सचेतन 2.104 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – लंका का दहन और राक्षसों का विलाप

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“हनुमान जी की लंका में लीला” 

नमस्कार और स्वागत है “रामायण की गाथा” में, सचेतन के इस विचार के सत्र जहां हम आपको रामायण के महानायकों की अद्भुत कहानियों की सैर कराते हैं। आज, हम आपको भगवान हनुमान के अद्भुत पराक्रम और लंका के दहन की कहानी सुनाने जा रहे हैं। तो, आराम से बैठें और इस रोमांचक कथा का आनंद लें।

भगवान हनुमान ने लंका में अपना सभी मनोरथ पूरा कर लिया था, लेकिन उनका उत्साह अभी भी ऊँचा था। उन्होंने लंका का निरीक्षण करते हुए सोचा—”अब इस समय लंका में मेरे लिए कौन-सा ऐसा कार्य बाकी रह गया है, जो इन राक्षसों को और अधिक संताप दे सके?”

प्रमदावन को पहले ही उजाड़ दिया था, बड़े-बड़े राक्षसों को मार गिराया और रावण की सेना के भी एक हिस्से का संहार कर डाला। अब केवल दुर्ग का विध्वंस करना बाकी था। दुर्ग का विनाश हो जाने पर समुद्र-लंघन और अन्य कार्य सफल हो जाएंगे।

हनुमान जी की पूँछ में जलती हुई अग्नि देख, उन्होंने निर्णय लिया कि इस अग्नि को इन राक्षसों के घरों की आहुति देकर तृप्त करना न्यायसंगत है।

जलती हुई पूँछ के कारण बिजलीसहित मेघ की भाँति शोभा पाने वाले कपिश्रेष्ठ हनुमान् जी लंका के महलों पर घूमने लगे।

वे वानरवीर निर्भय होकर एक घर से दूसरे घर पर पहुँचते हुए उद्यानों और राजभवनों को देखते हुए विचरने लगे। वे प्रहस्त, महापार्श्व, वज्रदंष्ट्र, शुक, सारण, मेघनाद, जम्बुमाली, सुमाली और अन्य राक्षसों के घरों में आग लगा दी।

महातेजस्वी कपिश्रेष्ठ हनुमान ने विभीषण का घर छोड़कर अन्य सभी घरों में आग लगा दी। महायशस्वी कपिकुञ्जर पवनकुमार ने विभिन्न बहुमूल्य भवनों में समृद्धिशाली राक्षसों की सम्पत्ति को जलाकर भस्म कर डाला।

राक्षसों के चीखने की आवाज चारों ओर सुनाई दे रही थी। 

राक्षसराज रावण के महल पर पहुँचकर हनुमान जी ने अपनी पूँछ की प्रज्वलित अग्नि उस महल में छोड़ दी और भयानक गर्जना करने लगे। हवा का सहारा पाकर आग तेजी से फैलने लगी और कालाग्नि के समान प्रज्वलित हो उठी।

सोने की खिड़कियों से सुशोभित, मोती और मणियों द्वारा निर्मित ऊँचे-ऊँचे प्रासाद गिरने लगे। राक्षस अपने-अपने घरों को बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। उनका उत्साह जाता रहा और उनकी श्री नष्ट हो गई थी।

राक्षस कहते थे—’हाय! यह वानर के रूप में साक्षात् अग्निदेवता ही आ पहुँचा है।’ कितनी ही स्त्रियाँ गोद में बच्चे लिये क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं।

हनुमान जी ने देखा, जलते हुए घरों से हीरा, मूंगा, नीलम, मोती और अन्य धातुओं की राशि पिघल-पिघलकर बह रही है। जैसे आग सूखे काठ और तिनकों को जलाने से कभी तृप्त नहीं होती, उसी प्रकार हनुमान जी भी राक्षसों के वध से तृप्त नहीं होते थे।

हनुमान जी के पराक्रम और लंका के दहन की यह गाथा हमें सिखाती है कि सच्चाई और धर्म की रक्षा के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमारे साथ बने रहने के लिए धन्यवाद। अगले एपिसोड में हम और भी अद्भुत कहानियों के साथ हाज़िर होंगे। तब तक के लिए, नमस्कार।

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