सचेतन- बुद्धचरितम् 21 सत्रहवाँ सर्ग : बुद्ध के धर्म का सार

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सचेतन- बुद्धचरितम् 21 सत्रहवाँ सर्ग : बुद्ध के धर्म का सार

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राजा विम्बसार ने महात्मा बुद्ध से निवेदन किया कि वे वेणुवन में निवास करें। बुद्ध ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वेणुवन में शांतचित्त होकर रहने लगे।

इसी समय एक दिन एक भिक्षु जिसका नाम अश्वजित था, जो इंद्रियों को जीतने वाला और संयमी था, भिक्षा के लिए नगर गया। जब वह रास्ते से जा रहा था, तो उसकी नवीन वेशभूषा (संन्यासी रूप) को देखकर एक ब्राह्मण शारद्वतीपुत्र कापिलेय ने, जो स्वयं एक तपस्वी था, बहुत सारे शिष्यों के साथ उसे रोका और कहा—

“हे सौम्य! तुम्हारे इस नए और शांत रूप को देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा है। कृपया बताओ कि तुम्हारे गुरु कौन हैं? और उनकी शिक्षा क्या है?

तब अश्वजित ने नम्रता से उत्तर दिया—

“मेरे गुरु महात्मा बुद्ध हैं। मैं अभी नया हूँ, इसलिए उनकी शिक्षाओं को पूरी तरह नहीं समझ पाया हूँ। लेकिन संक्षेप में बताता हूँ।”

इसके बाद अश्वजित ने बुद्ध के धर्म का सार समझाया। उन्होंने बताया कि—

“सब धर्म किसी कारण से उत्पन्न होते हैं, और उनका निरोध (समाप्ति) और निरोध का मार्ग भी है।”

यह चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) का सार है, जिसे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पहले प्रवचन में बताया था।

चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) – सरल भाषा में:

  1. दुःख – जीवन में दुःख है।
    (जन्म, बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु – सब दुःख हैं)
  2. दुःख का कारण – यह दुःख किसी कारण से होता है।
    (तृष्णा या इच्छा – कुछ पाने या न पाने की लालसा इसका मुख्य कारण है)
  3. दुःख की समाप्ति संभव है – अगर कारण को समाप्त कर दिया जाए, तो दुःख भी समाप्त हो सकता है।
    (इसे निरोध कहते हैं)
  4. दुःख की समाप्ति का मार्ग है – एक रास्ता है, जिससे हम उस दुख से मुक्त हो सकते हैं।
    (यह अष्टांगिक मार्ग है – सही दृष्टि, सही संकल्प, सही वाणी, सही कर्म, सही आजीविका, सही प्रयास, सही स्मृति, सही समाधि)

एक समय की बात है, जब भगवान बुद्ध ने संसार के दुखों को बहुत गहराई से समझा। उन्होंने यह जान लिया कि हर धर्म या स्थिति किसी कारण से ही उत्पन्न होती है। मतलब यह कि दुनिया में जो कुछ भी होता है, उसका कोई न कोई कारण ज़रूर होता है — चाहे वह दुख हो, सुख हो या कोई भावना।

बुद्ध ने यह भी सिखाया कि अगर किसी चीज़ का कारण होता है, तो उसे समाप्त भी किया जा सकता है। यानी, जैसे कोई समस्या किसी कारण से शुरू होती है, वैसे ही अगर हम उस कारण को समझ लें और उसे रोक दें, तो समस्या भी खत्म हो जाती है।

फिर उन्होंने बताया कि इस समाप्ति तक पहुँचने का एक रास्ता भी है — एक ऐसा मार्ग जो हमें दुखों से मुक्ति की ओर ले जाता है। इसे ही उन्होंने ‘निरोध का मार्ग’ कहा।

तो बुद्ध का यह ज्ञान एक सरल लेकिन गहरा सच था —
👉 कोई भी चीज़ बिना कारण के नहीं होती।
👉 अगर कारण को हटाया जाए, तो परिणाम भी खत्म हो जाएगा।
👉 और इसका तरीका है, सही मार्ग को अपनाना।

यही उनकी शिक्षा का मूल था, जो आज भी लोगों को सही सोच और शांति की राह दिखाता है।

यह सुनकर वह ब्राह्मणश्रेष्ठ बहुत प्रभावित हुआ। उसे पहली बार इस तरह की गहरी बातों को सुनने का अवसर मिला। अश्वजित ने उसे बुद्ध के धर्म का उपदेश देकर प्रेरित किया और वह ब्राह्मण सुगत (बुद्ध) के पास पहुँचा।

अश्वजित ने बुद्ध को उस ब्राह्मण का परिचय दिया और उसके आगमन का उद्देश्य बताया। तब बुद्ध ने भी उसे धर्म का उपदेश दिया।

फिर अश्वजित और मौद्गल्यायन — दोनों ने बुद्ध को प्रणाम कर धर्म मार्ग (संन्यास/साधु जीवन) को स्वीकार किया और क्रमशः नैतिक पद पर आरूढ़ हुए।

इसी समय एक और घटना हुई — काश्यप वंश का एक धनी ब्राह्मण, जिसने बहुत संपत्ति और पत्नी को त्याग दिया, वह भी बुद्ध की शरण में आ गया और भिक्षु जीवन अपना लिया।


इस प्रकार यह सर्ग दर्शाता है कि कैसे बुद्ध के विचार और उनका शांत जीवन अनेक लोगों को प्रभावित करता रहा, और वे धीरे-धीरे उनके शिष्य बनते गए।

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