सचेतन- बुद्धचरितम् 20, सर्ग १६: बुद्ध की दीक्षा
महात्मा बुद्ध ने जब अपने पहले पाँच शिष्यों को दीक्षित कर धर्म में स्थापित कर दिया, तब इसके बाद एक और महत्वपूर्ण घटना घटी।
एक दिन एक यश नाम का कुलीन युवक, जो अपनी स्त्रियों को गहरी नींद में सोता देख मन में गहरी वैराग्यता अनुभव कर रहा था, वह बुद्ध के पास पहुँचा। महात्मा बुद्ध ने उसे उपदेश दिया। यश को ज्ञान प्राप्त हुआ और वह भिक्षु बन गया। साथ ही, उसके साथ आए ५४ अन्य पुरुषों को भी बुद्ध ने दीक्षा दी और उन्हें उपदेश देकर धर्म प्रचार हेतु भेज दिया। स्वयं बुद्ध ने कहा, “अब मैं गया को जा रहा हूँ।”
गया में पहुँचकर बुद्ध की भेंट एक प्रसिद्ध साधु काश्यप से हुई। बुद्ध ने काश्यप से रहने की जगह माँगी, लेकिन काश्यप को ईर्ष्या हो गई। उसने बुद्ध को धोखा देने की योजना बनाई और रहने के लिए एक अग्निशाला दे दी, जहाँ एक भयानक जहरीला साँप (करला सर्प) रहता था। काश्यप को लगा कि बुद्ध वहाँ मारे जाएँगे।
जब बुद्ध शांति से वहाँ बैठे, तब उस साँप ने अपने विष की ज्वालाएँ छोड़ीं, लेकिन बुद्ध को कुछ नहीं हुआ। उल्टे, सर्प बुद्ध की शांति और शक्ति देखकर चकित रह गया और प्रणाम किया।
उधर आश्रम में शोर मच गया – “गौतम मर गया!” लेकिन सुबह होते ही बुद्ध ने उस सर्प को अपने भिक्षापात्र में रखकर काश्यप को दिखाया। काश्यप यह देखकर चकित रह गया।
फिर बुद्ध ने उसे उपदेश दिया, जिससे उसका अहंकार और बुराइयाँ मिट गईं। काश्यप का हृदय परिवर्तित हो गया। यह देखकर औरूबिल्व नामक क्षेत्र में रहने वाले काश्यप के ९०० शिष्य भी बुद्ध के अनुयायी बन गए।
काश्यप के दो छोटे भाई – गया और नदी काश्यप – भी बुद्ध के धर्म को स्वीकार कर भिक्षु बन गए। इसके बाद बुद्ध ने गयाशिर पर्वत पर तीनों काश्यप भाइयों और सभी शिष्यों को निर्वाण का उपदेश दिया।
फिर बुद्ध, जैसा कि उन्होंने पहले कहा था, तीनों काश्यप भाइयों के साथ मगध राज्य में गए। जब मगधराज बिंबिसार को उनके आने की सूचना मिली, तो वह नगरवासियों के साथ बुद्ध के स्वागत के लिए आगे आया।
काश्यप को बुद्ध के साथ देखकर नगरवासी चकित रह गए, क्योंकि वह पहले से ही प्रसिद्ध साधु था। तब बुद्ध के कहने पर काश्यप ने सबके सामने कहा –
“मैं बुद्ध का शिष्य हूँ, और यही धर्म सबसे श्रेष्ठ है।”
इसके बाद काश्यप ने चमत्कार दिखाए — कभी वह आकाश में बिजली की तरह चमका, कभी बादलों की तरह वर्षा की, और कभी दोनों एक साथ किए।
इन चमत्कारों को देखकर सबको विश्वास हो गया कि गौतम बुद्ध ही सच्चे धर्मज्ञ हैं। फिर बुद्ध ने वहाँ धर्म का उपदेश दिया और मगधराज तथा सभी नगरवासियों ने उस उपदेशामृत का पान कर आत्मिक शांति और संतोष प्राप्त किया। सभी ने धर्म ग्रहण कर बुद्ध के मार्ग पर चलना आरंभ किया।
इस प्रकार यह सर्ग बुद्ध के ज्ञान, करुणा और चमत्कारों के माध्यम से समाज में धर्म का प्रचार और लोगों को उनके जीवन का सच्चा मार्ग दिखाने की प्रेरणादायक कथा कहता है।