सचेतन 3.16 : नाद योग: वैष्णवी मुद्रा: योगी की गुप्त साधना

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सचेतन 3.16 : नाद योग: वैष्णवी मुद्रा: योगी की गुप्त साधना

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नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में. आज हम बात करेंगे वैष्णवी मुद्रा के बारे में, जो योग साधना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गुप्त अंग है। वैष्णवी मुद्रा की चर्चा तंत्रशास्त्रों में की गई है, और इसे एक गुप्त रहस्य के रूप में सुरक्षित रखा गया है। आइए, इस विषय पर गहराई से चर्चा करें।

वैष्णवी मुद्रा का परिचय:

वैष्णवी मुद्रा एक ऐसी योग मुद्रा है जिसमें योगी की बाह्य दृष्टि केवल एक ही अन्तरस्थ विषय पर स्थिर हो जाती है। यह विषय मन का मूलाधार चक्र, अनाहत चक्र, श्वेतार्क (एक विशेष प्रकार का आंतरिक प्रकाश), या सहस्रार चक्र हो सकता है। जब योगी का मन इन केंद्रों में से किसी एक पर पूरी तरह से केन्द्रित हो जाता है, तो उसकी दृष्टि बाहरी दुनिया से हटकर अंदर की ओर मुड़ जाती है। इस अवस्था में उसकी पलकें स्वतः ही स्थिर हो जाती हैं, न तो खुलती हैं और न ही बंद होती हैं। यही स्थिति वैष्णवी मुद्रा कहलाती है।

अंतरस्थ विषय का अर्थ:

अंतरस्थ विषय का अर्थ है वह आंतरिक केंद्र या विषय जिस पर योगी अपने ध्यान को केंद्रित करता है। यह विषय बाहरी संसार से हटकर हमारे आंतरिक संसार से संबंधित होता है। अंतरस्थ विषय पर ध्यान केंद्रित करने से हमारी साधना गहरी और स्थिर हो जाती है, और हम आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होते हैं।

वैष्णवी मुद्रा की विशेषताएँ:

  1. अन्तरस्थ विषय पर ध्यान:
    • वैष्णवी मुद्रा में योगी का ध्यान केवल एक ही अंतरस्थ विषय पर केंद्रित होता है, चाहे वह मूलाधार चक्र हो, अनाहत चक्र हो, श्वेतार्क का प्रकाश हो, या सहस्रार चक्र हो।
    • यह ध्यान साधक को गहरी ध्यान अवस्था में ले जाता है, जहाँ बाहरी दुनिया की कोई भी गतिविधि उसे विचलित नहीं कर सकती।
  2. बाह्य दृष्टि की स्थिरता:
    • इस मुद्रा में योगी की बाहरी दृष्टि स्थिर हो जाती है, और वह पलकें खोलने या बंद करने से रहित हो जाता है।
    • यह स्थिति केवल गहन साधना और ध्यान के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।
  3. गुप्त साधना:
    • वैष्णवी मुद्रा को सभी तंत्रों में गुप्त रूप से सुरक्षित रखा गया है, क्योंकि यह मुद्रा अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली मानी जाती है।
    • इसका अभ्यास केवल उन योगियों द्वारा किया जाता है जो उच्च साधना की अवस्था में पहुँच चुके होते हैं।

वैष्णवी मुद्रा का अभ्यास:

  1. ध्यान की अवस्था:
    • सबसे पहले, योगी को ध्यान की अवस्था में प्रवेश करना चाहिए। इसके लिए एक शांत और स्थिर स्थान का चयन करें।
    • ध्यान के माध्यम से मन को स्थिर करें और विचारों को शांत करें।
  2. चक्र पर ध्यान:
    • अब मन को किसी एक चक्र पर केंद्रित करें। यह मूलाधार, अनाहत, श्वेतार्क, या सहस्रार हो सकता है।
    • ध्यान को गहराई तक ले जाएं और उस चक्र में पूर्णता से समाहित हो जाएं।
  3. दृष्टि की स्थिरता:
    • धीरे-धीरे, आपकी दृष्टि बाहरी दुनिया से हटकर अंदर की ओर मुड़ जाएगी।
    • पलकें स्वतः ही स्थिर हो जाएंगी, और आप एक गहन ध्यान अवस्था में पहुँच जाएंगे।

वैष्णवी मुद्रा के लाभ:

  1. आध्यात्मिक उन्नति:
    • वैष्णवी मुद्रा का अभ्यास योगी को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में ले जाता है।
    • यह मुद्रा साधक को आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।
  2. मानसिक शांति और स्थिरता:
    • इस मुद्रा का अभ्यास मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
    • यह मन को एकाग्र और स्थिर बनाता है, जिससे साधक की ध्यान की गहराई बढ़ती है।
  3. आंतरिक जागरूकता:
    • वैष्णवी मुद्रा साधक की आंतरिक जागरूकता को जागृत करती है।
    • यह उसे उसके आंतरिक संसार से जोड़ती है और बाहरी दुनिया की अस्थिरता से मुक्त करती है।

निष्कर्ष:

वैष्णवी मुद्रा योग साधना का एक गहन और गुप्त अंग है, जो योगी को आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है। यह मुद्रा केवल गहन साधना और ध्यान के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है, और इसे तंत्रशास्त्रों में गुप्त रहस्य के रूप में सुरक्षित रखा गया है।

आज के एपिसोड में इतना ही। हमें आशा है कि आपको वैष्णवी मुद्रा के इस गहन और आध्यात्मिक विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और अपनी साधना को गहराई तक ले जाएँ।

नमस्कार!

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