सचेतन :93 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- अर्द्धनारीश्वर प्रसंग- मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि का निर्माण
ब्रह्माजी की प्रार्थना को मानते हुए देवी जगदंबा ने दक्ष की पुत्री होना स्वीकार कर लिया। यह कहकर देवी शिवा ने भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर लिया। तत्पश्चात शिव-शिवा वहां से अंतर्धान हो गए। तभी से शिव-शिवा का अर्द्धनारीश्वर रूप विख्यात हुआ और इस संसार में स्त्री जाति की रचना संभव हुई।
ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण करने का विचार किया लेकिन अब समस्या यह थी कि सृष्टि की वृद्धि कैसे हो? तब ब्रह्माजी चिंतित हो गए। तब आकाशवाणी हुई कि उन्हें मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि का निर्माण करना चाहिए ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके।
उस समय तक शिव ने विष्णु और ब्रह्माजी को ही अवतरित किया था। नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी। तब ब्रह्माजी ने शक्ति की उपासना और फिर शिव और शक्ति दोनों एक रूप यानी अर्धनारीश्वर अवतार में प्रकट हुए।
इस तरह शिव से शक्ति अलग हुईं और फिर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की। दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया।
शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर अवतार आंशिक कहा गया है। शक्ति पुन: शिव के शरीर में प्रविष्ट हो गई। उसी समय से मैथुनी सृष्टि का प्रारंभ हुआ। तभी से बराबर प्रजा की वृद्धि होने लगी।
इसी अर्धनारीश्वर रूप में शिवजी ने ब्रह्माजी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। जिससे उनके शरीर से नर और नारी भाग अलग हो गये। बाद मे उनकी इसी मैथुनी सृष्टि से संसार की वृद्धि तेजी से हुई। नर और नारी की इसी ऊर्जा का मिलन सभी सृजन का आधार है। इसलिए शिव और शक्ति एक साथ मिलकर इस ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं| अर्धनारी रूप से यह भी पता चलता है कि भगवान शक्ति के महिला सिद्धांत को भगवान शिव के पुरुष सिद्धांत से कभी अलग नहीं किया जा सकता|
अब हमलोग भगवान शिव के उन अवतारों के बारे में सुनेगें, जिन्हें सज्जनों का कल्याण शिवजी द्वारा किया गया है।