सचेतन- 9: मन या मनोवृत्ति

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सचेतन- 9: मन या मनोवृत्ति

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मनस्’, ‘विज्ञान’, और ‘प्रज्ञा’ — ये तीनों शब्द भारतीय दर्शन और उपनिषदों में मानव चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं।

🧠 मनस् • विज्ञान • प्रज्ञा
भारतीय दर्शन में चेतना के तीन सोपान:

🌟 1. मनस् (Manas)विचारों की शुरुआत
इंद्रियों से जानकारी लेकर उसे जोड़ता है और विचार बनाता है।
उदाहरण: एक किसान पहले मन में फसल की कल्पना करता है।

🌟 2. विज्ञान (Vijnana)निर्णय की बुद्धि
सही-गलत का विवेक देता है, तर्क से ज्ञान को परखता है।
उदाहरण: परीक्षा में सही उत्तर चुनना विज्ञान का कार्य है।

🌟 3. प्रज्ञा (Prajña)सत्य का अनुभव
आत्मिक स्तर पर सत्य को प्रत्यक्ष अनुभव करना।
उदाहरण: योगी ध्यान में “अहं ब्रह्मास्मि” का अनुभव करता है।

मनस् (Manas) – मन या मनोवृत्ति

परिभाषा: ‘मनस्’ संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है मन – वह जो सोचता, कल्पना करता, संदेह करता और इंद्रियों से आई जानकारी को ग्रहण करता है। यह आत्मा और शरीर के बीच सेतु की तरह कार्य करता है।

🔍 मुख्य कार्य:

  • इंद्रियों (आंख, कान, नाक, आदि) से मिली सूचनाओं को ग्रहण करना
  • विचारों को जन्म देना (सोचना, कल्पना करना)
  • संदेह और निर्णय के बीच डोलना
  • स्मृति (यादें) को जोड़ना

🌀 मनस् की विशेषताएँ:

  • चंचल होता है – एक विचार से दूसरे विचार पर तुरंत चला जाता है
  • प्रभावित होता है – इंद्रियों, वासनाओं और वातावरण से
  • विचारों का केंद्र – मन में ही काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि उठते हैं
  • शुद्ध या अशुद्ध – मन के शुद्ध होने पर ध्यान और आत्मबोध संभव होता है

🌼 उदाहरण से समझें:

यदि आप एक सुंदर फूल देखते हैं:

  • आंखें उस फूल को देखती हैं (इंद्रिय क्रिया)
  • मनस् उस दृश्य को ग्रहण करता है – “यह फूल सुंदर है”
  • उसी से विचार उत्पन्न होता है – “मुझे यह फूल चाहिए” या “यह फूल मुझे माँ को देना चाहिए”

🧘 योग और ध्यान में मनस् का स्थान:

योगशास्त्र में कहा गया है: “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” – योग का अर्थ है मन की वृत्तियों का शांत होना।

यहाँ ‘चित्तवृत्तियाँ’ यानी मनस् की चंचलता। जब मनस् शांत होता है, तब आत्मा का दर्शन संभव होता है।

✨ निष्कर्ष:

मनस् वह पहला द्वार है, जहाँ से ज्ञान, अनुभूति और आत्मबोध की यात्रा शुरू होती है। इसे नियंत्रित करना, शुद्ध करना, और एकाग्र करना ही साधना का पहला कदम है।

चंचल मन और शांत झील की कहानी 

बहुत समय पहले की बात है। हिमालय की गोद में एक गुरुकुल था। वहाँ एक बालक शिक्षा लेने आया, जिसका नाम था आरव
आरव बहुत तेज था, लेकिन उसका मन बहुत चंचल था — कभी कुछ सोचे, तो कभी कुछ और। ध्यान लगाना उसके लिए कठिन था।

एक दिन उसने गुरुजी से पूछा —
“गुरुदेव, मेरा मन पढ़ाई में टिकता ही नहीं, मैं क्या करूं?”

गुरुजी मुस्कराए और बोले —
“कल सुबह सूरज निकलने से पहले झील किनारे आ जाना।”

अगले दिन आरव पहुँचा। गुरुजी ने उसे एक कटोरा पानी दिया और कहा —
“इसे जोर से हिलाओ!”
आरव ने वैसा ही किया। पानी में लहरें उठीं, कुछ पानी छलक गया।

गुरुजी बोले —
“अब उस पानी में अपना चेहरा देखो।”
आरव ने देखा — कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था, सब धुंधला था।

फिर गुरुजी बोले —
“अब इस कटोरे को ऐसे ही छोड़ दो।”
थोड़ी देर बाद पानी शांत हो गया। गुरुजी ने फिर कहा —
“अब देखो अपना चेहरा।”
आरव ने देखा — अब उसका चेहरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

गुरुजी ने धीरे से कहा —
“बेटा, यही तुम्हारा ‘मनस्’ है। जब यह चंचल होता है, तो कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता – न विचार, न उद्देश्य।
लेकिन जब यह शांत होता है, तब आत्मा का प्रतिबिंब उसमें स्पष्ट होता है।”

आरव समझ चुका था। उसने झुककर गुरु के चरणों में प्रणाम किया।

🌱 शिक्षा:

चंचल मनस् भ्रम पैदा करता है, और शांत मनस् सत्य का दर्शन कराता है।
मन को नियंत्रण में लाना ही ध्यान, पढ़ाई और आत्म-विकास का पहला कदम है।

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