सचेतन 3.23 : नाद योग: सिद्धासन

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सचेतन 3.23 : नाद योग: सिद्धासन

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सचेतन 3.23 : नाद योग: सिद्धासन 

नियमित अभ्यास मन और शरीर को शुद्ध करता है

नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में। सिद्धासन ध्यान और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

सिद्धासन की सामान्य विधि:

  1. दण्डासन में बैठना:
    • सबसे पहले एक साफ और शांत स्थान पर योगा मैट बिछाएं और दण्डासन में बैठ जाएँ। दण्डासन में बैठने के लिए पैरों को सामने की ओर सीधा रखें और हाथों को शरीर के दोनों ओर रखें।
  2. बाएँ पैर की स्थिति:
    • बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को गुदा और उपस्थेन्द्रिय के बीच इस प्रकार से दबाकर रखें कि बाएं पैर का तलुआ दाएँ पैर की जाँघ को स्पर्श करे।
  3. दाएँ पैर की स्थिति:
    • अब दाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को उपस्थेन्द्रिय (शिशन) के ऊपर इस प्रकार दबाकर रखें कि दाएँ पैर का तलुआ बाएँ पैर की जाँघ को स्पर्श करे।
  4. हाथों की स्थिति:
    • दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। ज्ञान मुद्रा के लिए, अपने हाथ की तर्जनी उंगली को अंगूठे के साथ मिलाएं और बाकी उंगलियों को सीधा रखें।
  5. रीढ़ की हड्डी सीधी रखें:
    • ध्यान रहे कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। इससे ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है और शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सही रहता है।
  6. दृष्टि और जालन्धर बन्ध:
    • अपनी दृष्टि को भ्रूमध्य (दोनों भौंहों के बीच) टिकाएँ और जालन्धर बन्ध लगाएँ। जालन्धर बन्ध के लिए, अपनी ठोड़ी को छाती की ओर लाएं और गले को बंद करें।
  7. श्वास का नियंत्रण:
    • अब अपनी श्वास को धीरे-धीरे लें और छोड़ें। श्वास की गति को नियंत्रित करते हुए ध्यान को गहराई में प्रवेश करने दें।

सिद्धासन के लाभ:

  1. सभी सिद्धियों की प्राप्ति:
    • यह आसन सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला एकमात्र आसन है।
  2. मन की शुद्धि:
    • इस आसन के अभ्यास से साधक का मन विषय वासना से मुक्त हो जाता है।
  3. समाधि अवस्था:
    • इसके अभ्यास से निष्पत्ति अवस्था, समाधि की अवस्था प्राप्त होती है।
  4. तीनों बंधों का स्वतः लगना:
    • इसके अभ्यास से स्वतः ही तीनों बंध (जालंधर, मूलबन्ध तथा उड्डीयन बंध) लग जाते हैं।
  5. नाड़ियों का शुद्धिकरण:
    • इस आसन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है।
  6. प्राण की ऊर्ध्वगति:
    • प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है, जिससे मन एकाग्र होता है और विचार पवित्र बनते हैं।
  7. ब्रह्मचर्य में सहायक:
    • ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है।

अन्य लाभ:

  • पाचनक्रिया नियमित होती है।
  • श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं।
  • मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है।
  • पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं, वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।

सावधानियाँ:

  • गृहस्थ लोगों को इस आसन का अभ्यास लंबे समय तक नहीं करना चाहिए।
  • सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करना चाहिए।
  • साइटिका, स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • घुटने में दर्द हो, जोड़ो का दर्द हो या कमर दर्द की शिकायत हो, उन्हें भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • गुदा रोगों जैसे बवासीर आदि से पीड़ित रोगी भी इसका अभ्यास न करें।

निष्कर्ष:

सिद्धासन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली योगासन है जो सभी सिद्धियों को प्रदान करता है। इसका नियमित अभ्यास मन और शरीर को शुद्ध करता है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करता है। हमें इसे सावधानीपूर्वक और सही विधि से करना चाहिए।

आज के सत्र में इतना ही। हमें आशा है कि आपको सिद्धासन के इस गहन विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें और योग के माध्यम से अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाएं।

नमस्कार!

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