सचेतन, पंचतंत्र की कथा-23 : सिंह और खरगोश की कथा-2
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में में, जहाँ हम पंचतंत्र से अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ सुनते हैं।
सभी जानवरों के बातों को सुनने के बाद सिंह ने कहा, “तुम सब सही कह रहे हो। लेकिन ध्यान रहे, अगर रोज एक जानवर मेरे पास नहीं आया तो मैं सभी को मार डालूंगा।” जानवरों ने इस शर्त को मान लिया और प्रतिज्ञा की कि हर दिन एक जानवर अपनी बारी से सिंह के पास जाएगा। इस समझौते से वे सभी जानवर निश्चिंत हो गए और अब वे जंगल में निडर होकर घूमने लगे।
जंगल में जानवरों की बारी के अनुसार एक दिन खरगोश की बारी आई। सभी जानवरों ने उसे सिंह के पास भेजने का दबाव डाला, लेकिन खरगोश चिंतित था और अपने बचाव के उपाय सोचता हुआ धीरे-धीरे चल रहा था। चलते-चलते उसने एक कुआँ देखा और कुएं में अपनी परछाई देखी। उसे देखकर एक तरकीब उसके दिमाग में आई। उसने सोचा, “मैं अपनी बुद्धि से भासुरक सिंह को गुस्सा दिलाकर इस कुएं में गिरा दूँगा।”
खरगोश कुछ देर बाद सिंह के पास पहुँचा। भूखा और गुस्से से भरा हुआ सिंह बहुत क्रोधित था। उसकी भूख बढ़ चुकी थी, और वह इंतजार करते-करते सोच रहा था कि अगर उसे जल्दी खाना नहीं मिला, तो वह सारे जंगल को ही निर्जीव बना देगा। जैसे ही खरगोश उसके पास पहुँचा, सिंह ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अरे नीच खरगोश! तू एक तो छोटा निवाला है और ऊपर से देर से आया है। इस अपराध के कारण मैं तुझे मारकर कल सुबह सारे जंगल के जानवरों को भी खा जाऊँगा।”
खरगोश की चतुराई:
खरगोश ने नम्रता से कहा, “स्वामी! इसमें न मेरा दोष है, न दूसरे जानवरों का। देर होने का एक कारण है, जिसे आपको सुनना चाहिए।” सिंह ने गुस्से से कहा, “जल्दी से बता, इसके पहले कि मैं तुझे खा जाऊँ।” खरगोश ने कहा, “स्वामी! सभी जानवरों ने मिलकर मुझे पाँच खरगोशों के साथ भेजा था। जब हम आ रहे थे, तभी रास्ते में एक और सिंह अपनी माँद से निकलकर हमें रोक लिया। उसने हमसे कहा, ‘तुम सब कहाँ जा रहे हो? अब अपने इष्ट देवता को याद कर लो!’ मैंने उससे कहा कि हम सब आपके पास, भासुरक सिंह के पास, आपके भोजन के लिए जा रहे हैं।”
खरगोश ने आगे कहा, “उस दूसरे सिंह ने हमसे कहा, ‘यह पूरा जंगल मेरा है, इसलिए सभी जानवरों को मेरे ही पास रहना चाहिए। भासुरक तो एक चोर है। अगर वह राजा है, तो उसे यहाँ बुलाओ। हम दोनों में जो असली राजा होगा, वह इन सब जानवरों को खा सकेगा।’ उसकी आज्ञा मिलने पर ही मैं आपके पास आया हूँ। इसी कारण मुझे देर हो गई। अब आपकी आज्ञा है कि आप क्या करना चाहेंगे।”
खरगोश ने सिंह से कहा, “स्वामी! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। आमतौर पर लोग अपनी जमीन या सम्मान की रक्षा के लिए ही लड़ाई करते हैं। लेकिन वह दूसरा सिंह किले में रहता है, और वहीं से निकलकर उसने मुझे रोका था। किले में रहने वाले से लड़ना बहुत मुश्किल होता है।”
