सचेतन :58 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर श्री राम के रूप में मनुष्य बन कर अवतरित हुए
सचेतन :58 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर श्री राम के रूप में मनुष्य बन कर अवतरित हुए
#RudraSamhita
नारद जी को अपना असली रूप वापस मिल गया था। लेकिन भगवान विष्णु पर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि विष्णु के कारण ही उनकी बहुत ही हंसी हुई थी। वे उसी समय विष्णु जी से मिलने के लिए चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी जिनके साथ लक्ष्मी जी और विश्व मोहिनी भी थीं, से हो गई।
उन्हें देखते ही नारद जी ने कहा आप दूसरों की खुशियां देख ही नहीं सकते। आपके भीतर तो ईर्ष्या और कपट ही भरा हुआ है। समुद्र- मंथन के समय आपने श्री शिव को बावला बना कर विष और राक्षसों को मदिरा पिला दिया और स्वयं लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि को ले लिया। आप बड़े धोखेबाज और मतलबी हो।
हमेशा कपट का व्यवहार करते हो। हमारे साथ जो किया है उसका फल जरूर पाओगे। आपने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है, इसलिए मैं आपको शाप देता हूं कि आपको मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा । आपने हमें स्त्री से दूर किया है, इसलिए आपको भी स्त्री से दूरी का दुख सहना पड़ेगा और आपने मुझको बंदर का रूप दिया इसलिए आपको बंदरों से ही मदद लेना पड़े।
नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया और उन पर से अपनी माया को हटा लिया। माया के हट जाने से अपने द्वारा दिए शाप को याद कर के नारद जी को बहुत दुख हुआ किन्तु दिया गया शाप वापस नहीं हो सकता था। इसीलिए श्री विष्णु को श्री राम के रूप में मनुष्य बन कर अवतरित होना पड़ा।
शिव जी के उन दोनों गणों ने जब देखा कि नारद अब माया से मुक्त हो चुके हैं तो उन्होंने नारद जी के पास आकर और उनके चरणों में गिरकर कहा हे मुनिराज! हम दोनों शिव जी के गण हैं। हमने बहुत बड़ा अपराध किया है जिसके कारण हमें आपसे शाप मिल चुका है। अब हमें अपने शाप से मुक्त करने की कृपा करें ।
नारद जी बोलें मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता इसलिए तुम दोनों रावण और कुंभकर्ण के रूप में महान ऐश्वर्यशाली बलवान तथा तेजवान राक्षस बनोगे और अपनी भुजाओं के बल से पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करोगे। उसी समय भगवान विष्णु राम के रूप में मनुष्य शरीर धारण करेंगे। युद्ध में तुम दोनों उनके हाथों से मारे जाओगे और तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी।
भगवान शिव के 108 नाम
शिव शतनाम स्त्रोत्र
ॐ शिवाय नम:
ॐ महेश्वराय नम:
ॐ शंभवे नम:
ॐ पिनाकिने नम:
ॐ शशिशेखराय नम:
ॐ वामदेवाय नम:
ॐ विरूपाक्षाय नम:
ॐ कपर्दिने नम:
ॐ निललोहिताय नम:
ॐ शंकराय नम:
ॐ शूलपाणये नम:
ॐ खट्वांगिने नम:
ॐ विष्णुबल्लभाय नम:
ॐ शिपिविष्टाय नम:
ॐ अंबिकानाथाय नम:
ॐ श्रीकण्ठाय नम:
ॐ भक्तवत्सलाय नम:
ॐ भवाय नम:
ॐ शर्वाय नम:
ॐ त्रिलोकेशाय नम:
ॐ शितिकण्ठाय नम:
ॐ शिवाप्रियाय नम:
ॐ उग्राय नम:
ॐ कपालिने नम:
ॐ कामारये नम:
ॐ अन्धकासुर सूदनाय नम:
ॐ गंगाधराय नम:
ॐ ललताक्षाय नम:
ॐ कालकालाय नम:
ॐ कृपानिधये नम:
ॐ कृपानिधये नम:
ॐ भीमाय नम:
ॐ परशुहस्ताय नम:
ॐ मृगपाणये नम:
ॐ जटाधराय नम:
ॐ कैलासवासिने नम:
ॐ कवचिने नम:
ॐ कटोराय नम:
ॐ त्रिपुरान्तकाय नम:
ॐ वृषांकाय नम:
ॐ वृषभारूढय नम:
ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नम:
ॐ सामप्रियाय नम:
ॐ स्वरमयाय नम:
ॐ त्रयीमूर्तये नम:
ॐ अनीश्वराय नम:
ॐ सर्वज्ञाय नम:
ॐ परमात्मने नम:
ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नम:
ॐ हविषे नम:
ॐ यज्ञमयाय नम:
ॐ सोमाय नम:
ॐ पंचवक्त्राय नम:
ॐ सदाशिवाय नम:
ॐ विश्वेश्वराय नम:
ॐ विरभद्राय नम:
ॐ गणनाथाय नम:
ॐ प्रजापतये नम:
ॐ हिरण्यरेतसे नम:
ॐ दुर्धर्षाय नम:
ॐ गिरिशाय नम:
ॐ अनघाय नम:
ॐ भुजंगभूषणाय नम:
ॐ भर्गाय नम:
ॐ गिरिधन्वने नम:
ॐ गिरिप्रियाय नम:
ॐ कृत्तिवाससे नम:
ॐ पुरारातये नम:
ॐ भगवते नम:
ॐ प्रमथाधिपाय नम:
ॐ मृत्युंजयाय नम:
सूक्ष्मतनवे नम:
ॐ जगद्यापिने नम:
ॐ जगद्गुरवे नम:
ॐ व्योमकेशाय नम:
ॐ महासेनजनकाय नम:
ॐ चारुविक्रमाय नम:
ॐ रुद्राय नम:
ॐ भूतपतये नम:
ॐ स्थाणवे नम:
ॐ अहिर्बुध्न्याय नम:
ॐ दिगंबराय नम:
ॐ अष्टमूर्तये नम:
ॐ अनेकात्मने नम:
ॐ सात्विकाय नम:
ॐ शुद्दविग्रहाय नम:
ॐ शाश्वताय नम:
ॐ खण्डपरशवे नम:
ॐ अजाय नम:
ॐ पाशविमोचकाय नम:
ॐ मृडाय नम:
ॐ पशुपरये नम:
ॐ देवाय नम:
ॐ महादेवाय नम:
ॐ अव्ययाय नम:
ॐ हरये नम:
ॐ भगनेत्रभिदे नम:
ॐ अव्यक्ताय नम:
ॐ हराय नम:
ॐ दक्षाध्वरहराय नम:
ॐ पूषदन्तभिदे नम:
ॐ अव्यग्राय नम:
ॐ सहस्राक्षाय नम:
ॐ सहस्रपदे नम:
ॐ अपवर्गप्रदाय नम:
ॐ अनन्ताय नम:
ॐ तारकाय नम:
ॐ परमेश्वराय नम: