सचेतन 2.97 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के प्रभावशाली स्वरूप को देखकर हनुमान जी के विचार
“धर्म युद्ध की गाथा: हनुमानजी का पराक्रम”
नमस्कार श्रोताओं! स्वागत है आपका हमारे सचेतन के इस विचार के सत्र “धर्मयुद्ध की कहानियाँ” में। आज की कहानी है ‘रावण के प्रभावशाली स्वरूप को देखकर हनुमान जी के मन में उठे विचार’। यह कहानी हमें ले चलती है उस क्षण में जब वीर हनुमान जी ने राक्षसराज रावण का सामना किया। तो चलिए, इस रोचक कथा को सुनते हैं।
इन्द्रजित् के नीतिपूर्ण कर्म से विस्मित और रावण के सीताहरण जैसे कुकर्मों से कुपित होकर, हनुमान जी ने राक्षसराज रावण की ओर देखा। हनुमान जी की आँखें रोष से लाल हो गईं थीं। रावण महातेजस्वी, सोने के बहुमूल्य मुकुट से सज्जित, विभिन्न अंगों में सोने के विचित्र आभूषणों से सुशोभित था।
हनुमान कहते हैं अहो! इस राक्षसराज का रूप कितना अद्भुत है! कैसा अनोखा धैर्य है। कैसी अनुपम शक्ति है! रावण के शरीर पर बहुमूल्य रेशमी वस्त्र, लाल चन्दन और सुन्दर अंगराग उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। उसकी लाल-लाल भयावनी आँखें, चमकीली तीखी दाढ़ें और लंबे-लंबे ओठ उसकी विचित्र शोभा कर रहे थे।
हनुमान जी ने कहा इसका सम्पूर्ण राजोचित लक्षणों से सम्पन्न होना कितने आश्चर्य की बात है। यदि इसमें प्रबल अधर्म न होता तो यह रावण इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवलोक का संरक्षक हो सकता था।
हनुमान जी ने देखा, रावण अपने दस मस्तकों के साथ मन्दराचल के समान प्रतीत हो रहा है। उसका काला शरीर, चमकीले हार से विभूषित वक्षःस्थल और पूर्ण चन्द्र के समान मुख उसे और भी प्रभावशाली बना रहे थे।
हनुमान जी ने कहा इसके लोकनिन्दित क्रूरतापूर्ण निष्ठुर कर्मों के कारण देवताओं और दानवोंसहित सम्पूर्ण लोक इससे भयभीत रहते हैं। रावण का सिंहासन स्फटिकमणि का बना हुआ, नाना प्रकार के रत्नों से जड़ा, सुन्दर बिछौनों से आच्छादित था। उसके आस-पास वस्त्र और आभूषणों से सजी युवतियाँ हाथ में चँवर लिये खड़ी थीं।
हनुमान जी ने कहा यह कुपित होने पर समस्त जगत् को एकार्णव में निमग्न कर सकता है और संसार में प्रलय मचा सकता है।
मन्त्र-तत्त्व को जानने वाले दुर्धर, प्रहस्त, महापार्श्व और निकुम्भ, ये चार राक्षस रावण के पास बैठे थे। रावण चार समुद्रों से घिरे हुए समस्त भूलोक की भाँति शोभा पा रहा था। उसके मन्त्र-तत्त्व के ज्ञाता मन्त्री और अन्य शुभचिन्तक उसे आश्वासन दे रहे थे।
हनुमान जी ने कहा अमित तेजस्वी राक्षसराज के प्रभाव को देखकर वे बुद्धिमान् वानरवीर ऐसी अनेक प्रकार की चिन्ताएँ करते रहे।
हनुमान जी ने मन्त्रियों से घिरे हुए अत्यन्त तेजस्वी, सिंहासनारूढ़ रावण को मेरुशिखर पर विराजमान सजल जलधर के समान देखा। उन भयानक पराक्रमी राक्षसों से पीड़ित होने पर भी हनुमान जी अत्यन्त विस्मित होकर रावण को बड़े गौर से देखते रहे।
आज के विचार का सत्र यहीं समाप्त होती है। हनुमान जी की बुद्धिमता और धैर्य का यह अद्भुत उदाहरण हमें बताता है कि कभी-कभी कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण होता है। अगले एपिसोड में हम एक और अद्भुत कथा के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए, नमस्कार!