सचेतन 255: शिवपुराण- वायवीय संहिता – योग वर्णन
सविषय ध्यान सूर्य किरणों को आश्रय देने वाला होता है और निर्विषय ध्यान अपनी बुद्धि के विस्तार से होते हैं।
उपमन्यु बोले; हे केशव ! त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का सभी योगी-मुनि ध्यान करते हैं। इसी के द्वारा सिद्धियां प्राप्त होती हैं। सविषय और निर्विषय आदि ध्यान कहे गए हैं। निर्विषय ध्यान करने वाले अपनी बुद्धि के विस्तार से ध्यान करते हैं और ब्रह्म में प्रवेश करते हैं। सविषय ध्यान सूर्य किरणों को आश्रय देने वाला होता है। शांति, प्रशांति, दीप्ति, प्रसाद ये दिव्य सिद्धियां देवी का ध्यान करते हुए प्राणायाम द्वारा सिद्ध होती हैं।
बुद्धि की ही कोई प्रवाह रूपा संतति ‘ध्यान’ कहलाती है।
सविषय ध्यान प्रात:काल के सूर्य की किरणों के समान ज्योतिका आश्रय लेनेवाला है। तथा निर्विषय ध्यान सूक्ष्म तत्त्व का अवलम्बन करनेवाला है। इन दोनों के सिवा और कोई ध्यान वास्तव में नहीं है।
सविषय ध्यान साकार स्वरूप का अवलम्बन करनेवाला है तथा निराकार स्वरूप का जो बोध या अनुभव है, वही निर्विषय ध्यान माना गया है। वह सविषय और निर्विषय ध्यान ही क्रमश: सबीज और निर्बीज कहा जाता है। निराकार का आश्रय लेने से उसे निर्बीज और साकारका आश्रय लेनेसे सबकी संज्ञा दी गयी है।
पहले सविषय या सबीज ध्यान करके अंत में सब प्रकार की सिद्धि के लिये निर्विषय अथवा निर्बीज ध्यान करना चाहिये। प्राणायाम करने से क्रमशः शान्ति आदि दिव्य सिद्धियाँ सिद्ध होती हैं। उनके नाम हैं शांति, प्रशान्ति, दीप्ति और प्रसाद। समस्त आपदाओं के शमनको ही शान्ति कहा गया है। तम (अज्ञान )-का बाहर और भीतरसे नाश ही प्रशान्ति है। बाहर और भीतर जो ज्ञानका प्रकाश होता है, उसका नाम दीप्ति है तथा बुद्धिकी जो स्वस्थता ( आत्मनिष्ठता) है, उसीको प्रसाद कहा गया है। बाह्य और आभ्यन्तरसहित जो समस्त करण हैं, वे बुद्धिके प्रसाद से शीघ्र ही प्रसन्न ( निर्मल) हो जाते हैं।
बाह्य और आभ्यंतर अंधकार का विनाश प्रशांति और सभी आपत्तियों का नाश शांति है। बाह्य आभ्यंतर प्रकाश का दीप कहा जाता है।
बाह्य प्रयत्न – मुख जब वर्ण बाहर निकलने लगते हैं उस समय उच्चारण की जो चेष्टा होती है, उसे बाह्य चेष्टा कहते हैं।आभ्यान्तर प्रयत्न – का अर्थ है भीतर या आभ्यान्तर प्रयत्न से तात्पर्य उस चेष्टा से है, जो वर्णो के उच्चारण के पूर्व मुख के अन्दर होती है।
जब हमारी बुद्धि शुद्ध हो जाए, यही प्रसाद है। बाहर-भीतर के सभी कार्य पूर्ण होने पर सब कारण प्रसिद्ध हो जाते हैं। भगवान शिव, जो साक्षात परमेश्वर हैं, का भक्तिपूर्वक ध्यान करने से सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। बुद्धि का प्रवाह ध्यान एवं स्मरण से होता है। समस्त ऐश्वर्य, अणिमा आदि सिद्धियां एवं मुक्ति भगवान शिव का स्मरण एवं ध्यान करने से मिलती हैं।
देवाधिदेव महादेव जी का ध्यान मोक्ष प्रदान करने वाला है। इसलिए ज्ञानी मनुष्यों को शिव ध्यान एवं स्मरण अवश्य करना चाहिए। ज्ञान योग यज्ञों से बढ़कर फल देता है। महायोगी योग सिद्ध कर लोकहित और लोक कल्याण हेतु लोक भ्रमण करते रहते हैं। वे विषय वासना को तुच्छ मानते हैं और सब इच्छाओं को त्यागकर वैराग्य ले लेते हैं। वे शिव शास्त्रों में वर्णित विधि के अनुसार अपनी देह का त्याग कर देते हैं। इससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
भगवान शिव में अगाध भक्ति और श्रद्धा रखने वाले ज्ञानी मनुष्यों को इस सांसारिक मोह माया से मुक्ति मिल जाती है और वे जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त होकर परम शिवधाम को प्राप्त कर लेते हैं।