सचेतन :92 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- मानसी और मैथुनी सृष्टि और मनु तथा शतरूपा की उत्पत्ति
#ShatRudraSamhita https://sachetan.org/
शिवजी ने जब अपने शरीर से देवी शिवा को अलग कर दिया और ब्रह्माजी देवी शिवा की स्तुति करने लगे और कहने लगे, देवी! भगवान शिव की ही कृपा से इस सृष्टि का सृजन हुआ है और इस सृष्टि का विस्तार तभी संभव है, जब मैथुनी सृष्टि की रचना हो।
सृष्टि दो प्रकार की होती है – 1- मानवी या मानसी सृष्टि अथवा ऐश्वरी सृष्टि और
2- दूसरी मैथुनी अथवा मानुषी सृष्टि कहाती है।
इनमें पहली मानवी सृष्टि कल्प के आरम्भ में ही होती है।
कल्प हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। ७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है और १४ मन्वन्तर/ १०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है।
दूसरे प्रकार की मैथुनी सृष्टि उत्पत्ति होने के पश्चात् जगत् की स्थिति दशा रहने पर्यन्त सदा प्रतिदिन व प्रतिक्षण होती है।
सृष्टि के आरम्भ में विचार व मनन शक्ति का आश्रय लेकर मनु उत्पन्न हुए, इससे मानवी सृष्टि हुई।
ब्रह्मा सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं।ब्रह्मा के सर्वप्रथम 4 मानस पुत्र हुए – सनकादिक ऋषि,फिर 10 अंगों से 10 ऋषि मानस पुत्र हुए नारद दक्ष वशिष्ठ अत्रि आदि।
मैथुनी सृष्टि को बनाने के लिए आधे अंग से मनु और आधे अंग से शतरूपा को उत्पन्न किया जो सृष्टि के आदि यानी प्रथम पुरुष व महिला है।
सृष्टि के आरम्भ में विचार व मनन शक्ति का आश्रय लेकर मनु उत्पन्न हुए, इससे मानवी सृष्टि कहाती है। मन नाम विचार के आश्रय से ही सूक्ष्म कारण से की गयी किन्तु स्थूल शरीरादि का आश्रय रखने वाले कर्म से नहीं, इसलिए प्रारम्भ की सृष्टि मानसी भी कही जाती है।
ब्रह्माजी देवी शिवा को सृष्टि के आरंभ की घटना में आपके पति देवाधिदेव भगवान शिव ने ही मेरी रचना की थी और मुझे सृष्टि की रचना करने का आदेश दिया था। जिसके फलस्वरूप मैंने अनेक पुरुषों की रचना की परंतु इतना करने पर भी उनकी वृद्धि संभव नहीं हो सकी।
इसलिए माते! मैं अपनी प्रजा की वृद्धि हेतु आपकी शरण में आया हूं। प्रजा वृद्धि तभी संभव है, जब सृष्टि का निर्माण कार्य अर्थात वृद्धि स्त्री-पुरुष के समागम से हो परंतु अभी तक मैं नारी को प्रकट नहीं कर पाया हूं।
हे शिवे! आप मुझे नारी की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें। हे सर्वेश्वरी! हे जगत जननी ! मेरे कार्य की सिद्धि हेतु आप मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लीजिए ।
ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष के बारे में यह कहा गया है की, दक्ष के प्रजापति बनने के बाद ब्रह्मा ने उसे एक काम सौंपा जिसके अंतर्गत शिव और शक्ति का मिलाप करवाना था। उस समय शिव तथा शक्ति दोनों अलग थे। इसीलिये ब्रह्मा जी ने दक्ष से कहा कि वे तप करके शक्ति माता (परमा पूर्णा प्रकृति जगदम्बिका) को प्रसन्न करें तथा पुत्री रूप में प्राप्त करें।
तपस्या के उपरांत माता शक्ति ने दक्ष से कहा,”मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लेकर शम्भु की भार्या बनूँगी। जब आप की तपस्या का पुण्य क्षीण हो जाएगा और आपके द्वारा मेरा अनादर होगा तब मैं अपनी माया से जगत् को विमोहित करके अपने धाम चली जाऊँगी। इस प्रकार सती के रूप में शक्ति का जन्म हुआ।
ब्रह्माजी की प्रार्थना को मानते हुए देवी जगदंबा ने दक्ष की पुत्री होना स्वीकार कर लिया। यह कहकर देवी शिवा ने भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर लिया। तत्पश्चात शिव-शिवा वहां से अंतर्धान हो गए। तभी से शिव-शिवा का अर्द्धनारीश्वर रूप विख्यात हुआ और इस संसार में स्त्री जाति की रचना संभव हुई। यह अर्द्धनारीश्वर स्वरूप वर्णन अत्यंत आनंददायक एवं मंगलकारी है।