खरगोश ने आगे समझाया, “जैसा कहा गया है, ‘हजार हाथियों और लाख घोड़ों से जो काम युद्ध में नहीं होता, वह एक मजबूत किले से हासिल हो जाता है।’ किले की दीवार पर खड़ा एक तीरंदाज सौ लोगों को रोक सकता है। इसलिए नीति-शास्त्र भी कुशल किले की प्रशंसा करते हैं।”
इस प्रकार खरगोश ने सिंह को और भी गुस्सा दिलाते हुए यह यकीन दिलाया कि दूसरा सिंह बहुत ताकतवर है, और उसका किले में रहना उसे हराने को मुश्किल बना देता है। इसका उद्देश्य था कि सिंह खुद को चुनौती महसूस करे और गुस्से में आकर गलत कदम उठाए।
खरगोश ने अपनी योजना को आगे बढ़ाते हुए सिंह से कहा, “पूर्व समय में हिरण्यकशिपु के डर से, बृहस्पति की आज्ञा और विश्वकर्मा के प्रभाव से इन्द्र ने भी किला बनाया था। कहा जाता है कि जिस राजा के पास किला होता है, वह राजा विजयी होता है। इसलिए दुनिया में हजारों किले बनाए गए। जैसे दांत के बिना सर्प या मद के बिना हाथी सभी के वश में आ जाता है, उसी तरह किले के बिना राजा भी कमजोर हो जाता है।”
सिंह ने गुस्से में आकर कहा, “किले में रहते हुए भी उस चोर सिंह को मुझे दिखाओ, ताकि मैं उसे मार सकूँ। कहा भी गया है कि जो व्यक्ति शत्रु और रोग को जन्मते ही खत्म नहीं करता, तो वे बाद में बड़े होकर उसे खत्म कर देते हैं, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। इसी तरह जो अपना भला चाहता है, वह उभरते हुए शत्रु की उपेक्षा नहीं करता। समझदार व्यक्ति बढ़ते हुए शत्रु और बढ़ती बीमारी को समान मानते हैं। यदि बेपरवाही से कमजोर दुश्मन को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो वह बाद में असाध्य हो जाता है।”
सिंह ने आगे कहा, “जो व्यक्ति अपने बल पर विश्वास करके मान और उत्साह को बनाए रखता है, वह अकेले होने पर भी परशुराम की तरह अपने शत्रुओं का नाश कर सकता है।”
खरगोश ने नम्रता से जवाब दिया, “स्वामी, ऐसा होने पर भी मैंने उस सिंह का बल देखा है। इसलिए बिना उसके बल को समझे सीधे जाना ठीक नहीं है। जैसा कहा गया है, ‘जो व्यक्ति अपने और अपने शत्रु का बल बिना समझे हड़बड़ी में लड़ाई करता है, वह आग में गिरने वाले पत्ते की तरह नष्ट हो जाता है।’ और ‘जो अपने ही बल पर उन्नत शत्रु को मारने का प्रयास करता है, वह शक्तिशाली होने के बावजूद, मद रहित और टूटे दांत वाले हाथी की तरह हारकर पीछे हट जाता है।'”
इस प्रकार खरगोश ने सिंह को चुनौती देने का साहस और उसके बारे में संदेह पैदा किया, ताकि सिंह अपने अहंकार में आकर गलती करे और खरगोश की योजना सफल हो सके। खरगोश ने समझदारी से सिंह को अपने जाल में फंसाया और उसे गलत निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया।
खरगोश ने भासुरक सिंह के गुस्से और अहंकार को और भी भड़काते हुए कहा, “स्वामी! आपको इन सारी बातों से क्या लेना-देना? उस किले में बंद चोर सिंह को मैं आपको दिखाऊँगा।” सिंह ने आदेश दिया कि खरगोश उसे तुरंत वहां ले जाए। इस पर खरगोश ने कहा, “अगर ऐसा है तो आप मेरे साथ आइए।”