सचेतन :42. श्री शिव पुराण-पंचाक्षर-मंत्र से माता की महाशक्ति का आभास होत…
सचेतन :42. श्री शिव पुराण-पंचाक्षर-मंत्र से माता की महाशक्ति का आभास होता है
Sachetan:Panchakshar-mantra gives a feeling of Mother’s super power
इस पंचाक्षर-मंत्र से मातृका वर्ण प्रकट हुए हैं। जो पाँच भेद वाले हैं। उसी से शिरो मंत्र सहित त्रिपदा गायत्रीका प्राकट्य हुआ है। उस गायत्री से सम्पूर्ण वेद प्रकट हुए हैं और उन वेदोंसे करोड़ों मन्त्र निकले हैं। उन-उन मन्त्रों भिन्न-भिन्न कार्यों की सिद्धि होती है; परंतु इस प्रणव एवं पंचाक्षर से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है। इस मन्त्र समुदाय से भोग और मोक्ष दोनों सिद्ध होते हैं। मेरे सकल स्वरूपसे सम्बन्ध रखने वाले सभी मन्त्रराज साक्षात् भोग प्रदान करनेवाले और शुभकारक (मोक्षप्रद हैं।
हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में माता का उल्लेख महाशक्ति की के लिये हुआ है। ‘मातृका’ का मूल शब्द ‘मातृ’ है जिसका अर्थ है ‘माँ’। यह माना जाता है कि उनमें वह शक्ति है जो मातृ गुणों का प्रतीक है और इस ब्रह्मांड की सभी शक्तियों की रक्षक, प्रदाता और पालनकर्ता भी है। जैसे पृथ्वी की हर चीज सूर्य से अपनी स्रोत ऊर्जा प्राप्त करती है, वैसे ही ब्रह्माण्ड की सभी ऊर्जाएं अपनी शक्ति मातृकाओं से प्राप्त करती हैं। मातृकाओं में जन्मजात क्षमता है, जिस के फलस्वरूप वह स्वयं का प्रतिरूप बना सकती है और उनके प्रतिरूप भी अन्य शक्तियों और रूपों को जन्म दे सकते हैं। वह अपने सूक्ष्म रूप में हर जगह और हर चीज में है लेकिन यह मान्यता है कि वे अपने प्रकट रूप में ब्रह्मांड में उपस्थित है और आठ दिशाओं पर शासन करती है जो अनंत का भी प्रतीक है।
मातृका हमेशा अपने मूल रूप योगमाया के रूप में मौजूद रहती हैं और वे इस ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति है। शिव परम देव हैं और उनके भीतर योगमाया निवास करती हैं। योगमाया के कारण, शिव को ईश्वर माना जाता है, योगमाया की शक्ति के अभाव में शिव एक शव तुल्य हो जाते है।
वह सृष्टि के पहले भी शिव के भीतर विद्यमान थी। हर विध्वंस का एक सही समय होता है, जैसे प्रकृति एक फूल को अपने चरम तक खिलने देती है और फिर उसे मुरझा कर नष्ट कर देती है, जिससे नए फूलों को खिलने का अवसर मिलता है, वैसे ही शिव का प्रमुख कर्तव्य है कि पहले की सभी कृतियों के अस्तित्व को जड़ से मिटा देवें ताकि नव-निर्माण हो सके।
ऐसा करने के लिए भगवान शिव को शक्ति और ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो ब्रह्मांड को एक फूल की तरह खिलने के लिए पोषित कर सके, ठीक उसी तरह जिस तरह एक मां की अपनी नई रचना के पोषण के लिए आवश्यक होता है। इस ऊर्जा को “मातृ पुंजा” कहा जाता है, जो स्वयं को द्विगुणित या जनन करके इस ब्रह्मांड के हर हिस्से में अपने आप को विलय कर देती हैं । इस प्रकार मातृका सृष्टि में हर जगह मौजूद हो जाती हैं। उनकी वजह से है ब्रह्मांड आत्म-पालन और आत्म-पोषण कर सकता है, यह तब तक चलता रहता हैं जब तक कि महाप्रलय नहीं हो जाता। एक रचना के विनाश के बाद, दूसरी एक नई रचना होती है और यही मातृकायें फिर से नए ब्रह्मांड के निर्वाहक और पोषणकर्ता की भूमिका निभाती है। यह क्रम अनवरत चलता रहता है।
शिव ज्ञान की आत्मा हैं। अंधक अज्ञानता या अंधकार का प्रतिनिधित्व करता है। जितना अधिक ज्ञान अज्ञान पर हमला करता है, उतना ही अधिक यह उठता हैं और बढ़ता है। यह अन्धकासुर का बहुलीकरण हैं और दूसरे क्रम के उप-असुरों के जन्म द्वारा दर्शाया गया है। जब तक आठ बुरे गुण: काम, क्रोध, लोभ, मद या घमंड, मोह या भ्रम, ईर्ष्या, निंदा और द्वेष को ज्ञान के नियंत्रण और संयम में नहीं रखा जाता तब तक यह अंधकारा को समाप्त करने में कभी भी सफलता नहीं मिल सकती।
वराह पुराण में कहा गया है कि मातृकायें आत्म ज्ञान हैं, जो अज्ञानता रूपी अंधकासुर के विरूद्ध युद्ध करती हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि मातृकायें शरीर के मूल जीवंत अस्तित्व पर शासन करती हैं।
• ब्राह्मणी: त्वचा,
• माहेश्वरी: रक्त,
• कौमारी: मांसपेशियां
• वैष्णवी: हड्डी,
• ऐंद्री: अस्थि मज्जा,
• चामुंडा: वीर्य।