सचेतन :50 श्री शिव पुराण- शिवलिंग की पूजा, सेवा और जप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सचेतन :50 श्री शिव पुराण- शिवलिंग की पूजा, सेवा और जप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 👏
Sachetan: Worshiping, serving and chanting of Shivling fulfils all desires.
शिवलिंग भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी दोनों ही शक्तियों को प्रदर्शित करता है। शिवलिंग का अर्थ होता है ‘सृजन ज्योति’ यानी भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरुप। सूर्य, आकाश, ब्रह्माण्ड तथा निराकार महापुरुष का प्रतीक होने का कारण ही यह वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी व्यापक ब्रह्मात्मलिंग जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’।
अपनी शक्ति के अनुसार महालिंग की स्थापना, विविध उपचार द्वारा उसका नित्य पूजा करनी चाहिये तथा देवालय के पास ध्वजारोहण आदि करना चाहिये। शिवलिंग साक्षात् शिव का पद प्रदान करने वाला है। अथवा चर लिंग में षोडशोपचार द्वारा यथोचित रीति से क्रमशः पूजन करे। यह पूजन भी शिवपद प्रदान करने वाला है। आवाहन, आसन, अर्घ्य, पाद्य, पाद्यांग आचमन, अभ्यंगपूर्वक स्नान, वस्त्र एवं यज्ञोपवीत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल-समर्पण, नीराजन आरती, नमस्कार और विसर्जन- ये सोलह उपचार हैं।
अथवा अर्घ्य, अभिषेक, नैवेद्य, नमस्कार और तर्पण- ये सब यथाशक्ति नित्य करे। इस तरह किया हुआ शिवका पूजन शिवपद की प्राप्ति कराने वाला होता है।
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिलिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रम्हांड में घूम रही आकाश गंगा के समान ही है। शिवलिंग – हमारे ब्रम्हांड में घूम रहे पिंडो का एक प्रतीक ही है।
प्रणव मंत्र का जप करके शिवपद की प्राप्ति होती है। जपकाल में मकारान्त प्रणव का उच्चारण, मन की शुद्धि करने वाला होता है। समाधि और मानसिक जप का विधान है। उपांशु जप भी कर सकते हैं। उपांशु जप यानी मंद स्वर में मंत्र का जप करने से यह आपको सोमरस का अनुभव देता है, जिससे व्याक्तिगत रूप में आप अपने आप को रहस्यात्मक ढंग से परिवर्तित होते हुए पायेंगे।
नाद और बिन्दु से युक्त ओंकार के उच्चारण को विद्वान् पुरुष ‘समान प्रणव’ कहते हैं। इसमें अकार, उकार, मकार, बिन्दु एवं नाद युक्त सस्वर ओंकार का बार बार उच्चारण कर उसे भावना से युक्त करके मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक ले जाने का अभ्यास करें। ओंकार के तेज स्वरूप बिन्दु के ध्यान का आभास होता है।
ब्राह्मणों के लिये आदि में प्रणव युक्त पंचाक्षर मंत्र ऊं नम: शिवाय अच्छा बताया गया है। ‘नम: शिवाय’ पंचाक्षर मंत्र है और ‘ऊं’ के साथ यह षड्क्षर मंत्र बन जाता है। कलश से किया हुआ स्नान, मन्त्र की दीक्षा मातृकाओं का न्याय, सत्य से अन्तःकरणवाला पवित्र ब्राह्मण तथा ज्ञानी गुरु – इन सबको उत्तम माना गया है।
द्विजों के लिये ‘नम: शिवाय’ के उच्चारण का विधान है।द्विज का अर्थ है जो अच्छी संस्कार से मानव कल्याण हेतु कार्य करने का संकल्प लेते हैं।
स्त्रियों के लिये भी कहीं-कहीं विधि पूर्वक नमोऽन्त प्र उच्चारण का ही विधान है अर्थात् वे भी ‘शिवाय नमः’ का जप करें। कोई-कोई ऋषि ब्राह्मण की स्त्रियों के लिये नमः पूर्वक शिवाय के जाप की अनुमति देते हैं अर्थात् वे ‘नमः शिवाय’ का जप करें।
अपनी रूचि के अनुसार किसी एक मंत्र को अपना कर मृत्युपर्यन्त प्रतिदिन उसका जप करना चाहिये अथवा ‘ओम् (ॐ)’ इस मन्त्रका प्रतिदिन एक सहस्त्र जप करना चाहिये। ऐसा करने पर भगवान् शिवकी आज्ञा से सम्पूर्ण मनोरथ की सिद्धि होती है।
जो मनुष्य भगवान् शिवके लिये फुलवाड़ी या बगीचे आदि लगाता है तथा शिवके सेवा कार्य के लिये मन्दिर मे झाड़ने- बुहारने आदि की व्यवस्था करता है, वह इस पुण्य कर्म को करके शिवपद प्राप्त कर लेता है। भगवान् शिव के जो काशी आदि क्षेत्र हैं, उनमें भक्तिपूर्वक नित्य निवास करे। वह जड, चेतन सभीको भोग और मोक्ष देनेवाला होता है। अतः विद्वान् पुरुषको भगवान् शिव के क्षेत्र में आमरण निवास करना चाहिये । पुण्यक्षेत्र में स्थित बावड़ी, कुआँ और पोखरे आदिको शिवगंगा समझना चाहिये। भगवान् शिवका ऐसा ही वचन है। वहाँ स्नान, दान और जप करके मनुष्य भगवान् शिवको प्राप्त कर लेता है।
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