सचेतन :26. श्री शिव पुराण- शिव जी का विषपान शिवरात्रि पर्व के समान है।
सचेतन :26. श्री शिव पुराण- शिव जी का विषपान शिवरात्रि पर्व के समान है। Sachetan:Shiva’s poison drink is like the Shivaratri festival.
विद्येश्वर संहिता
हमने समुद्र मंथन और शिकारी की कथा में शिवरात्रि यानी एक सरल भक्ति के भाव को समझने की कोशिश की। शिवजी ने विषपान किया और विष को गले में ही रखा है,पेट में नहीं उतारा।विष की असर से शिवजी का कंठ नीला हो गया इसलिए उनका नाम पड़ा नीलकंठ। विषपान यह बताता है कि कोई निंदा करे तो निंदारूपी जहर को ध्यान में न लेना, पेट में नहीं उतारना है। पेट में जहर रखने से भक्ति नहीं हो सकती।
कहते हैं की जब शिवजी विषपान कर रहे थे तो – कुछ छींटे निचे गिरे थे और वह विष के छींटे कुछ जीवों की आँखों में और पेट में पड़े थे। आँख और पेट में जहर मत रखो। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा होता है कि दूसरों को सुखी देख खुद दुःखी होते है। ऐसा मत करो, आँख में हमेशा प्रेम रखना है।
जगत के कल्याण के हेतु शंकर ने विषपान किया। साधु-पुरुष का वर्तन भी ऐसा ही होता है। सज्जन पुरुष अपने प्राण का बलिदान देकर अन्य के प्राण की रक्षा करते है। जबकि संसार के मानव, मोह-माया से लिपट कर पारस्परिक वैर भावना बढ़ाते है।
अगर हम एक सैनिक के परिवार को देखें और सोचें। सेना का काम देश व नागरिकों की रक्षा, उनके शत्रुओं पर प्रहार करना और शत्रुओं के प्रहारों को खदेड़ देना होता है। इस काम में बहुत जोखिम हैं भारत के पास कुल 42 लाख से भी अधिक सैनिक हैं। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ तीन युद्ध 1948, 1965, तथा 1971 में लड़े हैं जबकि एक बार चीन से 1962 में भी युद्ध हुआ है। इसके अलावा 1999 में एक युद्ध कारगिल युद्ध पाकिस्तान के साथ दुबारा लड़ा गया। सिर्फ़ कारगिल युद्ध में भारत के 547 जवान शहीद हो गए थे और 1300 से ज्यादा सैनिक घायल हो गए थे। आजादी का अमृत महोत्सव माना रहे हैं यह भी एक शिवरात्रि के समान है जिसमें बिगत 75 वर्षों में भारत के 25 हजार से भी ज़्यादा सैनिक किन क्रूवानी हैं।
अगर किसी के घर से कोई भी सैनिक बनाने जाता है तो उसके माता पिता और परिवार को जगत के कल्याण के हेतु शंकर की तरह विषपान करके अपने बेटे या बेटी को सेना में भेजाता है।
यह सबसे बड़ा उदाहरण है शिवरात्रि की जब कोई भी सैनिक जीत हांसिल करता है तो उसका उत्सव होता है और यह बात हमसभी को निराकार मन में सोचने और समझने के लिए बिभोर करता है।
समुद्र मंथन का एक और भाग है जिसमें अमृत भी निकला था और उस अमृत के लिए दैत्य अंदर ही अंदर लड़ने लगे। लड़ने से किसी को भी अमृत नहीं मिला। झगड़ते हुए दैत्यों के बीच में भगवान मोहिनी का रूप लेकर प्रकट हुए। मोहिनी का रूप देखकर दैत्य चकरा गए। मोहिनी मोह का स्वरुप है। जो मोहिनी से आसक्त है उसे अमृत नहीं मिलता।
संसार स्वरूप में आसक्ति वह माया है, ईश्वर के स्वरुप में आसक्ति वह भक्ति है।
शिव का विषपान सामाजिक जीवन में व्याप्त विषमताओं और विकृतियों को पचाकर भी लोक कल्याण के अमृत को प्राप्त करने की प्रक्रिया का जारी रखना है। समाज में सब अपने लिए शुभ की कामना करते हैं।अशुभ और अनिष्टकारी स्थितियों को कोई स्वीकार करना नहीं चाहता। सुविधा सब को चाहिए पर असुविधाओं में जीने को कोई तैयार नहीं। यश, पद और लाभ के अमृत का पान करने के लिए सब आतुर मिलते हैं किंतु संघर्ष का हलाहल पीने को कोई आगे आना नहीं चाहता है। हमारा सामज वर्गों और समूहों में बटे हुए हैं। समाज के मध्य उत्पन्न संघर्ष के हलाहल का पान लोककल्याण के लिए समर्पित शिव अर्थात वही व्यक्ति कर सकता है जो लोकहित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने को तैयार हो और जिसमें अपयश, असुविधा जैसी समस्त अवांछित स्थितियों का सामना करके भी स्वयं को सुरक्षित बचा ले जाने की अद्भुत क्षमता हो समाज सागर से उत्पन्न हलाहल को पीना और पचाना शिव जैसे समर्पित व्यक्तित्व के लिए ही संभव है।