सचेतन, पंचतंत्र की कथा-46 : “विश्वास और मित्रता की परीक्षा”

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-46 : “विश्वास और मित्रता की परीक्षा”

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“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ में, जहाँ हम आज सुनाने जा रहे हैं पंचतंत्र की एक और अनमोल कहानी, जो सच्ची मित्रता, धोखे और बुद्धिमत्ता के महत्व को उजागर करती है। तो आइए, बिना देरी के कहानी शुरू करते हैं।”

कहानी का आरंभ

हिरण्यक चूहे ने अपने पिछले जन्म की दुखभरी कथा अपने मित्र मंथरक कछुए को सुनाई। इसे सुनकर मंथरक ने बहुत सहानुभूति दिखाई और कहा:
“भाई, तुम बहुत दुखी हो। लेकिन अब चिंता छोड़ो। तुम मेरे मित्र हो, और मित्र के घर में दुख का कोई स्थान नहीं होता। यहाँ खुशी-खुशी रहो। जो भी सेवा मैं कर सकता हूँ, वह जरूर करूँगा।”

तीनों मित्र – कौआ, चूहा, और कछुआ – खुशी-खुशी तालाब के किनारे रहने लगे।

हिरन का आगमन: 

एक दिन, उन्होंने देखा कि एक घबराया हुआ चित्रांग हिरन भागा चला आ रहा है। उसके पीछे एक बहेलिया धनुष-बाण लिए उसे मारने को दौड़ रहा था।

लघुपतनक कौए ने हिरन से कहा: “तुम इतने भयभीत क्यों हो? यहीं कहीं छिप जाओ, ताकि बहेलिया तुम्हें न ढूंढ सके। हम तुम्हारे सच्चे मित्र हैं। तुम निश्चिंत होकर यहाँ रहो।”

चित्रांग को बड़ी राहत मिली। इस तरह हिरन भी उनकी मंडली का हिस्सा बन गया। अब चारों मित्र – कौआ, चूहा, कछुआ, और हिरन – आपस में खूब बातचीत करते, एक-दूसरे का दुख बाँटते, और साथ में घूमते। उनकी गहरी मित्रता को देखकर जंगल के अन्य जानवर भी चकित थे।

लालची सियार का षड्यंत्र

कुछ दिन बाद, एक लालची सियार वहाँ आ पहुँचा। उसने हिरन को देखा और उसके मुँह में पानी भर आया। उसने सोचा: “इस हिरन को किसी भी तरह धोखे से फँसाकर मैं खा जाऊँगा।”

लेकिन हिरन हमेशा अपने मित्रों के साथ रहता था, जिससे सियार उसे सीधे नहीं पकड़ सकता था। तब सियार ने सोचा कि दोस्ती का नाटक करके ही उसे धोखे से फँसाया जा सकता है।

सियार ने मीठी-मीठी बातें करते हुए हिरन से कहा: “मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे अपना दोस्त बनाओगे?”

चित्रांग उसकी बातों में आ गया और बोला: “मैं अपने मित्रों से पूछूँगा। अगर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, तो मैं तुम्हें अपना मित्र बना लूंगा।”

मित्रों की चेतावनी

हिरन ने अपने दोस्तों से कहा: “इन दिनों सियार मुझसे बहुत मित्रता की बातें करता है। क्या हम उसे मित्र बना सकते हैं?”

लघुपतनक कौए, हिरण्यक चूहे, और मंथरक कछुए ने एक स्वर में कहा: “हम सियार को नहीं जानते। उसकी नीयत पर संदेह है। कहीं उसे मित्र बनाने से तुम्हें प्राणों का संकट न हो जाए।”

लेकिन हिरन के बार-बार आग्रह करने पर, दोस्तों ने बेमन से सियार की मित्रता को मंजूरी दे दी।

सियार की चाल

अब सियार अक्सर हिरन से मिलता और धीरे-धीरे उसका विश्वास जीतता। एक दिन, उसने देखा कि बहेलियों ने खेत में जाल बिछाया है। सियार दौड़ता हुआ हिरन के पास गया और बोला: “मैंने एक ऐसा हरा-भरा खेत देखा है, जहाँ चारों ओर हरियाली और स्वादिष्ट पत्ते हैं। वहाँ चलो, तुम्हें स्वर्ग जैसा आनंद मिलेगा।”

हिरन उसकी बातों में आ गया और सियार के साथ चल पड़ा। लेकिन जैसे ही वह पत्ते खाने गया, उसके पैर जाल में फँस गए। घबराहट में हिरन ने सियार को पुकारा:
“मित्र, जल्दी आओ और मुझे इस जाल से छुड़ाओ।”

सियार ने धोखे से जवाब दिया: “आज मेरा व्रत है, इसलिए मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। कल आकर जाल काट दूँगा।”

हिरन समझ गया कि सियार की नीयत खराब है। वह सोचने लगा: “यह दुष्ट सियार मुझे बचाने के बजाय मेरे मरने का इंतजार कर रहा है ताकि मेरा मांस खा सके।”

सच्चे मित्रों की सहायता

जब हिरन नहीं लौटा, तो उसके तीनों दोस्तों को चिंता हुई। लघुपतनक कौआ उसकी तलाश में निकला और जाल में फँसे हिरन को देखा। कौआ तुरंत हिरण्यक चूहे के पास गया और उसे सारी बात बताई।

हिरण्यक ने जाल काटने की योजना बनाई। उसने कहा: “चित्रांग को जाल में मरा हुआ दिखने दो। बहेलिया उसे छोड़ देगा, और तब मैं जाल काट दूँगा।”

हिरन ने वैसा ही किया। बहेलिए ने हिरन को मरा समझकर छोड़ दिया। इस बीच हिरण्यक ने जाल काट दिया। जैसे ही जाल टूटा, हिरन छलाँग लगाकर भाग गया।

सियार का अंत

सियार पास की झाड़ी में छिपा देख रहा था। बहेलिए ने गुस्से में अपना डंडा फेंका, जो सियार को जा लगा। सियार उसी समय मर गया।

“दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

  1. सच्चे मित्र वही हैं, जो विपत्ति में भी साथ दें।
  2. धोखे और कपटी मित्रों से बचना चाहिए।
  3. बुद्धिमानी और मित्रता से बड़ी से बड़ी समस्या हल हो सकती है।

चित्रांग हिरन ने समझ लिया कि सच्चे मित्र और कपटी मित्र में क्या फर्क है। उसने फिर कभी धोखा नहीं खाया।”

“अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे एक और रोचक और प्रेरणादायक कहानी के साथ। धन्यवाद!”

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