से बंधा है, वो मेरे वश में है। अब मैं इस हिरन को भी पकड़ लूंगा।” ऐसा सोचकर वह हिरन की तरफ दौड़ा। तभी हिरण्यक ने अपने मजबूत दांतों से रस्सी काट दी और छूटकर भाग गया, और मंथरक भी झाड़ियों से निकलकर तालाब में घुस गया। चित्रांग ने भी शिकारी के आने से पहले ही कौए के साथ दूर भाग गया।

जब शिकारी ने पीछे मुड़कर देखा, तो कछुआ भी गायब था। निराश होकर उसने यह बोला की: “एक बड़ा हिरन मेरे जाल में फंस गया था, तुमने उसे भी छुड़ा लिया; फिर कछुआ मिला, वह भी तेरे आदेश से चला गया। मैं अपनी पत्नी और बच्चों से दूर इस जंगल में घूम रहा हूँ, इसलिए हे काल! जो कुछ भी तूने अब तक नहीं किया, वह भी कर ले; मैं तैयार हूँ।” इस प्रकार वह रोते हुए घर चला गया। उसके जाने के बाद, कौआ, कछुआ, हिरन और चूहा तालाब के किनारे एकत्रित होकर मिले, खुशी मनाई और अपनी नई जिंदगी का जश्न मनाया।

“इसलिए, बुद्धिमान को मित्र बनाओ और मित्र के साथ सच्चे दिल से पेश आओ। जो लोग मित्र बनाते हैं और उनके साथ सच्चाई से व्यवहार करते हैं, वे कभी अपमान नहीं पाते।”

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