सचेतन 206: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मनुष्य योनि में रुद्रदेव की प्राप्ति संभव है।
नैमिषारण्य का अर्थ है स्वाध्याय के लिए अनुष्ठान को शुरू करना।
हमारे जीवन में उत्तम व्रत का फल हमारे पालनकर्ता माता पिता से मिला है जो अपने महान् यज्ञ से हमारा जन्म देते हैं और जीवन का क्रम तदन्तर समय के साथ प्रचुर उपलब्धि प्राप्त करता है और यह सब आश्चर्यजनक प्रक्रिया से युक्त हमारे जीवन का यज्ञ है।
आपके जीवन का दीर्घकालिक यज्ञ का अनुष्ठान आपके सांस लेना शुरू होता है आपके सभी अंग प्रत्यंग इससे ही अनुपम हर्ष का अनुभव करते हैं। हमें भी अपने प्राण देवता का कुशल-मंगल भी पूछते रहना चाहिए।यही हमारे जीवन में चलने वाला दीर्घकालिक यज्ञ का अनुष्ठान है।
प्राण देवता के दीर्घकालिक यज्ञ और अनुष्ठान से आपको आभास होते रहता है की आप कुशल हैं या नहीं। हर चुनौती, आपत्ति और बाधा का आभास आपको प्राण देवता करवाते हैं। जीवन भर प्राण देवता के लिए दीर्घकालिक यज्ञ, अनुष्ठान सम्पन्न करते रहना चाहिए।
सूत जी उत्तम व्रत का पालन करने के लिए महादेवजी की आराधना करते हुए एक महान् यज्ञ का आयोजन किया और तदन्तर समय बीतने पर ब्रह्मा जी की आज्ञा से वायुदेव स्वयं वहाँ पधारे।
वायुदेव के पधारने पर मुनियों ने कहा-प्रभो! हमारे कल्याण की वृद्धिके लिये जब आप स्वयं यहाँ आ गये, तब अब हमारा सब प्रकार से कुशल मंगल ही है तथा हमारी तपस्या भी उत्तम होगी। अब पहले का वृत्तान्त सुनिये।
हमारा हृदय अज्ञानान्धकार से आक्रान्त हो गया था, तब हमने विज्ञान की प्राप्ति के लिये पूर्वकाल में प्रजापति की उपासना की। शरणागत वत्सल प्रजापति ने हम शरणागतों पर कृपा करके इस प्रकार कहा-‘ब्राह्मणो ! रुद्रदेव सबसे श्रेष्ठ हैं।
पिछले सचेतन में मैंने सबसे बड़ा प्रश्न आपके लिए रखा था है की इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति हो जाने पर अब आप लोग क्या करना चाहते हैं?
अगर जीवन का विश्लेषण करें तो हम सबको सबसे पहले सोचना चाहिए की हमारा जन्म मनुष्य योनि में क्यों हुआ। हम पशु, पक्षी, कीड़े मकोड़े के रूप में भी जन्म ले सकते थे। जरा सोच कर देखें को क्या हमने मनुष्य योनि में जन्म लेने के लिए सहस्त्र दिव्य वर्षो तक दीर्घकालिक प्रतीक्षा तो नहीं किया है।मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी प्राण वायु के लिए प्रार्थना तो नहीं करनी पड़ी थी।
आप इतना ही समझ लीजिए की मनुष्य योनि में जन्म लेना आपके दीर्घकाल से यानी जन्म जन्मांतर से किए हुए यज्ञ और अनुष्ठान से प्रसन्न हो वायुदेवता मन-ही-मन प्रसन्न हो कर आपके शरीर में आये होंगे और आपके सामने यह प्रश्न आपके लिए रखा था है की इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति हो जाने पर अब आप लोग क्या करना चाहते हैं?
यह प्रश्न ही आपका शिव रूप है। आपके जीवन का महायज्ञ कैसा हो उसकी आहुति कैसी हो जब हम इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति करें तो हम क्या करके जायें? इस सोच के प्रति भक्तिभाव को बढ़ाना। आपने मन में शिव के रूप का निरूपण करना भगवान् शंकर की सृष्टि का निरूपण करने जैसा है। आप अपने ऐश्वर्य को अपने जीवन के भाव को इसके मूल्य को संक्षेप में भी थोड़ा सा भी समझ लेते हैं तो इस संसार को हम नैमिषारण्य कहते हैं और अगर आप कोई भी प्रश्न इस संसार में पूछेंगे तो आपको आपने ईश्वर विषयक का ज्ञान प्राप्त हो सकता है और आप अव्यक्त जन्मा ब्रह्माजी के शिष्य बन सकते हैं।
चलिए मैं नैमिषारण्य के बारे में संछेप में बताता हूँ। वैसे यह वन लखनऊ से ८० किमी दूर सीतापुर जिला में गोमती नदी के बाएँ तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। यह स्थान ८८००० ऋषियों की तपःस्थली के रूप में जाना जाता है आज भी गुप्त स्थल हैं जहां ऋषियों का स्वाध्याय अनुष्ठान चलता है।
वैसे आपको नैमिषारण्य वन जाने की ज़रूरत नहीं है। नैमिषारण्य का अर्थ है स्वाध्याय के लिए अनुष्ठान को शुरू करना। जब हमें अपने जीवन में मनुष्य योनि में जन्म लेने का कारण पता नहीं चलता है तो हमारा हृदय अज्ञानान्धकार से आक्रान्त हो जाता है। और फिर सत्य और पवित्र जीवन के लिए विशेष ज्ञान यानी विज्ञान की आवश्यकता होती है। हमको सृष्टि को उत्पन्न करनेवाला वैसे महा शक्ति यानी प्रजापति की उपासना करनी पड़ती है। जब आप की प्रजापति यानी सुपर पॉवर के शरण में जाकर अपने आपको सरेंडर यानी समर्पण करेंगे तो ही मनुष्य योनि में जन्म लेने का अर्थ समझ में आएगा। जिसको हम कहते हैं रुद्रदेव की प्राप्ति जो वैदिक वाङ्मय में एक शक्तिशाली देवता माने गये हैं। यह हमारे जीवन में कल्याणकारी सोच के विकास का आयाम है ऐसा मन ऐसी अंतर्दृष्टि और भावना शिव के स्वरूप में ढालने जैसा है।
पिछले सचेतन के सत्र में हमारा प्रश्न करना की इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति हो जाने पर अब आप लोग क्या करना चाहते हैं? और इसका उत्तर रुद्रदेव की प्राप्ति जैसा है। रु’ का अर्थ ही ‘शब्द करना’ होता है – जो शब्द करता है, अथवा शब्द करता हुआ पिघलता है, वह रुद्र है।’ आपको अपने अंदर ध्वनि उत्पन्न करना है और सार्थक वर्ण और शब्द से अपनी शक्तियों का विकास करना होगा। यह रुद्र नि:संदेह आपके अंदर विराजमान परमात्मा की आवाज़ है।