सचेतन :85 श्री शिव पुराण- सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है

SACHETAN  > Shivpuran >  सचेतन :85 श्री शिव पुराण- सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है

सचेतन :85 श्री शिव पुराण- सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है

| | 0 Comments

#RudraSamhita   https://sachetan.org/

कामवासना भी एक उपासना, साधना है। काम पूर्ति से दिमाग की गन्दगी निकलकर जिन्दगी सुधर जाती है। काम, जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है।

प्रत्येक प्राणी के भीतर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा काम है। वैदिक दर्शन के अनुसार काम सृष्टि के पूर्व में जो एक अविभक्त तत्व था वह विश्वरचना के लिए दो विरोधी भावों में आ गया। इसी को भारतीय विश्वास में यों कहा जाता है कि आरंभ में प्रजापति अकेला था। उसका मन नहीं लगा। उसने अपने शरीर के दो भाग। वह आधे भाग से स्त्री और आधे भाग से पुरुष बन गया। तब उसने आनंद का अनुभव किया। स्त्री और पुरुष का युग्म संतति के लिए आवश्यक है और उनका पारस्परिक आकर्षण ही कामभाव का वास्तविक स्वरूप है। 

कामदेव के अस्त्र शस्त्र धनुष प्रकृति के समान है जो सबसे ज्यादा मजबूत है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे दोनों अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और एक कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत, कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। यानी, कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। 

इनमें एक कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। 

दूसरा कोना विष्णु के आधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति (पेट भरने) के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। 

कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश (शिव) के आधीन होता है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है। 

यानी, काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का रास्ता सुझाता है। 

कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य खुद काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। 

यानी सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार के लिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *