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राजर्षियों, ब्रह्मर्षियों, दैत्यों, गन्धर्वो तथा राक्षसों की कन्याएँ काम के वशीभूत होकर रावण की पत्नियाँ बन गयी थीं। हनुमान जी ने देखा की रावण की हवेली स्त्रियों से प्रकाशित एवं सुशोभित होता था। रावण ने युद्ध की इच्छा से उन सब स्त्रियों का अपहरण किया था और बहुत सारी स्त्रियाँ मदमत्त रमणियाँ कामदेव से मोहित होकर स्वयं ही उसकी सेवा में उपस्थित हो गयी थीं। हनुमान जी ने देखा की रावण की हवेली में स्वर्ग जैसे भोगावशिष्ट पुण्य इन सुन्दरियों के रूपमें एकत्र थी। पंच स्थूल महाभूत, दस इन्द्रियॉ और मन- इन सोलह तत्वों से शरीर का निर्माण हुआ है। इन सबका आश्रय होने के कारण ही देह को शरीर कहते हैं। शरीर के उत्पन्न होने पर उसमें जीवों के भोगावशिष्ट कर्मो के साथ सूक्ष्म महाभूत प्रवेश करते हैं। क्योंकि वहाँ उन युवतियों के तेज, वर्ण और प्रसाद स्पष्टतः सुन्दर प्रभावाले महान् तारों के समान ही सुशोभित होते थे। मधुपान के अनन्तर व्यायाम (नृत्य, गान, क्रीड़ा आदि)-के समय जिनके केश खुलकर बिखर गये थे, पुष्पमालाएँ मर्दित होकर छिन्न-भिन्न हो गयी थीं और सुन्दर आभूषण भी शिथिल होकर इधर-उधर खिसक गये थे, वे सभी सुन्दरियाँ वहाँ निद्रा से अचेत-सी होकर सो रही थीं। उन सुन्दरियों का मन रावण में अत्यन्त आसक्त था। रावण के सुखपूर्वक सो जाने पर वहाँ जलते हुए सुवर्णमय प्रदीप उन अनेक प्रकार की कान्तिवाली कामिनियों को मानो एकटक दृष्टि से देख रहे थे। राजर्षियों, ब्रह्मर्षियों, दैत्यों, गन्धर्वो तथा राक्षसों की कन्याएँ काम के वशीभूत होकर रावण की पत्नियाँ बन गयी थीं। उन सब स्त्रियों का रावण ने युद्ध की इच्छा से अपहरण किया था और कुछ मदमत्त रमणियाँ कामदेव से मोहित होकर स्वयं ही उसकी सेवा में उपस्थित हो गयी थीं। वहाँ ऐसी कोई स्त्रियाँ नहीं थीं, जिन्हें बलपराक्रम से सम्पन्न होने पर भी रावण उनकी इच्छा के विरुद्ध बलात् हर लाया हो। वे सब-की-सब उसे अपने अलौकिक गुण से ही उपलब्ध हुई थीं। रावण की कोई भार्या ऐसी नहीं थी, जो उत्तम कुल में उत्पन्न न हुई हो अथवा जो कुरूप, अनुदार या कौशलरहित, उत्तम वस्त्राभूषण एवं माला आदि से वञ्चित, शक्तिहीन तथा प्रियतम को अप्रिय हो। लेकिन हनुमान जी ने पाया की जो श्रेष्ठतम पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी के ही योग्य जनककिशोरी सीता को छोड़कर हर प्रकार की स्त्री वहाँ थी। उस समय श्रेष्ठ बुद्धिवाले वानरराज हनुमान जी के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि ये महान् राक्षसराज रावण की भार्याएँ जिस तरह अपने पति के साथ रहकर सुखी हैं, उसी प्रकार यदि रघुनाथजी की धर्मपत्नी सीताजी भी इन्हीं की भाँति अपने पति के साथ रहकर सुख का अनुभव करतीं अर्थात् यदि रावण शीघ्र ही उन्हें श्रीरामचन्द्रजी की सेवा में समर्पित कर देता तो यह इसके लिये परम मंगलकारी होता। फिर उन्होंने सोचा, निश्चय ही सीता गुणों की दृष्टि से इन सबकी अपेक्षा बहुत ही बढ़-चढ़कर हैं। इस महाबली लंकापति ने मायामय रूप धारण करके सीता को धोखा देकर इनके प्रति यह अपहरणरूप महान् कष्टप्रद नीच कर्म किया है। फिर हनुमान जी आगे बढ़े और हनुमान जी ने अन्तःपुर में सोये हुए रावण तथा गाढ़ निद्रा में पड़ी हुई उसकी स्त्रियों को देखा तथा मन्दोदरी को सीता समझकर वो प्रसन्न होने लगे।