सचेतन :53 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: पार्वती, सीता और राधा के जन्म का वर्णन
सचेतन :53 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: पार्वती, सीता और राधा के जन्म का वर्णन
Rudra Samhita: Describing the Birth of Parvati, Sita and Radha
नारदजीने पूछा-विधे! विद्वन्! अब आदरपूर्वक मेरे सामने मेनाकी उत्पत्तिका वर्णन कीजिये। उसे किस प्रकार शाप प्राप्त हुआ था, यह कहिये और मेरे संदेहका निवारण कीजिये। ब्रहााजी बोले—मुने! मैंने अपने दक्ष नामक जिस पुत्रकी पहले चर्चा की है, उनके साठ कन्याएँ हुई थीं, जो सृष्टि की उत्पत्ति में कारण बनीं।
नारद! दक्ष ने कश्यप आदि श्रेष्ठ मुनियों के साथ उनका विवाह किया था, यह सब वृत्तान्त तो तुम्हें विदित ही है। अब प्रस्तुत विषयको सुनो। उन कन्याओं में एक स्वधा नाम की कन्या थी, जिसका विवाह उन्होंने पितरों के साथ किया। स्वधा की तीन पुत्रियाँ थीं, जो सौभाग्य- शालिनी तथा धर्म की मूर्ति थीं। उनमें से ज्येष्ठ पुत्रीको नाम ‘मैना’ था। मंझली ‘धन्या’ के नामसे प्रसिद्ध थी और सबसे छोटी कन्याका नाम ‘कलावती’ था। ये सारी कन्याएँ पितरों की मानसी पुत्रियाँ थीं- उनके मन से प्रकट हुई थीं। (पितार अर्थात् पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।) इनका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ था, अतएव ये अयोनिजा थीं; (जो योनि से उत्पन्न न हो । जो प्रजनन की साधारण प्रक्रिया से उत्पन्न न हो ।) केवल लोक व्यवहार से स्वधा की पुत्री मानी जाती थीं।
‘मैना’, ‘धन्या’ और ‘कलावती’ इनके सुन्दर नामों का कीर्तन करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है। ये सदा सम्पूर्ण जगत्की वन्दनीया लोकमाताएँ हैं और उत्तम अभ्युदयसे सुशोभित रहती हैं।
सब की सब परम योगिनी, ज्ञान निधि तथा तीनों लोकों में सर्वत्र जा सकने वाली हैं। मुनीश्वर ! एक समय वे तीनों वहिने भगवान् विष्णुके निवास स्थान श्वेतद्वीप में उनका दर्शन करने के लिये गयीं। भगवान् विष्णुको प्रणाम और भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति करके वे उन्हीं की आज्ञा से वहाँ ठहर गयीं। उस समय वहाँ संतों का बड़ा भारी समाज एकत्र हुआ था। मुने! उसी अवसर पर मेरे पुत्र सनकादि सिद्धगण भी वहाँ गये और श्रीहरि की स्तुति-वन्दना करके उन्हीं की आज्ञासे वहाँ ठहर गये। सनकादि मुनि देवताओं के आदिपुरुष और सम्पूर्ण लोकों में वन्दित हैं। वे जब वहाँ आकर खड़े हुए, उस समय श्वेतद्वीप के सब लोग उन्हें देख प्रणाम करते हुए उठकर खड़े हो गये। परंतु ये तीनों बहिनें उन्हें देखकर भी वहाँ नहीं उठीं। इससे सनत्कुमार ने उनको (मर्यादा-रक्षार्थ ) उन्हें स्वर्ग से दूर होकर नर-स्त्री बनने का शाप दे दिया। सतयुग (कृतयुग) में पूर्ण परब्रह्म परमेश्वर श्रीहंस भगवान के चार शिष्य हुए। वे चार शिष्य ब्रह्मा के चार मानस पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत थे।
फिर उनके प्रार्थना करने पर वे प्रसन्न हो गये और बोले।। सनत्कुमार ने कहा-पितरों की तीनों कन्याओ ! तुम प्रसन्नचित्त होकर मेरी बात सुनो। यह तुम्हारे शोक का नाश करने वाली और सदा ही तुम्हें सुख देनेवाली है। तुम में से जो ज्येष्ठ है, वह भगवान् विष्णु की अंशभूत हिमालय गिरि की पत्नी हो। उससे जो कन्या होगी, वह ‘पार्वती’ के नाम से विख्यात होगी। पितरों की दूसरी प्रिय कन्या, योगिनी धन्या राजा जनक की पत्नी होगी। उसकी कन्याके रूपमें महालक्ष्मी अवतीर्ण होंगी, जिनका नाम ‘सीता’ होगा। इसी प्रकार पितरोंकी छोटी पुत्री कलावती द्वापरके अन्तिम भाग में वृषभानु वैश्य की पत्नी होगी और उसकी प्रिय पुत्री ‘राधा’ के नामसे विख्यात होगी।
योगिनी मेनका (मेना) पार्वती जी के वरदान से अपने पतिके साथ उसी शरीर से कैलास नामक परमपद को प्राप्त हो जायगी। धन्या तथा उनके पति, जनक कुल में उत्पन्न हुए जीवन्मुक्त महायोगी राजा सीरध्वज, लक्ष्मीस्वरूपा सीता के प्रभाव से वैकुण्ठधाम में जायेंगे। वृषभानु के साथ वैवाहिक मंगलकृत्य सम्पन्न होने के कारण जीवन्मुक्त योगिनी कलावती भी अपनी कन्या राधा के साथ गोलोकधाम में जायगी-इसमें संशय नहीं है। विपत्ति में पड़े बिना कहाँ किन की महिमा प्रकट होती है। उत्तम कर्म करनेवाले पुण्यात्मा पुरुषको संकट जब टल जाता है, तब उन्हें दुर्लभ सुखकी प्राप्ति होती है।