सचेतन :97 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- वामदेव, समय और कर्म का अवतार है
रक्त नामक बीसवें कल्प में रक्तवर्ण वामदेव का अवतार हुआ। शिव के इस स्वरूप वामदेव, का संबंध संरक्षण से है। संरक्षण कर्म का और सही समय का होना चाहिए। अपने इस स्वरूप में शिव, कवि भी हैं, पालनकर्ता भी हैं और दयालु भी हैं। शिवलिंग के दाहिनी ओर पर मौजूद शिव का यह स्वरूप उत्तरी दिशा की ओर देखता है।
वामदेव की जन्म की कथा में कहा गया है की वामदेव जब माँ के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, माँ की योनि से तो सभी जन्म लेते हैं और यह कष्टकर है, अत: माँ का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की माँ को इसका आभास हो गया। अत: उसने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की।
असल में वामदेव की कथा समय के साथ साथ कर्म पर ध्यान दिलाती है, कर्म जीकर ही किया जा सकता है। जीने पर वामदेव जोर देते हैं, शिव जीव है निर्जीव नहीं। चिन्तन पर जोर या कोई भी बल नहीं देने से भी हम सिर्फ वर्तमान में जी सकते हैं और भविष्य में तो जी भी नहीं सकते।
शिव का वामदेव अवतार जीने पर जोर देता है। जैसे जोर है खाना खाने पर। अब मुझसे कोई कहे कि हम भविष्य की रोटी खाएं तो आपका कोई इनकार है? तो मैं यह कहूंगा पहली तो बात है कि भविष्य की रोटी खा नहीं सकते। सिर्फ सपना देख सकते हैं। और सपने में जो बड़ा खतरा है वह यह है कि हो सकता है आज की रोटी चूक जाए। जो बड़ा खतरा है सपने में वह यह है कि आप भविष्य की रोटी खाएं तो वर्तमान की रोटी कौन खाएगा?
और वर्तमान आपके लिए रुकता नहीं एक क्षण। आप नहीं हो मौजूद तो भी भागा चला जा रहा है, आप मौजूद हो तो भी भागा चला जा रहा है। आप हो या नहीं, इसलिए वर्तमान नहीं रुकता। वर्तमान आपके लिए रुकता नहीं, वह चला जा रहा है। समय चला जा रहा है। तो जिस क्षण में हम नहीं होते, वह क्षण खाली निकल जाता है।
और अगर एक आदमी के चित्त की ऐसी आदत बन जाए कि वह सदा भविष्य में जीने लगे तो समझना चाहिए वह पूरी जिंदगी ही चूक जाएगा। उसको पता ही नहीं चलेगाः जिंदगी कब आई और कब चली गई। क्योंकि जो नियम है, वह नियम तो यह है कि मेरे हाथ में अभी एक क्षण है, और एक साथ दो क्षण मेरे हाथ में कभी भी नहीं होते। जब भी होगा, एक ही क्षण होगा।
वैसे महावीर समय का मतलब ही यह कहते हैंः समय का वह हिस्सा जो हमारे हाथ में होता है। वह आखिरी टुकड़ा काल का जो हमारे हाथ में होता है, उसका नाम समय है। और इसलिए सामायिक का मतलब हैः उस क्षण में होना जो हमारे हाथ में है। समय का मतलब ही यह है कि मोमेंट का आखिरी टुकड़ा। क्षण का वह अंतिम एटाॅमिक हिस्सा जो हमारे हाथ में होता है। जिससे हम वस्तुओं को तोड़ें तो एटम आएगा। और अगर हम काल को तोड़ें, टाइम को तोड़ें तो समय आएगा। क्षण आएगा।
जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं।
अदिति और इंद्र ने प्रकट होकर गर्भ में स्थित वामदेव को बहुत समझाया, किंतु वामदेव नहीं माने और वामदेव ने इंद्र से कहा, “इंद्र! मैं जानता हूँ कि पूर्वजन्म में मैं ही मनु तथा सूर्य रहा हूँ। मैं ही ऋषि कक्षीवत (कक्षीवान) था। कवि उशना भी मैं ही था। मैं जन्मत्रयी को भी जानता हूँ।
वामदेव कहने लगे जीव का प्रथम जन्म तब होता है, जब पिता के शुक्र कीट माँ के शोणिक द्रव्य से मिलते है। दूसरा जन्म योनि से बाहर निकलकर है, और तीसरा जन्म मृत्युपरांत पुनर्जन्म है। यही प्राणी का अमरत्व भी है।” वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन पक्षी का रुप धारण किया तथा अपनी माता के उदय से बाहर निकल आये।