सचेतन 3.06 : नाद योग: नाद बिंदु उपनिषद के चार खंड

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सचेतन 3.06 : नाद योग: नाद बिंदु उपनिषद के चार खंड

नाद बिंदु उपनिषद के माध्यम से ओंकार की गहनता 

नमस्कार! आप सभी का स्वागत है हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में। आज का हमारा विषय है नाद बिंदु उपनिषद और उसके चार खंड। यह उपनिषद नाद योग का गहन मार्गदर्शन प्रदान करता है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए, इन चार खंडों को विस्तार से समझें।

प्रथम खंड: नाद और ध्यान

नाद बिंदु उपनिषद का पहला खंड नाद और ध्यान की प्रक्रिया पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि नाद योग के माध्यम से हम कैसे आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। यह खंड हमें ध्यान की विभिन्न विधियों और नाद की गहनता को समझने में मदद करता है।

  1. नाद योग का परिचय:
    • नाद योग की महत्ता और इसकी प्रारंभिक विधियाँ।
    • नाद के विभिन्न प्रकार और उनका महत्व।
  2. ध्यान की विधियाँ:
    • ध्यान के विभिन्न प्रकार और उनकी प्रक्रिया।
    • नाद के माध्यम से ध्यान की गहनता को प्राप्त करना।

द्वितीय खंड: नाद की उत्पत्ति और उसका महत्व

दूसरा खंड नाद की उत्पत्ति और उसके महत्व पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि नाद कैसे उत्पन्न होता है और यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है।

  1. नाद की उत्पत्ति:
    • नाद की उत्पत्ति और उसका स्रोत।
    • नाद का ब्रह्मांडीय महत्व और उसकी भूमिका।
  2. नाद का महत्व:
    • नाद का हमारे शरीर और मन पर प्रभाव।
    • नाद के माध्यम से शारीरिक और मानसिक शुद्धि।

तृतीय खंड: नाद की साधना और उसके लाभ

तीसरा खंड नाद की साधना और उसके लाभ पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि नाद योग की साधना कैसे की जाती है और इसके क्या-क्या लाभ होते हैं।

  1. नाद साधना की विधियाँ:
    • नाद साधना की विभिन्न विधियाँ और उनकी प्रक्रिया।
    • नाद साधना के विभिन्न चरण और उनकी गहराई।
  2. नाद साधना के लाभ:
    • शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ।
    • आत्म-साक्षात्कार की दिशा में नाद साधना की भूमिका।

चतुर्थ खंड: नाद और आत्म-साक्षात्कार

चौथा खंड नाद और आत्म-साक्षात्कार पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि नाद योग के माध्यम से हम आत्म-साक्षात्कार की उच्चतम अवस्था को कैसे प्राप्त कर सकते हैं।

  1. आत्म-साक्षात्कार की दिशा में नाद की भूमिका:
    • नाद के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया।
    • नाद की गहनता और आत्मा की पहचान।
  2. आत्म-साक्षात्कार की उच्चतम अवस्था:
    • नाद के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करना।
    • ब्रह्मांडीय चेतना और आत्मा का मिलन।

नाद बिंदु उपनिषद के चार खंड नाद योग का गहन मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यह उपनिषद हमें आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करता है और हमारे जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाता है।

In the Quran surah Tuah, the word Hamsa came, which means that when everything ends, ALLAHA comes. The light sound is hamsa. 

खंड 1: नाद बिंदु उपनिषद का परिचय

नाद बिंदु उपनिषद ऋग्वेद का हिस्सा है। इसमें तीन अध्याय हैं, जो ओंकार की महिमा का वर्णन करते हैं। उपनिषद में ॐ को हंस के रूप में दर्शाया गया है और इसकी बारह मात्राओं के माध्यम से इसकी गहनता को समझाया गया है। ध्यान देने से ॐ के विभिन्न फल, ज्ञान और प्रारब्ध प्राप्त होते हैं। नाद के माध्यम से मन को संयमित करने की विधि भी बताई गई है।

खंड 2: हंस के रूप में प्रणव (ॐ) का प्रतीक

प्रणव (ओंकार) ॐ को हंस के रूप में दिखाया गया है। ओम् का पहला अक्षर ‘अ’ इसका दायां पंख है, ‘ऊ’ बायाँ पंख है, और तीसरा अक्षर ‘म’ इसकी पूँछ है। अर्ध मात्रा इसका सिर है। रजोगुण और तमोगुण इसके पैर हैं और सतोगुण इसका शरीर है। धर्म इसकी दाहिनी आंख और अधर्म इसकी बाईं आंख है।

खंड 3: हंस का ब्रह्मांडीय प्रतिनिधित्व

आपने सावित्री मंत्र ‘ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः’ सुना होगा। नाद बिंदु उपनिषद में भू-लोक (पृथ्वी) हंस के चरणों में, भुवर्लोक (अंतरिक्ष) घुटनों में, स्वर्ग-लोक इसकी कमर में और मह:-लोक (देव लोक) इसकी नाभि में स्थित है। हंस के हृदय में जन लोक (समाज) है, कंठ में तपोलोक और माथे पर सत्य-लोक है। सहस्रार (हजार किरण) इसके पंख में स्थित है।

खंड 4: योग में हंस का महत्व

हंस पक्षी, योग में निपुण होता है और हर पल ओम पर चिंतन करता है। यह श्रेष्ठ कर्म करता है और दसों करोड़ पापों से अप्रभावित रहता है। योगियों के लिए हंस एक प्रतीक है, जो उन्हें अपने जीवन में सत्य, धर्म और ज्ञान के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

समापन:

आज हमने नाद बिंदु उपनिषद के माध्यम से ओंकार की गहनता और हंस के प्रतीक का महत्व समझा। आशा है कि यह ज्ञान आपके जीवन में शांति और संतुलन लाएगा।

धन्यवाद! ॐ शान्ति, शान्ति, शान्ति ॐ।

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