सचेतन- बुद्धचरितम् 30 बुद्ध का अंतिम उपदेश और निर्वाण

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सचेतन- बुद्धचरितम् 30 बुद्ध का अंतिम उपदेश और निर्वाण

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सुभद्र की भक्ति और बुद्ध का आशीर्वाद

बुद्ध के निर्वाण के अंतिम समय में एक त्रिदण्डी मुनि, सुभद्र, उनसे मिलने आए। आनन्द के संकोच के बावजूद, बुद्ध ने उन्हें आने दिया और करुणा से धर्म का मार्ग समझाया — एक ऐसा मार्ग जो दुखों से मुक्ति दिलाता है और निर्वाण तक पहुँचाता है।

दुख से मुक्ति का मार्ग

बुद्ध ने सुभद्र को सिखाया कि जीवन में दुख हैं, लेकिन धर्म के रास्ते पर चलकर इन दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है। सत्य, करुणा, ध्यान और समझ — यही धर्म के चार स्तंभ हैं, जो अंततः परम शांति यानी निर्वाण की ओर ले जाते हैं।

सुभद्र का जीवन समर्पण

बुद्ध के उपदेशों से सुभद्र का हृदय जाग्रत हो गया। उसने अपने पुराने विश्वासों को त्याग कर पूर्ण श्रद्धा से बुद्ध के धर्म को अपनाया और गुरु के चरणों में अपने जीवन का समर्पण कर दिया। गुरु के निर्वाण से पहले ही उसने अपने प्राण त्याग दिए — एक सच्चे शिष्य की भक्ति का अद्भुत उदाहरण।

बुद्ध का अंतिम संदेश: “धर्म ही गुरु है”

अपने अंतिम शब्दों में, बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा:

“मेरे जाने के बाद मेरे उपदेशों को ही अपना गुरु मानना और उसी के अनुसार आचरण करना।” यह संदेश आत्मनिर्भरता और सत्य पर आधारित जीवन का आधार बन गया।

शांतिपूर्ण निर्वाण की ओर यात्रा

अपने उपदेशों के बाद, बुद्ध ध्यान की गहरी अवस्था में लीन हो गए। धीरे-धीरे, पूर्ण शांति और समर्पण के साथ, उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया और सदा के लिए निर्वाण की अवस्था में प्रवेश कर गए।

भगवान बुद्ध के जीवन के अंतिम चरण में दिए गए उपदेशों का संकलन यहाँ है। ये उपदेश न केवल उनके शिष्यों के लिए, बल्कि आज के समय में भी हर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक हैं।

1. धर्म ही सच्चा बुद्ध है
“मैं यह शरीर रखूँ या छोड़ दूँ — मेरे लिए दोनों एक समान हैं। सच्चा बुद्ध वह है जो धर्म का रूप होता है, यह नश्वर शरीर किसी के लिए भी स्थायी नहीं है। इससे तुम्हें क्या लाभ?”

2. जीवन की नश्वरता
“देखो, समय आने पर सूर्य भी आकाश से अस्त हो जाता है, देवता भी स्वर्ग से गिरते हैं, और सैकड़ों इन्द्रों का भी अंत हो चुका है। इस संसार में कोई भी सदा के लिए नहीं रहता।”

3. धर्म में स्थित रहो
बुद्ध ने प्रेमपूर्वक कहा, “अब तुम सब धर्म के मार्ग पर दृढ़ता से चलो। जो मैंने सिखाया है — सत्य, करुणा और ध्यान — उसी में लगे रहो। मेरे शरीर के जाने से दुखी मत हो, बल्कि मेरे बताए हुए मार्ग से लाभ लो।”

4. वैशाली को अंतिम दृष्टि
बुद्ध ने एक बार पीछे मुड़कर देखा और शांत स्वर में बोले—
“हे भाई, हे वैशाली! इस जन्म में मैं तुम्हें दोबारा नहीं देख सकूंगा।”

5. विनय और अनुशासन का उपदेश
जब मल्ल समुदाय बुद्ध के पास श्रद्धा से आया, तो उन्होंने कहा—
“आलस्य त्यागो, धर्म का पालन करो, विनय और अनुशासन से जीवन जियो।”

6. दुख से मुक्ति का मार्ग
बुद्ध ने ध्यानपूर्वक धर्म का मार्ग समझाया — एक ऐसा मार्ग जो मनुष्य को दुखों से मुक्ति दिलाता है और अंततः निर्वाण की ओर ले जाता है।

7. सुभद्र का आत्मसमर्पण
बुद्ध की बातें सुनकर सुभद्र को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। उसने अपने पुराने विश्वासों को त्याग दिया और बुद्ध के बताए धर्म को अपनाया। यह सब इतनी श्रद्धा और समर्पण से हुआ कि गुरु के निर्वाण से पहले ही उसने अपने प्राण त्याग दिए।

8. अंतिम वचन
बुद्ध ने अपने अंतिम शब्दों में कहा—
“मेरे जाने के बाद मेरे उपदेशों को ही अपना गुरु मानना और उसी के अनुसार आचरण करना।”

9. शांतिपूर्ण निर्वाण

अपने अंतिम उपदेशों के बाद,
बुद्ध ध्यान की अवस्था में चले गए।

वे धीरे-धीरे अपने श्वासों को नियंत्रित करते हुए,
अपने मन, प्राण और शरीर को एकाग्र करके,
पूर्ण शांति की ओर अग्रसर हुए।

फिर, बिना किसी दुख या भय के,
बुद्ध ने शांतिपूर्वक अपना शरीर त्याग दिया
और सदा के लिए निर्वाण की अवस्था में लीन हो गए।

बुद्ध की यह अंतिम यात्रा हमें यह सिखाती है कि
सच्चा जीवन वह है जो शांति और विवेक से जिया जाए,
और सच्चा अंत वह है जो बिना मोह और भय के स्वीकार किया जाए।

यह उपदेश आज भी हमारे लिए दीपक के समान हैं।

बुद्ध का जीवन और उनके शब्द हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा मार्ग आत्म-जागरण, करुणा और अनुशासन में है। आइए, हम सभी उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करें।

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