सचेतन :94 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- सद्योजात, पृथ्वी तत्व के अवतार
समय की एक गति के रूप में परिकल्पना की गई है, जिसके अनुसार सृष्टि की एक निश्चित शुरुआत तथा अंत है। यह एक सर्वव्यापी सर्वज्ञ ईश्वर की रचना है।सृष्टि अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रहा है। यह अनंतकाल तक ऐसा ही रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार सृष्टि की रचना एक सर्वव्यापी विस्फोट के साथ हुई, जिसे वह बिग-बैंग की संज्ञा देते हैं। इसके कारण ब्रह्माण्ड अब भी विस्तार पा रहा है। इसके अतिरिक्त विभिन्न दार्शनिक व्यक्तिगत स्तर पर भी इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयासरत दिखाई पड़ते हैं। जिसके अनुसार लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था।उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई अवधारणा अस्तित्व में नहीं थी।
दसवीं शताब्दी में भारतीय दार्शनिक उद्यन अपने ग्रंथ न्यायकुसुमांजलि में कहते हैं कि जिस प्रकार संसार की सभी वस्तुएं अपनी रचना तथा विकासक्रम के लिए किसी अन्य बुद्धिमान जीव पर निर्भर करती हैं, उसी प्रकार पृथ्वी भी एक वस्तु के समान है, जिसकी सृष्टि तथा विकासक्रम किसी सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान सत्ता पर निर्भर करता है तथा इस सत्ता का नाम ईश्वर है।
श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता की कथा में शौनक जी बोले, हे सूत जी! जो परमानंद हैं, जिनकी लीलाएं अनंत हैं और जो सर्वेश्वर अर्थात सबके ईश्वर हैं, जो देवी गौरी के प्रियतम तथा कार्तिकेय व विघ्न विनाशक गणेश जी के जन्मदाता हैं, उन आदिदेव भगवान शिव की हमें वंदना करनी चाहिए । हे सूत जी ! आप मुझे भगवान शिव के उन अवतारों के बारे में बताइए, जिनमें सज्जनों का कल्याण शिवजी द्वारा किया गया है।
सूत जी बोले, हे शौनक जी ! यही बात पूर्व में सनत्कुमार जी ने परम शिवभक्त नंदीश्वर से पूछी थी । तब नंदीश्वर ने भगवान शिव के चरणों का स्मरण करते हुए कहा, मुने! भगवान शिव तो सर्वव्यापक हैं और उनके असंख्य अवतार हैं।
श्वेतलोहित नामक उन्नीसवें कल्प में शिवजी का सद्योजात नामक अवतार हुआ है। यही शिवजी का प्रथम अवतार कहा जाता है। उस कल्प में परम ब्रह्म का ध्यान करते हुए ब्रह्माजी की शिखा से श्वेत लोहित कुमार उत्पन्न हुए। तब सद्योजात को शिव अवतार जानकर ब्रह्माजी प्रसन्नतापूर्वक उनका बार-बार चिंतन करने लगे।
१०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है।
सद्योजात का अर्थ है की जिसने अभी या कुछ ही समय पहले जन्म लिया हो। यह ऐसे भाव को दर्शाता है की मानो एक माँ नवजात शिशु को बार-बार दुलार रही होती है। शिवजीके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान नामक पाँच अवतारों का वर्णन है।
दार्शनिक मान्यता है कि ब्रहृमांड पंचतत्वों से बना है। ये पांच तत्व है- जल- पृथ्वी- अग्नि – वायु और आकाश। भगवान शिव पंचानन अर्थात पांच मुख वाले है। शिवपुराण में इनके इसी पंचानन स्वरूप का ध्यान बताया गया है। ये पांच मुख- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात नाम से जाने जाते है।
भगवान शंकर के पश्चिमी मुख को ‘सद्योजात’ कहा जाता है, जो श्वेतवर्ण का है। सद्योजात पृथ्वी तत्व के अधिपति है और बालक के समान परम स्वच्छ, शुद्ध और निर्विकार है। सद्योजात ज्ञानमूर्ति बनकर अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट करके विशुद्ध ज्ञान को प्रकाशित कर देते है।
पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है।
अगर हम ऊर्जा तंत्र और चक्रों की बात करें तो पृथ्वी तत्व मूलाधार से जुड़ा है। इसी आधार पर बाकी तत्व आगे बढ़ते हैं। हालांकि पृथ्वी तत्व हमारे चारों ओर के सारे भौतिक पदार्थों का भी हिस्सा है, बेहतर ये होगा कि हम इसे अपने जीवन के आधार के रूप में समझना शुरू करें क्योंकि ज्यादातर लोग वाकई में, सिर्फ अपने शरीर और मन ही का अनुभव कर पाते हैं। अपने अंदर से पृथ्वी तत्व को जानना और अनुभव करना यौगिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है।