सचेतन :91 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- अर्द्धनारीश्वर का दर्शन
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श्री शिव पुराण का शतरुद्र संहिता भगवान शिव के सर्वव्यापक होने का और उनके असंख्य अवतार लेने का व्याख्यान है। शतरुद्र संहिता का वर्णन नंदीश्वर ने किया है।
सूत जी बोले – हे शौनक जी ! भगवान शिव के सर्वव्यापक होने का और उनके असंख्य अवतार लेने का यह बात पूर्व में सनत्कुमार जी ने परम शिवभक्त नंदीश्वर से पूछी थी। तब नंदीश्वर ने भगवान शिव के चरणों का स्मरण करते हुए कहा – मुने! भगवान शिव तो सर्वव्यापक हैं और उनके असंख्य अवतार हैं।
नंदीश्वर शिव की सवारी और सभी गणपतियों के प्रमुख सेनापति भी हैं। भगवान शिव और माता पार्वती इन्हें पुत्र के समान प्रेम करते हैं। कह सकते हैं कि श्रीराम और हनुमान जैसा ही प्रेम भगवान शिव और भगवान नंदीश्वर के बीच भी है।
नंदीश्वर बोले, जब ब्रह्माजी द्वारा रची हुई इस सृष्टि का विस्तार नहीं हुआ तब वे बड़े चिंतित होकर विस्तार के उपायों के विषय में सोचने लगे। ब्रह्माजी ने विचार किया कि यदि कोई इस संबंध में मेरी मदद कर सकता है तो वे सिर्फ भगवान शिव हैं। तब अपने आराध्य देव भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु उन्होंने शिव-शिवा के संयुक्त रूप की आराधना करनी आरंभ कर दी।
उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और बोले, हे ब्रह्मान्! कहो, क्या चाहते हो? अपने मनोरथ के विषय में बताओ, ताकि मैं उसे करने में तुम्हारी मदद कर सकूं।
भगवान शिव के इस प्रकार के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव की स्तुति की और बोले, हे देवाधिदेव महादेव! शिव शंकर! आप तो अपने भक्तों के रक्षक हैं। आप उनके समस्त दुखों को दूर करके उनको अभीष्ट फल प्रदान करते हैं। भगवन्! आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने सृष्टि की रचना की है परंतु भगवन्, मेरे द्वारा रची गई सृष्टि का विस्तार नहीं हो रहा है। यदि यह कार्य इसी तरह होता रहा तो कभी भी सृष्टि में वृद्धि नहीं हो पाएगी।
तब ब्रह्माजी के इन वचनों को सुनकर भगवान शिव बोले, हे ब्रह्मान् ! मैं जानता हूं कि तुमने अपनी सृष्टि में प्रजा की वृद्धि के लिए मेरी पूजा-आराधना की है। यह कहकर शिवजी ने अपने शरीर से देवी शिवा को अलग कर दिया। देवी शिवा को वहां देखकर ब्रह्माजी देवी शिवा की स्तुति करने लगे और कहने लगे, देवी! आपके पति भगवान शिव की ही कृपा से इस सृष्टि का सृजन हुआ है।
भगवान शिव बोले, हे ब्रह्माजी! मैंने आपके मनोरथ को पूर्ण करने के लिए ही देवी शिवा को प्रकट किया है। इस सृष्टि का विस्तार तभी संभव है, जब मैथुनी सृष्टि की रचना हो । इसलिए तुम इस कार्य की पूर्ति करो। यह सुनकर ब्रह्माजी भगवान शिव और शिवा दोनों की प्रसन्नता हेतु कार्य करने लगे।
पौराणिक दृष्टि से, मैथुनी सृष्टि एक ऐसी सृष्टि जो स्त्री और पुरुष के लैंगिक संबंध से नहीं; बल्कि किसी अप्राकृतिक रूप से हुई हो। जैसे–घड़े से अगस्त्य मुनि की अथवा वैवस्वत मनु की छींक से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति।हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने मन से १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुरान के अनुसार ये मानसपुत्र ये हैं- अत्रि, अंगरिस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं।
वर्तमान समय में पूरे विश्व के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या हो गई है। पर शायद बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि सृष्टि के आरंभ में इस संसार के सृजन के लिए लोगों की रचना करना ब्रह्मा जी के लिए कितना कठिन काम था!
अंततोगत्वा ब्रह्मा जी को सृजन के कार्य को सहज करने के लिए सोलमेट (soul-mate) के कांसेप्ट का सहारा लेना पड़ा! अर्थात, दो शरीर एक आत्मा – इसी को तो अर्धनारीश्वर कहते हैं। भगवान शिव अर्धनारीश्वर कहे जाते हैं और उन्होंने इस रूप में सबसे पहले दर्शन ब्रह्मा जी को दिया था। मगर इस दर्शन को प्राप्त करने के लिए ब्रह्मा जी को अथक तपस्या करना पड़ा था।