सचेतन :10. श्रीशिवपुराण- गन्धर्वराज तुम्बरु द्वारा बिंदुग पिशाच का उद्धार
नवंबर 11, 2022- ShreeShivPuran
सचेतन :10. श्रीशिवपुराण- गन्धर्वराज तुम्बरु द्वारा बिंदुग पिशाच का उद्धार Sachetan: Shri Shiv Puran – The salvation of Binduga Vampire by Gandharvaraj Tumbra
अब सूूतजी कहते है – शौनक ! गौरीदेवी चंचुला के पति के महान दुःख से दुःखी हो गयी। फिर चंचुला ने मन को स्थिर कर के व्यथित ह्रदय से महेश्ववरी को प्रणाम कर के पुनः पुछा हे महादेवी! मुझपर कृपा किजिये और दूषित कर्म करने वाले मेरे उस दुष्ट पति का अब उद्धार कर दिजिये। देवि, कुत्सित बुद्धि वाले मेरे उस पापात्मा पति को किस उपाय से उतम गति प्राप्त हो सकती है, यह शीघ्र बताइये। आपको नमस्कार है।
पार्वतीजी ने कहा – तुम्हारा पति अगर शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो सारी दुर्गति को पार कर के उत्तम गति का भागी हो सकता है।
अमृत के समान मधुर अक्षरोंं से युक्त गौरी देवी का वह वचन आदरपूर्वक सुनकर चंचुला ने हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर उन्हे बारंबार प्रणाम किया और अपने पति के समस्त पापोंं की शुद्धि तथा उतम गति कि प्राप्ति के लिये पार्वती देवी से यह प्रार्थना की कि, “मेरे पति को शिवपुराण सुनाने कि व्यवस्था होनी चाहिये”।
उस ब्राह्रणपत्नी के बारंबार प्रार्थना करने पर शिवप्रिया गौरी देवी को बडी दया आ गयी। भक्तवत्सला महेश्वरी गिरिराजकुमारी ने भगवान शिव कि उतम किर्ति का गान करने वाले गन्धर्वराज तुम्बरु को बुलाकर उनसे प्रसन्नता पुर्वक इस प्रकार कहा – तुम्बरो ! तुम्हारी भगवान शिव में प्रीति है। तुम मेरे मन कि बातोंं को जानकर मेरे अभिष्ट कार्यो को सिद्ध करने वाले हो। इसलिये मैंं तुमसे एक बात कहती हूँ। तुम्हारा कल्याण हो। तुम मेरी इस सखी के साथ शीघ्र ही विन्ध्यपर्वत पर जाओ। वहाँँ एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। उसका वृतांत तुम आरम्भ से ही सुनो। मैंं तुमसे प्रसन्नतापुर्वक सब कुछ बताती हूँँ। पूर्व जन्म मेंं वह पिशाच बिन्दुग नामक ब्राह्रण था। मेरी इस सखी चंचुला का पति था, परन्तु वह दुष्ट वेश्यागामी हो गया। स्नान – सन्ध्या आदि नित्यकर्म छोड़कर अपवित्र रहने लगा। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि पर मूढता छा गयी थी – वह कर्तव्याकर्तव्य में विवेक नहीं कर पाता था। अभक्ष्य भक्षण, सज्जनोंं से द्वेष और दुषित वस्तुओ का दान लेना – यही उसका स्वभाविक कर्म बन गया था। वह अस्त्र-शस्त्र लेकर हिंसा करता, बायें हाथ से खाता, दीनों को सताता और क्रूरता पूर्वक पराये घरोंं मे आग लगा देता था। चाण्डालोंं से प्रेम करता और प्रतिदिन वेश्या के सम्पर्क मेंं रहता था। बडा दुष्ट था। वह पापी अपनी पत्नी का परित्याग कर के दुष्टोंं के संग में ही आनंद मानता था। वह मृत्युपर्यन्त दुराचार में ही फंसा रहा। फिर अंतकाल आने पर उसकी मौत हो गयी। वह पापीयोंं के भोगस्थान घोर यमपुर मेंं गया और वहाँँ बहुत से नरकोंं का उपभोग करके वह दुष्टात्मा जीव इस समय विन्ध्यपर्वत पर पिशाच बना हुआ है। वही वह दुष्ट पापोंं का फल भोग रहा है। तुम उसके आगे यत्न पूूर्वक शिवपुराण कि उस दिव्य कथा का प्रवचन करो, जो परम पुण्यमयी तथा समस्त पापोंं का नाश करने वाली है। शिव पुराण कि कथा का श्रवण सबसे उत्कृष्ट पुण्य कर्म है। उससे उसका हृदय शीघ्र ही समस्त पापोंं से शुद्ध हो जायेगा और वह प्रेतयोनि का परित्याग कर देगा। उस दुर्गति से मुक्त होने पर बिन्दुग नामक पिचाश को मेरी आज्ञा से विमान पर बैठा कर तुम भगवान शिव के समीप ले आओ।
अब सूूतजी कहते है – शौनक ! महेश्वरी उमा के इस प्रकार आदेश देने पर गन्धर्वराज तुम्बरु मन – ही – मन बडे प्रसन्न हुए। उन्होने अपने भाग्य की सराहना की। तत्पश्चात उस पिचाश की सती साध्वी पत्नी चंचुला के साथ विमान पर बैठकर नारद के प्रिये मित्र तुम्बुरु वेगपूर्वक विन्ध्याचल पर्वत पर गये, जहाँँ वह पिचाश रहता था। कहते हैं की तुम्बुरु एक “शक्तिशाली गायक और संगीतकार” था, वह देवताओं की उपस्थिति में गाता है। नारद और गोप के अलावा , उन्हें गीतों का राजा माना जाता है।
वहाँँ उन्होनेंं उस पिशाच को देखा। उसका शरीर विशाल था। ठोढी बडी थी। वह कभी हंसता, कभी रोता, कभी उछलता था। उसकी आकृति बड़ी विकराल थी। भगवान शिव की उत्तम कृति का गान करने वाले महावली तुम्बुरु ने उस भयंकर पिशाच को पाशो मे बांध लिया। तदन्नतर तुम्बुरु ने शिवपुराण कि कथा बांंचने का निश्चय करके महोत्सवयुक्त स्थान और मंडप आदि की रचना की। इतने मे ही सम्पुर्ण लोकोंं मेंं बडे वेग से यह प्रचार हो गया की देवी पार्वती कि आज्ञा से एक पिशाच का उद्धार करने के उद्देश्य से शिव पुराण कि उतम कथा सुनाने के लिये तुम्बुरु विन्ध्यपर्वत पर गये है। फिर तो उस कथा के सुनने के लोभ से बहुत से देवर्षि भी शिघ्र ही वहाँँ जा पहुचे। आदर पुर्वक शिव पुराण सुनने के लिये आये हुए लोगोंं का उस पर्वत पर बडा अद्भुत और कल्याणकारी समाज जुट गया। फिर तुम्बरु ने उस पिशाच को पासो मे बांधकर आसन पर बिठाया और हाथ मे वीणा लेकर गौरी -पति कि कथा का आरंभ किया। पहली अर्थात विधेश्वरसहिंता से लेकर सातवीं वायुसहिंता तक महात्मय सहित शिवपुराण कि कथा का उन्होने स्पष्ट वर्णन किया। सातों सहिंताओ सहित शिवपुराण का आदरपुर्वक श्रवण करके वे सभी श्रोता पूर्ण रुप से कृतार्थ हो गये।