सचेतन 2.88 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – लंका में हनुमान जी का पराक्रम

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सचेतन 2.88 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – लंका में हनुमान जी का पराक्रम

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मनोहर पल्लवों और पत्तों से भरा हुआ वह विशाल अशोक वृक्ष, जिसके नीचे सीता का निवास है, उसे सुरक्षित छोड़ दिया है। 

आप सुन रहे हैं ‘रामायण की कथाएँ’। आज के सचेतन के विचार में हम सुनेंगे हनुमान जी के प्रमदावन में विध्वंस करने पर रावण की प्रतिक्रिया के बारे में।

अशोक वाटिका जिसे प्रमदावन कहते हैं वहाँ सब कुछ तनावपूर्ण है। 

प्रमदावन में शांति भंग हो गई थी। पक्षियों का कोलाहल और वृक्षों के टूटने की आवाज सुनकर समस्त लंकानिवासी भय से घबरा उठे। पशु और पक्षी भयभीत होकर भागने और आर्तनाद करने लगे। राक्षसों के सामने भयंकर अपशकुन प्रकट होने लगे। प्रमदावन में सोई हुई विकराल मुखवाली राक्षसियों की निद्रा टूट गई।

सभी राक्षसियों चिंतित थी आवाजें, चीख-पुकार चरो और मच रहा था। 

विकराल मुखवाली राक्षसि उठने पर उस वन को उजड़ा हुआ देखा और उनकी दृष्टि वीर महाकपि हनुमान जी पर पड़ी। महाबली, महान् साहसी एवं महाबाहु हनुमान् जी ने जब उन राक्षसियों को देखा, तब उन्होंने डराने वाला विशाल रूप धारण कर लिया। पर्वत के समान बड़े शरीरवाले महाबली वानर को देखकर वे राक्षसियाँ घबरा गईं।

हनुमान की गरजती आवाज सुनकर राक्षसियों की घबराहट बढ़ गई थी। 

राक्षसियाँ जनकनन्दिनी सीता! से पूछती हैं यह कौन है? किसका है? और यहाँ किसलिये आया है? इसने तुम्हारे साथ क्यों बातचीत की है? ये सब बातें हमें बताओ, तुम्हें डरना नहीं चाहिये। इसने तुम्हारे साथ क्या बातें की थीं?”

सीता की शांत और दृढ़ आवाज थी और बोली- इच्छानुसार रूप धारण करने वाले राक्षसों को समझने या पहचानने का मेरे पास क्या उपाय है? तुम्हीं जानो यह कौन है और क्या करेगा? साँप के पैरों को साँप ही पहचानता है, इसमें संशय नहीं है। मैं भी इसे देखकर बहुत डरी हुई हूँ। मुझे नहीं मालूम कि यह कौन है? मैं तो इसे इच्छानुसार रूप धारण करके आया हुआ कोई राक्षस ही समझती हूँ।”

राक्षसियों की चीख-पुकार मचने लगी, भागने की आवाज चरो ओर बढ़ने लगी। 

विदेहनन्दिनी सीता की यह बात सुनकर राक्षसियाँ बड़े वेग से भागीं। उनमें से कुछ वहीं खड़ी हो गईं और कुछ रावण को सूचना देने के लिये चल पड़ीं।

सभी रहस्यमय थे। और रावण के पास पहुँची – राक्षसियों के मुख से एक वानर के द्वारा प्रमदावन के विध्वंस का समाचार सुनकर रावण ने किंकर नामक राक्षसों को भेजा। लेकिन महाबली हनुमान ने उन सबका संहार कर दिया।

युद्ध की आवाजें, हनुमान की गरजती हुई आवाज बहुत ही तीव्र थी। 

तो यह थी हनुमान जी के प्रमदावन में विध्वंस और रावण की प्रतिक्रिया की कहानी। अभी बाँकी है अब रावण ने इसके बाद क्या किया और हनुमान जी ने कैसे लंका में और अधिक हलचल मचाई। 

लंका में हनुमान का पराक्रम दिखने लायक़ था। जहां हनुमान जी ने लंका में अपना पराक्रम दिखाया। 

रावण के समीप जाकर विकराल मुखवाली राक्षसियों ने रावण को यह सूचना दी कि कोई विकटरूपधारी भयंकर वानर प्रमदावन में आ पहुँचा है।”

“राजन्! अशोकवाटिका में एक वानर आया है, जिसका शरीर बड़ा भयंकर है। उसने सीता से बातचीत की है। वह महापराक्रमी वानर अभी वहीं मौजूद है। हमने बहुत पूछा तो भी जनककिशोरी मृगनयनी सीता उस वानर के विषय में हमें कुछ बताना नहीं चाहती हैं। सम्भव है वह इन्द्र या कुबेर का दूत हो अथवा श्रीराम ने ही उसे सीता की खोज के लिये भेजा हो। अद्भुत रूप धारण करने वाले उस वानर ने आपके मनोहर प्रमदावन को, जिसमें नाना प्रकार के पशु-पक्षी रहा करते थे, उजाड़ दिया।

राक्षसियाँ आगे कहती हैं, ‘प्रमदावन का कोई भी ऐसा भाग नहीं है, जिसको उसने नष्ट न कर डाला हो। केवल वह स्थान, जहाँ जानकी देवी रहती हैं, उसने नष्ट नहीं किया है। जानकीजी की रक्षा के लिये उसने उस स्थान को बचा दिया है या परिश्रम से थककर—यह निश्चित रूप से नहीं जान पड़ता है। अथवा उसे परिश्रम तो क्या हुआ होगा? उसने उस स्थान को बचाकर सीता की ही रक्षा की है।

राक्षसी कहती हैं की – मनोहर पल्लवों और पत्तों से भरा हुआ वह विशाल अशोक वृक्ष, जिसके नीचे सीता का निवास है, उसने सुरक्षित रख छोड़ा है। जिसने सीता से वार्तालाप किया और उस वन को उजाड़ डाला, उस उग्र रूपधारी वानर को आप कोई कठोर दण्ड देने की आज्ञा प्रदान करें।

 नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।।

खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे ।। 

हे नाथ ! एक बड़ा भारी बंदर आया है । उसने अशोक वाटिका उजाड़ डाली । फल खाए, वृक्षो को उखाड़ डाला और रखवालो को मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया। 

सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।।

सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे ।। 

भावार्थः- यह सुनकर रावण ने बुत से योद्धा भेजे । उन्हे देखकर हनुमान् जी ने गर्जना की । हनुमान् जी ने सब राक्षसो को मार डाला , कुछ जो अधमरे थे, चिल्लाते हुए गये। 

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