सचेतन :43. श्री शिव पुराण-मातृका महाशक्ति क्या है?
सचेतन :43. श्री शिव पुराण-मातृका महाशक्ति क्या है?
Sachetan:What is the mother’s superpower?
सप्तमातृकाएं ये सात देवियां ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वाराही और नारसिंही है। शुंभ और निशुंभ राक्षसों से लड़ते समय देवी की सहायता के लिए सभी देवो ने अपनी-अपनी सात शक्तियां भेजी थी।
यह सात शक्तियां ही सप्तमातृकाएं हैं जो शरीर के मूल जीवंत अस्तित्व पर शासन करती हैं।
• ब्राह्मणी: त्वचा,
• माहेश्वरी: रक्त,
• कौमारी: मांसपेशियां
• वैष्णवी: हड्डी,
• ऐंद्री: अस्थि मज्जा,
• चामुंडा: वीर्य।
बच्चे के जन्म पर छठी महोत्सव सप्तमातृका का ही पूजन होता हैं। सप्तमातृका पूजा नवजात बच्चे की हर तरह के अनिष्टों से रक्षा करती हैं। इस पूजा से आपको सप्तमातृकाओं का आशीर्वाद मिलता हैं।सप्तमातृका पूजा से आपके घर में धन और वैभव की वृद्धि होगी.। ग्रह जनित बाधाओं के निवारण लिए भी आप सप्तमातृका की साधना कर सकते हैं। यह साधना अधिक प्रभावकारी होती हैं।
मातृका को कौन विशेषरूप से जानता है ? वह मातृका कितने प्रकार की और कैसे अक्षरों वाली है ?
मातृका में बावन अक्षर बताये गए हैं । इनमें सबसे प्रथम अक्षर ॐकार है । उसके सिवा चौदह स्वर, तैतीस व्यंजन, अनुस्वर, विसर्ग, जिव्हामूलीय तथा उप्षमानीय – ये सब मिला कर बावन मातृका वर्ण माने गए हैं । द्विजवर ! यह तो मैंने आपसे अक्षरों की संख्या बतायी है । अब इनका अर्थ सुनिए । इस अर्थ के विषय में पहले आपसे एक इतिहास कहूँगा । पूर्व काल की बात है, मिथिला नगरी में कौथुम नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे । उन्होंने इस पृथ्वी पर प्रचलित सभी विद्याओं को पढ़ लिया था । अध्ययन कर के जब वे गृहस्थ हुए तब कुछ काल के बाद उनका एक पुत्र हुआ । उस पुत्र के सारे कार्य जड़ की भाँती होते थे । उसने केवल मातृका पढ़ी । मातृका पढने के बाद वह किसी प्रकार की कोई दूसरी बात याद ही नहीं करता था । उसके पिता उसकी इस बात से बड़े खिन्न हुए और उस जड़ बालक से कहने लगे – ” बेटा ! पढो, पढो, मैं तुम्हें मिठाई दूंगा और अनहि पढोगे तो यह मिठाई दुसरे को दे दूंगा और तुम्हारे दोनों कान उखाड़ लूँगा ।”
मातृका शब्द से प्राण-शक्ति का बोध होता है | मातृका वर्ण रूपिणी है ..” मातृका वर्ण -रूपिणी “| मातृका महाशक्ति मन्त्र समुदाय की जननी है ..” मंत्रोत्करस्य जननी मनसा विशाय: “ | मातृका को पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है –
स्वर –अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ,.. लृ..,
..ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: | (कुल संख्या -१६ )
स्पर्श- क वर्ग- क, ख, ग, घ, …|
च वर्ग– च, छ, ज, झ,,…|
ट वर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण |
त वर्ग- त, थ, द, ध, न |
प वर्ग- प, फ, ब, भ, म |
अन्तस्थ- य वर्ग – य, र, ल, व, श |
उष्माण- श वर्ग- श, ष, स, ह |
कूटस्थ- क्ष कार |
कहीं कहीं म..कार से लेकर क्ष..कार तक दश वर्णों (म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष ) के समूह को व्यापक वर्ग नाम से व्यवहृत किया गया है | इस व्यवस्था के अंतर्गत मातृका महामंत्र त्रिखंडात्मक हो जाता है— १-स्वर.., २- स्पर्श,… ३- व्यापक |
अग्नि और सोम भेद से वर्ण दो प्रकार से वर्णित है। स्वर तथा ब्यञ्जन सभी वर्णों में सूक्ष्मरूप से वर्तमान अकारांश अग्न्यात्मक एतएव पुरुषांश है और इस अकारांश के अतिरिक्त जो अन्य वर्णांश है, वे प्रकृत्यात्मक स्त्रीत्वांश और सोम का अंश है। इस प्रकार ह्रस्वपंचक अर्थात अ, इ, उ, ए, ऒ पुरुषांश; दीर्घपंचक अर्थात आ, ई, ऊ, ऐ तथा औ स्त्रीत्वांश; ऋ, दीर्घ्र ऋ, लृ, दीर्घ लृ नपुंसकांश तथा बिंदु एवं विसर्ग स्त्री तथा पुरुषादिके अनुगामी हैं । चारों नपुंसक वर्ण प्राण में सुषुम्नागत रहने पर अयनसंक्रांति रूप स्थिति प्राप्त करते है ।