सचेतन, पंचतंत्र की कथा-16 : “राजकुमारी, बुनकर और झूठी माया की कहानी”

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नमस्कार दोस्तों! स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में, जहां हम आपको सुनाते हैं अनोखी और दिलचस्प कहानियाँ। आज हम बात करेंगे एक ऐसी कहानी की, जिसमें चालाकी, प्रेम, और छल की माया ने एक पूरे राज्य को भ्रमित कर दिया। यह कहानी है एक राजकुमारी, एक बुनकर और उसके विष्णु-रूप धारण करने की।

कहानी की शुरुआत: राजा की चिंता और रानी का संदेह

राजा के महल में हलचल मच गई थी। राजकुमारी के महल में कंचुकियों ने उसकी हालत देखी और राजा से शिकायत की। राजा ने अपनी रानी से कहा, “देवी, कंचुकियों की बात पर ध्यान दो। यह देखो कि कौन ऐसा व्यक्ति है जो राजकुमारी के पास आता है। उसके लिए काल भी क्रोधित है।”

रानी ने जल्दी से राजकुमारी के महल में जाकर उसकी हालत देखी। उसके होंठ कटे हुए थे और अंगों पर नाखून के निशान थे। रानी ने अपनी बेटी से गुस्से में पूछा, “कुल-कलंकिनी! किसने तुम्हारी चाल को बर्बाद कर दिया? क्या तू जानती है कि यह कितना बड़ा अपराध है?”

शर्म से झुकी हुई राजकुमारी ने आखिरकार सच बता दिया – उसके पास आधी रात को भगवान विष्णु का रूप धारण करके कोई आता है। रानी ने यह सुनते ही बड़ी खुशी से जाकर राजा को बताया।

राजा और रानी की खुशी और भ्रम

रानी ने राजा से कहा, “देव! हमें बधाई हो। भगवान नारायण खुद हमारे महल में आते हैं और हमारी बेटी से विवाह कर चुके हैं। हम दोनों को रात में खिड़की से उनके दर्शन करने चाहिए।” यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और जैसे-तैसे वह दिन बिताया, जैसे मानो वह दिन सौ साल लंबा हो गया हो।

रात में राजा और रानी खिड़की पर खड़े हुए और उन्होंने देखा – गरुड़ पर सवार, चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए विष्णु का रूप धारण किए वह बुनकर आकाश से नीचे उतर रहा था। यह दृश्य देखकर राजा का हृदय गर्व से भर गया। उन्होंने रानी से कहा, “प्रिये, हमारे जैसा भाग्यशाली इस दुनिया में कोई नहीं है। हमारी बेटी को भगवान नारायण स्वयं भोग कर रहे हैं। अब हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई हैं।”

राजा की अभिलाषा और युद्ध

राजा ने यह सोचकर सीमावर्ती राजाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने सोचा कि भगवान नारायण उनके जामाता हैं, तो वे किसी भी युद्ध में हार नहीं सकते। परंतु इससे सारे राजाओं ने एकजुट होकर राजा के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया।

इस संकट की घड़ी में राजा ने रानी से कहा कि वह राजकुमारी को कहे कि वह अपने पति से कहे ताकि वह शत्रुओं का नाश कर सके। राजकुमारी ने रात्रि में बुनकर से विनयपूर्वक कहा, “भगवन्, मेरे पिता शत्रुओं से हारे जा रहे हैं, क्या यह सही है? कृपा करके आप उनकी सहायता करें।”

बुनकर ने जवाब दिया, “तेरे पिता के ये शत्रु कौन हैं? तू निश्चिंत रह, सुदर्शन चक्र से मैं उन्हें कुछ ही क्षणों में नष्ट कर दूंगा।”

अब तक क्या सीख मिलती है?

  1. माया और भ्रम का खेल: बुनकर ने अपनी चालाकी से विष्णु का रूप धारण किया और पूरे महल को भ्रमित कर दिया। इस घटना ने दिखाया कि कैसे एक झूठी माया पूरे राज्य को भ्रमित कर सकती है। कभी-कभी जो चीजें बाहर से दिखाई देती हैं, वे भीतर से वैसी नहीं होतीं।
  2. राजा का गर्व और अंधविश्वास: राजा ने यह मान लिया कि भगवान नारायण उनके जामाता हैं और इसी भ्रम में उन्होंने अन्य राजाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। यह हमें सिखाता है कि कभी भी अंधविश्वास और अहंकार में बहकर ऐसे निर्णय नहीं लेने चाहिए जिनसे हमारा खुद का ही नुकसान हो।
  3. सच्चे प्रेम का अर्थ: बुनकर ने प्रेम का नाम लेकर राजकुमारी को धोखे में रखा। असली प्रेम विश्वास और ईमानदारी पर आधारित होता है, न कि छल-कपट पर।

“वीरता, छल, और अंतिम बलिदान की कहानी”

कहानी में वीरता, छल, और एक ऐसे बुनकर की अंतिम बलिदान की बात है जिसने विष्णु का रूप धारण करके एक पूरे राज्य को भ्रम में डाल दिया था। आइए, कहानी की गहराई में चलें।

राजा की मुश्किल स्थिति और बुनकर की चाल

समय बीतता गया और शत्रुओं ने पूरे राज्य को घेर लिया। राजा के कब्जे में केवल शहरपनाह बची थी। शत्रु बहुत ताकतवर थे, और राज्य के योद्धा थक चुके थे। लड़ाई के लिए ना तो लकड़ी बची थी, ना ही घास, और ना ही सैनिकों में लड़ने की ताकत। स्थिति बहुत गंभीर थी, और राजा बहुत चिंतित था।

राजा को यह विश्वास था कि उनके जामाता स्वयं भगवान विष्णु हैं। वे हर दिन विशेष सुगंधित पदार्थ, वस्त्र, भोजन और पेय राजकुमारी के माध्यम से बुनकर के पास भेजते और उनसे प्रार्थना करते कि वे उनकी सहायता करें। राजा कहता था, “भगवन्, किला अब टूटने वाला है। हमारे पास कोई संसाधन नहीं बचे हैं और हमारे सैनिक भी घायल हो चुके हैं। अब जो उचित हो, वह आप करें।”

बुनकर की सोच और उसकी योजना

बुनकर, जो स्वयं को विष्णु के रूप में दिखा रहा था, बहुत चिंतित हो गया। उसने सोचा, “यदि किला टूट गया तो इस राजकुमारी से मेरा वियोग हो जाएगा। अगर मैं आकाश में गरुड़ पर चढ़कर हथियारों के साथ दिखूं, तो शायद शत्रु मुझे वासुदेव मानकर डर जाएं और युद्ध छोड़ दें।”

बुनकर ने एक बात सोची, “जैसे बिना विष के सांप को भी बड़ा फन फैलाकर भयभीत करना चाहिए, वैसे ही मुझे भी शत्रुओं को दिखाना चाहिए कि मैं कोई साधारण नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु हूँ। चाहे मेरे पास असली शक्ति हो या न हो, पर डर पैदा करना जरूरी है।”

वीरता और बलिदान का संकल्प

बुनकर ने यह भी सोचा कि यदि इस स्थान की रक्षा करते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है, तो यह भी एक महान कार्य होगा। उसने मन में यह निश्चय किया कि वह राजकुमारी और राज्य की रक्षा के लिए अपनी जान भी दे देगा।

बुनकर ने खुद से कहा, “जो लोग गाय, ब्राह्मण, स्वामी, स्त्री, या अपनी भूमि के लिए प्राण त्याग करते हैं, उन्हें स्वर्ग के अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। अगर मैं इस युद्ध में मारा भी गया तो यह एक सम्मानजनक मृत्यु होगी। जैसे चन्द्र-मंडल में स्थित सूर्य का राहु द्वारा ग्रहण होता है, वैसे ही यदि मैं इस राज्य के लिए विपत्ति सहता हूँ, तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी।”

कहानी से संदेश:

  1. वीरता और साहस: इस कहानी में बुनकर का साहस अद्वितीय है। उसने चाहे छल से विष्णु का रूप धारण किया हो, लेकिन संकट के समय उसने राज्य और राजकुमारी की रक्षा के लिए अपने प्राण त्यागने का संकल्प लिया। यह सच्चे वीरता का उदाहरण है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, सच्चा वीर अंत तक नहीं झुकता।
  2. छल-कपट की सीमाएं: बुनकर ने शुरू में छल से काम लिया, लेकिन अंततः उसे अपनी चालबाजी का सामना करना पड़ा। यह कहानी हमें बताती है कि छल से भले ही कुछ समय के लिए सफल हो सकते हैं, लेकिन सच्ची वीरता और बलिदान ही सबसे ऊपर होती है।
  3. धैर्य और समझदारी: राजा ने अपने जामाता को भगवान विष्णु मानकर गलतफहमी में युद्ध छेड़ दिया। यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए। सत्य और धैर्य से ही समस्याओं का समाधान निकलता है।

दोस्तों, यह थी आज की कहानी – एक बुनकर की छल, वीरता, और बलिदान की अनोखी गाथा। इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है – चाहे वह वीरता हो, सच्चाई का सामना करने की हिम्मत हो, या फिर यह समझ कि बिना सोच-विचार के लिए गए निर्णय किस प्रकार हानिकारक हो सकते हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि इस कहानी ने आपको सोचने पर मजबूर किया होगा और आपको जीवन में सच्ची वीरता और धैर्य का महत्व समझाया होगा।

अगली बार फिर एक नई कहानी के साथ मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुश रहिए, सावधान रहिए, और सच्चाई का साथ दीजिए। धन्यवाद और नमस्कार!

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