पंचतंत्र की कथा-10 : धोखा और लालच: साधू देव शर्मा की कहानी
नमस्कार दोस्तों, स्वागत है! आज हम सुनाएंगे एक रोचक और शिक्षाप्रद पंचतंत्र की कहानी, जिसमें हमारे साथ हैं साधू देव शर्मा और एक चालाक ठग। यह कहानी हमें मनुष्य के स्वभाव, लालच, और विश्वास के बारे में महत्वपूर्ण सबक देती है। तो आइए शुरू करते हैं…
कहानी की शुरुआत:
किसी समय की बात है, एक गाँव के मंदिर में देव शर्मा नाम का एक प्रतिष्ठित साधू रहता था। वह भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करता और गाँव के लोग उसकी साधुता और सेवा भावना के कारण उसका बहुत सम्मान करते थे। साधू जी को गाँव के लोग तरह-तरह के उपहार, वस्त्र, और खाद्य सामग्री दान में दिया करते थे। साधू जी ने धीरे-धीरे उन वस्त्रों और उपहारों को बेचकर अच्छा-खासा धन इकट्ठा कर लिया था।
हालांकि, देव शर्मा एक बात को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे—उनका धन। उन्होंने अपने धन को एक पोटली में बाँध रखा था, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे। वे किसी पर भी पूरी तरह से विश्वास नहीं करते थे और अपने धन की सुरक्षा को लेकर हमेशा सतर्क रहते थे।
ठग की योजना:
उसी गाँव में एक चालाक ठग भी रहता था। उस ठग की नजर काफी समय से साधू जी की पोटली पर थी। उसने कई बार साधू का पीछा किया, लेकिन साधू कभी अपनी पोटली को अपने से अलग नहीं करते थे। ठग को समझ आ गया कि अगर उसे इस धन को पाना है, तो उसे साधू का विश्वास जीतना होगा।
ठग ने एक दिन एक नया रूप धारण किया। उसने छात्र का वेश पहनकर साधू के पास पहुंचा और साधू से कहा, “महाराज, मैं ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ। कृपया मुझे अपना शिष्य बना लें।” साधू जी एक दयालु व्यक्ति थे, उन्होंने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे अपना शिष्य बना लिया। इस तरह से ठग ने साधू के साथ रहना शुरू कर दिया।
ठग का विश्वास जीतना:
शिष्य बनने के बाद ठग ने साधू जी की बहुत सेवा की। उसने मंदिर की सफाई की, साधू जी का ख्याल रखा, और हर वह काम किया जिससे साधू जी को खुश रखा जा सके। धीरे-धीरे ठग साधू जी का विश्वासपात्र बन गया और साधू को लगने लगा कि यह शिष्य वास्तव में उसकी भलाई के लिए है।
साधू की यात्रा और धोखा:
एक दिन साधू जी को पास के गाँव में एक अनुष्ठान के लिए बुलावा आया। उन्होंने अपने शिष्य को भी साथ चलने के लिए कहा। यात्रा के दौरान उन्हें एक नदी पार करनी पड़ी। साधू जी ने स्नान करने की इच्छा व्यक्त की और उन्होंने अपनी पोटली को एक कम्बल में रखकर नदी किनारे छोड़ दिया। उन्होंने अपने शिष्य से कहा, “इस पोटली का ध्यान रखना।” यह वही क्षण था जिसका ठग को इंतजार था।
जैसे ही साधू जी स्नान करने के लिए नदी में डुबकी लगाने लगे, ठग तुरंत पोटली उठाकर भाग निकला। साधू जी, जिन्होंने ठग पर पूरा विश्वास किया था, उसी ने उनकी मेहनत की सारी संपत्ति चुरा ली।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है—विश्वास सोच-समझकर करना चाहिए। ठग ने अपनी चालाकी और मीठी बातों से साधू जी का विश्वास जीता और अंत में उन्हें धोखा दिया। हमें यह समझना चाहिए कि हर कोई वैसा नहीं होता जैसा वह दिखता है। हमें अपने आसपास के लोगों पर भरोसा करने से पहले उनकी नीयत और उनके व्यवहार को अच्छे से समझ लेना चाहिए।
कहानी का एक और पहलू यह भी है कि धन और संपत्ति के प्रति अति मोह मनुष्य को अपने आदर्शों से भटका सकता है। साधू देव शर्मा, जो पहले एक त्यागमयी जीवन जी रहे थे, अपनी संपत्ति के प्रति मोह के कारण असुरक्षित महसूस करने लगे। यही असुरक्षा और विश्वास का गलत चुनाव अंततः उनके पतन का कारण बना।
समाप्ति और संदेश:
तो दोस्तों, यह थी साधू देव शर्मा की कहानी। इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि किसी अजनबी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर जल्दी से विश्वास नहीं करना चाहिए। साथ ही, यह भी जानना आवश्यक है कि बहुत अधिक धन-संपत्ति की लालसा और सुरक्षा की चिंता, जीवन में शांति को छीन लेती है।
आशा है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी और इससे कुछ नई बातें सीखने को मिली होंगी। हम फिर मिलेंगे एक नई और दिलचस्प कहानी के साथ। तब तक खुश रहें, सतर्क रहें, और सच्ची शांति की खोज करते रहें। धन्यवाद!