सचेतन :74 श्री शिव पुराण- शिव की भक्ति से दरिद्रता, रोग, दुख तथा शत्रु द्वारा दी गई पीड़ा का नाश होता है।-2

SACHETAN  > Shivpuran >  सचेतन :74 श्री शिव पुराण- शिव की भक्ति से दरिद्रता, रोग, दुख तथा शत्रु द्वारा दी गई पीड़ा का नाश होता है।-2

सचेतन :74 श्री शिव पुराण- शिव की भक्ति से दरिद्रता, रोग, दुख तथा शत्रु द्वारा दी गई पीड़ा का नाश होता है।-2

| | 0 Comments

#RudraSamhita  

भगवान शिव की भक्ति सुखमय, निर्मल एवं सनातन रूप है तथा समस्त मनोवांछित फलों को देने वाली है। यह दरिद्रता, रोग, दुख तथा शत्रु द्वारा दी गई पीड़ा का नाश करने वाली है। जब तक मनुष्य भगवान शिव का पूजन नहीं करता और उनकी शरण में नहीं जाता, तब तक ही उसे दरिद्रता, दुख, रोग और शत्रु जनित पीड़ा, ये चारों प्रकार के पाप दुखी करते हैं। 

आर्थिक चिन्तन में दरिद्रता चक्र (cycle of poverty) उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एक बार गरीबी (दरिद्रता) की स्थिति आने के बाद वह सदा के लिये बनी रहे, यदि कोई बाहरी हस्तक्षेप न किया जाय।

आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक के भेद से त्रिविध दुःख की निवृत्ति को ही यहां दुःखान्त कहा गया है । केवल ईश्वर के अनुग्रह से ही इसकी प्राप्ति होती है । ज्ञान अथवा वैराग्य से भी इसकी उपलब्धि असंभव है । यह दुःखान्त अनात्मक और सात्मक भेद से दो प्रकार का है । 

जो वास्तविक न हो:”वह काल्पनिक बातें सबको सुनाता रहता है, काल्पनिक, कल्पित, ख़याली, मनगढ़ंत, कपोल कल्पित, कपोलकल्पित, अवास्तविक, अयथार्थ, झूठा, हवाई, अप्रकृत, अयथातथ, अयाथार्थिक. जिसका आत्मा से संबंध न हो:”आत्मक विषयों की अपेक्षा अनात्मक विषयों की चर्चा अधिक रोचक लगती है”।

सात्मक यानी आत्मायुक्त आत्मा के सहित

सभी प्रकार के दुःखों का अत्यन्त उच्छेद अनात्मक दुःखान्त स्वरूप है । न्याय-वैशेषिक मत में मोक्ष का यही । दृक्शक्ति (प्रकाशरूप चैतन्य) और क्रियाशक्ति लक्षण ऐश्वर्य की अभिव्यक्ति सात्मक दुःखान्त है । 

शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक तौर पर पूर्णतः ठीक होना ही स्वास्थ्य है; केवल रोगों की अनुपस्थिति को स्वास्थ्य नहीं कहते। इनमें से किसी भी एक अवस्था का शिकार होने पर, व्यक्ति को अस्वस्थ या बीमार माना जा सकता है।

शत्रु जनित पीड़ा का अर्थ है की हम जिसके साथ भारी विरोध या वेमनस्य से रहते हैं यह रिपु, दुश्मन और एक असुर के समान है।

भय मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। विश्वास और विकास दोनों ही इससे कुंठित हो जाते हैं। भय मानसिक कमजोरी है। मन दुर्बल हो जाए तो शरीर भी दुर्बल हो जाता है। निर्भय मन स्वस्थ शरीर का आधार बनता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *