सचेतन :45. श्री शिव पुराण- गायत्री मंत्र से 24 शक्तियों की प्राप्ति होती है
सचेतन :45. श्री शिव पुराण- गायत्री मंत्र से 24 शक्तियों की प्राप्ति होती है Sachetan:Gayatri Mantra gives 24 powers
गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।
यह मन्त्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मन्त्रों में केवल एक है, किन्तु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरम्भ में ही ऋषियों ने कर लिया था। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं।
(१) ॐ
(२) भूर्भव: स्व:
(३) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
तीन व्याहृतियाँ हैं- भू पृथ्वीलोक, भुव: अंतरिक्षलोक, स्व: द्युलोक
इस मन्त्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं। मंत्र में मन ही प्राण का प्रेरक है इस सम्बन्ध की व्याख्या है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रन्थों की व्याख्या है- कर्माणि धिय:, अर्थातृ जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं वह केवल मन के द्वारा होनेवाले विचार या कल्पना सविता नहीं किन्तु उन विचारों का कर्मरूप में मूर्त होना है। यही उसकी चरितार्थता है। किंतु मन की इस कर्मक्षमशक्ति के लिए मन का सशक्त या बलिष्ठ होना आवश्यक है। उस मन का जो तेज कर्म की प्रेरण के लिए आवश्यक है वही वरेण्य भर्ग है। मन की शक्तियों का तो पारवार नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय अंश है। इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई जाती। यहाँ एक मात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता का ज्ञान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थक उन 24 शक्तियों के द्वारा करे जिससे हमें
1. तत्: यानी कठिन कामों में सफलता मिले , विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि।
2. स: यानी पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा।
3. वि: प्राणियों का पालन की शक्ति, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि।
4 तु: अनिष्ट का विनाश हो, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता।
5. व: हम क्रियाशीलता बनाये रखें, कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा।
6. रे: प्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति।
7. णि: धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति।
8. यं:प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना।
9. भ : रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा।
10. र्गो : मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता।
11. दे : विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार।
12. व : कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा।
13. स्य : गंभीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य।
14. धी : आरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन।
15. म : तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम।
16. हि : निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता।
17. धि : उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार।
18.यो : मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता।
19. यो : संतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि।
20. न: भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य।
21. प्र :महत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली।
22. चो : उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ।
23. द : उज्जवल कीर्ति, आत्म-संतोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार।
24. लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण।