सचेतन :60 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: विष्णु और ब्रह्मा शिव से प्रकट हुए हैं
सचेतन :60 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: विष्णु और ब्रह्मा शिव से प्रकट हुए हैं #RudraSamhita
श्री नारद जी शिवजी की भक्ति में डूबे हुए देख कर ब्रह्माजी ने कहा ;– हे नारद! तुमने जगत के लोगों के हित के लिए शिव महिमा जैसी बहुत उत्तम बात पूछी है। जिसके सुनने से मनुष्य के सब जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। उस परमब्रह्म शिवतत्व का वर्णन मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं। शिव तत्व का स्वरूप बहुत सुंदर और अद्भुत है।
ब्रह्माजी द्वारा शिव तत्व का वर्णन करते हुए कहा कि एक दिन आनंदवन में घूमते समय शिव-शिवा के मन में किसी दूसरे पुरुष की रचना करने की इच्छा हुई। तब उन्होंने सोचा कि इसका भार किसी दूसरे व्यक्ति को सौंपकर हम यहीं काशी में विराजमान रहेंगे।
ऐसा सोचकर उन्होंने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल कर एक सुंदर पुरुष को प्रकट किए, जो शांत और सत्व गुणों से युक्त एवं गंभीरता का अथाह सागर था। उसकी कांति इंद्रनील मणि के समान श्याम थी। उसका पूरा शरीर दिव्य शोभा से चमक रहा था तथा नेत्र कमल के समान थे।
उस पुरुष ने हाथ जोड़कर भगवान शिव और शिवा को प्रणाम किया तथा प्रार्थना की कि मेरा नाम निश्चित कीजिए। यह सुनकर भगवान शिव हंसकर बोले कि सर्वत्र व्यापक होने से तुम्हारा नाम ‘विष्णु’ होगा, और तुम भक्तों को सुख देने वाले होओगे। तुम यहीं स्थिर रहकर तप करो और तप ही सभी कार्यों का साधन है। ऐसा कहकर शिवजी ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया तथा वहां से अंतर्धान हो गए।
तब विष्णुजी ने बारह वर्ष तक वहां दिव्य तप किया। तपस्या के कारण उनके शरीर से अनेक जलधाराएं निकलने लगीं। उस जल से सारा सूना आकाश व्याप्त हो गया। वह ब्रह्मरूप जल अपने स्पर्शमात्र से पापों का नाश करने वाला था। उस जल में भगवान विष्णु ने स्वयं शयन किया।
नार अर्थात जल में निवास करने के कारण ही वे ‘नारायण’ कहलाए। तभी से उन महात्मा से सब तत्वों की उत्पत्ति हुई। पहले प्रकृति से महान और उससे तीन गुण उत्पन्न हुए तथा उनसे अहंकार उत्पन्न हुआ। उससे शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध एवं पांच भूत प्रकट हुए। उनसे ज्ञानेंद्रियां एवं कर्मेंद्रियां बनीं। उस समय एकाकार 24 तत्व प्रकृति से प्रकट हुए एवं उनको ग्रहण करके परम पुरुष नारायण भगवान शिवजी की इच्छा से जल में सो गए।
विष्णु का निवास क्षीरसागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी) ,ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं।
कहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है. समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है. शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारे में लिखा है.
“शान्ताकारं भुजगशयनं”। पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
इसका अर्थ है भगवान विष्णु शांत भाव से शेषनाग पर आराम कर रहे हैं. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर मन में ये प्रश्न उठता है कि सर्पों के राजा पर बैठकर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? लेकिन वो तो भगवान हैं और उनके लिए सब कुछ संभव है. श्री विष्णु के पास कई अन्य शक्तियां हैं, जो आपको आश्चर्यचकित कर सकती हैं.