सचेतन 2.93 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के पाँच सेनापतियों का वध

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सचेतन 2.93 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के पाँच सेनापतियों का वध

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“धर्म युद्ध की गाथा: हनुमानजी का पराक्रम”

नमस्कार श्रोताओं! स्वागत है आपका हमारे सचेतन के इस एपिसोड “धर्मयुद्ध की कहानियाँ” में। आज की हमारी कहानी है ‘रावण के पाँच सेनापतियों का वध’। इस कहानी में महात्मा हनुमान जी की वीरता और साहस की अद्भुत गाथा है। आइए, सुनते हैं यह रोमांचक कथा।

जब महात्मा हनुमान जी ने लंका में जाकर रावण के मंत्री के पुत्रों का वध किया, तब रावण को भी भय का अनुभव हुआ। परंतु, उसने अपनी बुद्धिमत्ता से आगे की योजना बनाई और अपने पाँच सेनापतियों – विरूपाक्ष, यूपाक्ष, दुर्धर, प्रघस और भासकर्ण को हनुमान जी को पकड़ने का आदेश दिया। ये सभी सेनापति बड़े वीर और नीतिनिपुण थे। 

रावण ने उनसे अपनी भारी आवाज में कहा की – “वीरो! तुम लोग अपनी भारी सेना, घोड़े, रथ और हाथियों के साथ जाओ और उस वानर को पकड़ो। ध्यान रहे, वह वानर साधारण नहीं है। उसकी अलौकिक शक्तियों को देखते हुए, वह कोई महान प्राणी लगता है। संभवतः इंद्र ने हमारे विनाश के लिए उसे भेजा हो।

सेना के चलने की आवाजें सुनाई देने लगी – 

रावण के आदेश पर सभी सेनापति अपनी विशाल सेना के साथ हनुमान जी को पकड़ने के लिए निकल पड़े। जब वे हनुमान जी के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि महाकपि हनुमान जी फाटक पर खड़े हैं और अपनी तेजोमयी किरणों से देदीप्यमान हो रहे हैं। सबसे पहले, दुर्धर ने हनुमान जी पर लोहे के पाँच बाण चलाए, लेकिन हनुमान जी ने अपनी भीषण गर्जना से दसों दिशाओं को प्रतिध्वनित कर दिया और आकाश में उछल पड़े।

हनुमान ने सोचा की “रावण के इन वीर सेनापतियों को अब मेरा सामना करना होगा।”

लड़ाई की आवाजें, बाणों की वर्षा चारों ओर  से शुरू थी – 

दुर्धर ने आकाश में हनुमान जी का पीछा किया, परंतु हनुमान जी ने अपने हुंकार से उसे रोक दिया। फिर वे दुर्धर के रथ पर कूद पड़े, जिससे रथ के आठों घोड़ों का कचूमर निकल गया और दुर्धर प्राणहीन हो गिर पड़ा। दुर्धर के गिरते ही विरूपाक्ष और यूपाक्ष को क्रोध आया और वे हनुमान जी पर आक्रमण करने लगे, परंतु हनुमान जी ने उन्हें भी मार डाला।

लड़ाई की और आवाजें, वीरों की चीत्कार गूंज रही थी 

इसके बाद, प्रघस और भासकर्ण भी हनुमान जी पर आक्रमण करने आए, लेकिन हनुमान जी ने एक पर्वत-शिखर उखाड़कर उन पर दे मारा, जिससे वे भी मारे गए। इस प्रकार, हनुमान जी ने उन पाँचों सेनापतियों को रणभूमि में मौत के घाट उतार दिया और उनकी पूरी सेना का संहार कर दिया।

हनुमान गर्जना भरे स्वर में कहा – “रावण! तेरे वीर सेनापतियों को मारकर मैं अभी और भी युद्ध के लिए तैयार हूँ।”

इस प्रकार, महावीर हनुमान जी ने अपनी अद्भुत वीरता से रावण के पाँच सेनापतियों का वध किया और अपनी शक्ति का परिचय दिया। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले को कोई पराजित नहीं कर सकता।

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।।

आशा है आपको आज की कहानी पसंद आई होगी। अगले एपिसोड में हम एक और अद्भुत कथा के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए, नमस्कार!

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।

मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही। 

पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने ( अपने जेठे पुत्र ) बलवान् मेघनाद को भेजा । ( उससे कहा की – ) हे पुत्र ! मारना नही उसे बाँध लाना । उस बंदर को देखा जाए कि कहाँ का है.

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