सचेतन, पंचतंत्र की कथा-24 : सिंह और खरगोश की कथा-3
एक दिन खरगोश की बारी आई। खरगोश चिंतित था लेकिन उसने अपनी चतुराई से सिंह को मारने की योजना बनाई। रास्ते में उसे एक कुआँ मिला, और उसकी परछाई देखकर उसने सोचा कि इसी कुएं का इस्तेमाल कर सिंह को गुस्सा दिलाकर फंसाया जा सकता है। सिंह के पास देर से पहुँचने पर उसने सिंह से कहा कि एक और सिंह उसे रोक रहा था और दावा कर रहा था कि वही जंगल का असली राजा है। इससे सिंह को बहुत गुस्सा आया और उसने उस दूसरे सिंह को मारने का निश्चय किया।
खरगोश सिंह को लेकर उस कुएं के पास पहुंचा जिसे उसने पहले देखा था। उसने सिंह से कहा, “स्वामी! आपके तेज से कौन मुकाबला कर सकता है? आपको दूर से ही देखकर वह चोर सिंह अपने किले में घुस गया है। आइए, मैं आपको दिखाता हूँ।” भासुरक सिंह ने कहा, “जल्दी से मुझे वह किला दिखाओ।”
खरगोश ने सिंह को कुएं के पास ले जाकर कहा, “स्वामी! यहाँ वह छिपा है।” सिंह ने कुएं में झाँककर देखा, तो पानी में उसे अपनी ही परछाई दिखाई दी। मूर्ख सिंह यह समझ बैठा कि कुएं में उसका शत्रु छिपा हुआ है। उसने क्रोध में आकर जोर से दहाड़ लगाई, जिससे उसकी गूंज और भी बढ़ गई और दुगुनी आवाज कुएं से वापस आई। अपने अहंकार और गुस्से में अंधा होकर सिंह ने कुएं में छलांग लगा दी और इस तरह अपने प्राण गंवा दिए।
इस प्रकार, खरगोश ने अपनी चतुराई से जंगल के सभी जानवरों को उस क्रूर सिंह से मुक्त कर दिया।
इसीलिए कहा जाता है, “जिसके पास बुद्धि होती है, वही असली बलवान होता है।” दमनक ने करटक से कहा, “अगर आप चाहें, तो मैं भी अपनी चतुराई से दोनों की मित्रता तोड़ दूँ।” करटक ने उत्तर दिया, “भद्र! अगर यह तुम्हारा विचार है, तो जाओ। तुम्हारा रास्ता शुभ हो, और तुम अपनी इच्छा के अनुसार जो उचित समझो, वह करो।”
इस प्रकार, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ताकत और बल से अधिक महत्वपूर्ण बुद्धि और चतुराई है। अपनी समझदारी से कठिन से कठिन परिस्थितियों का हल निकाला जा सकता है, जैसे खरगोश ने सिंह का अंत कर दिया।
इस प्रकार, खरगोश ने अपनी चतुराई से जंगल के सभी जानवरों को उस क्रूर सिंह से मुक्त कर दिया।
इसीलिए कहा जाता है, “जिसके पास बुद्धि होती है, वही असली बलवान होता है।” दमनक ने करटक से कहा, “अगर आप चाहें, तो मैं भी अपनी चतुराई से दोनों की मित्रता तोड़ दूँ।” करटक ने उत्तर दिया, “भद्र! अगर यह तुम्हारा विचार है, तो जाओ। तुम्हारा रास्ता शुभ हो, और तुम अपनी इच्छा के अनुसार जो उचित समझो, वह करो।”
इस प्रकार, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ताकत और बल से अधिक महत्वपूर्ण बुद्धि और चतुराई है। अपनी समझदारी से कठिन से कठिन परिस्थितियों का हल निकाला जा सकता है, जैसे खरगोश ने सिंह का अंत कर दिया।
पंचतंत्र की प्रारंभिक कहानियों को हम देखेंगे कि कैसे दमनक ने अपनी चतुराई और अवसर का लाभ उठाते हुए पिंगलक को अपने जाल में फंसाने का प्रयास किया। जब संजीवक से अलग पिंगलक अकेला था, दमनक ने उसे प्रणाम किया और उसके पास बैठ गया। पिंगलक ने उससे पूछा कि वह इतने दिनों से कहाँ गायब था। इस पर दमनक ने बड़ी चालाकी से जवाब देते हुए कहा कि उसे लगा था कि पिंगलक को उसकी जरूरत नहीं है, लेकिन अब राज-काज में हो रही समस्याओं को देखकर वह खुद यहाँ आया है।
दमनक ने आगे पिंगलक के मन में संजीवक के प्रति संदेह पैदा करने की कोशिश की। उसने पिंगलक से कहा कि संजीवक उसके साथ विश्वासघात कर रहा है और सिंह के स्थान पर खुद राजा बनने की योजना बना रहा है। पिंगलक को इस बात पर विश्वास करना कठिन लग रहा था, लेकिन दमनक ने अपनी चालाकी से उसे और भी भड़काने की कोशिश की।
आज की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे अवसरवादी लोग अपनी चालाकी से दूसरों को गुमराह करने का प्रयास करते हैं। खरगोश ने सिंह को कुएं के पास ले जाकर उसकी परछाई दिखाई। सिंह ने कुएं में अपनी ही परछाई को अपना शत्रु समझा और दहाड़ लगाई। क्रोध में आकर सिंह ने कुएं में छलांग लगा दी और इस तरह उसने अपने प्राण गंवा दिए। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है। कभी-कभी बुद्धिमानी और सूझबूझ ही असली ताकत होती है। धन्यवाद, और अगली बार फिर मिलते हैं “सचेतन” के अगले सत्र में, जहाँ हम सुनेंगे पंचतंत्र की अगली कथा!