सचेतन 3.21 : गहरी योग साधना की पराकाष्ठा

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केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं 

नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में.  आज हम चर्चा करेंगे एक ऐसे योगिक सिद्धांत के बारे में, जिसे समझना और अनुभव करना साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है—”केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं।” यह कथन योग की गहरी साधना और उसकी पराकाष्ठा को दर्शाता है। आइए, इस पर गहराई से विचार करें।

कुम्भक का अर्थ:

कुम्भक प्राणायाम की एक अवस्था है, जिसमें श्वास को रोककर रखा जाता है। यह श्वास की स्थिरता और नियंत्रण का प्रतीक है। कुम्भक के दो प्रकार होते हैं—अन्तर कुम्भक (श्वास अन्दर खींचकर रोकना) और बहिर्कुम्भक (श्वास बाहर निकालकर रोकना)। कुम्भक का अभ्यास हमारे प्राण (जीवन ऊर्जा) को नियंत्रित करने और उसे सही दिशा में प्रवाहित करने में मदद करता है।

  1. अन्तर कुम्भक:
    • जब हम श्वास को अन्दर खींचकर रोकते हैं, तो उसे अन्तर कुम्भक कहा जाता है। यह प्राणायाम की गहरी अवस्था है, जिसमें मन और शरीर दोनों स्थिर हो जाते हैं।
  2. बहिर्कुम्भक:
    • जब हम श्वास को बाहर निकालकर रोकते हैं, तो उसे बहिर्कुम्भक कहा जाता है। यह प्राणायाम की वह अवस्था है, जिसमें सभी बाहरी विचार और विकार समाप्त हो जाते हैं।

“केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं” का अर्थ:

यह कथन योग साधना की गहरी अवस्था का प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि जब साधक कुम्भक की गहन अवस्था में प्रवेश करता है, तो वह श्वास को रोकने या न रोकने के बोध से परे चला जाता है। यह वह स्थिति है जहाँ श्वास की पूरी प्रक्रिया स्वतः ही हो जाती है और साधक को इसका कोई भान नहीं रहता।

  1. श्वास की प्रक्रिया से परे:
    • इस अवस्था में साधक श्वास की प्रक्रिया से पूरी तरह से परे हो जाता है। श्वास का आना और जाना उसके लिए अप्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि वह उस स्थिति में प्रवेश कर जाता है जहाँ केवल शांति और स्थिरता होती है।
  2. एकाग्रता और ध्यान की गहराई:
    • “केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं” का मतलब यह भी है कि साधक की एकाग्रता और ध्यान की गहराई इतनी अधिक हो जाती है कि वह श्वास की प्रक्रिया से परे हो जाता है। यह अवस्था ध्यान की पराकाष्ठा को दर्शाती है।
  3. समाधि की अवस्था:
    • यह अवस्था समाधि की ओर इशारा करती है, जहाँ साधक शारीरिक और मानसिक सीमाओं से परे जाकर आत्मा के साथ एकाकार हो जाता है। यह योग साधना की उच्चतम अवस्था है।

इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधना:

  1. नियमित अभ्यास:
    • इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए नियमित और गहन प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास आवश्यक है। इसके लिए साधक को अपने श्वास पर पूर्ण नियंत्रण और ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  2. धैर्य और संयम:
    • इस अवस्था को प्राप्त करने में समय लगता है। इसलिए, साधक को धैर्य और संयम का पालन करना चाहिए। यह स्थिति साधना के निरंतर अभ्यास और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से प्राप्त होती है।
  3. गुरु का मार्गदर्शन:
    • इस गहन अवस्था को प्राप्त करने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। गुरु के निर्देशों के अनुसार साधना करने से साधक को इस अवस्था को समझने और अनुभव करने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष:

“केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं” का अर्थ है कि जब साधक प्राणायाम की गहरी अवस्था में प्रवेश करता है, तो वह श्वास की प्रक्रिया से परे हो जाता है। यह स्थिति योग साधना की उच्चतम अवस्था है, जहाँ साधक आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में अग्रसर होता है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए नियमित अभ्यास, धैर्य, संयम, और गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।

आज के सत्र में इतना ही। हमें आशा है कि आपको “केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं” के इस गहन और आध्यात्मिक विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और अपनी साधना को गहराई तक ले जाएँ।

नमस्कार!

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