सचेतन :84 श्री शिव पुराण- कामदेव मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है
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हमारा मन कामरूप होने के कारण मदन स्वरूप है। दर्प यानी अहंकार, घमंड, गर्व, मन का एक भाव जिसके कारण व्यक्ति दूसरों को कुछ न समझे, अक्खड़पन।कंदर्प नाम का अर्थ “प्यार के देवता, कंदर्प का अर्थ है प्यार के स्वामी” होता है।
हिंदू संस्कृति में पुराणों की चर्चा खूब मिलती है। इन्हीं पुराणों में से एक है – शिव पुराण। तो क्या है इस पुराण में – सिर्फ कहानियां या कहानियों के जरिए कुछ और बताने की कोशिश की गई है?
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह सीमाहीन है, शाश्वत है। मगर चूंकि इंसानी बोध रूप और आकार तक सीमित होता है, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। गूढ़, समझ से परे ईश्वर, मंगलकारी शंभो, बहुत नादान भोले, वेदों, शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु और शिक्षक, दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, स्रष्टा के ही रक्त से रंगे भैरव, संपूर्ण रूप से स्थिर अचलेश्वर, सबसे जादुई नर्तक नटराज, आदि। यानी जीवन के जितने पहलू हैं, उतने ही पहलू शिव के बताए गए हैं।
कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है। उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं और रति उनकी पत्नी हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। उनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव आदि प्रसिद्ध हैं। कामदेव, हिंदू देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, कामदेव का अवतार है। कामदेव के आध्यात्मिक रूप को हिंदू धर्म में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण भी माना जाता है।
कामदेव का धनुष प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत उपादानों में से एक है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे विरोधाभासी अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और एक कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत, कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। यानी, कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। इनमें एक कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। दूसरा कोना विष्णु के आधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति (पेट भरने) के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है।