सचेतन 2.18: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – सुरसा ने अपने मुँह का विस्तार सौ योजन का किया था

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सूर्य सिद्धान्त में 1 योजन 8 किलोमीटर के बराबर होता है 

देवताओं द्वारा हनुमान जी के बल और पराक्रम की परीक्षा लेने की इक्षा को  सत्कारपूर्वक देवी सुरसा ने स्वीकार किया और समुद्र के बीच में राक्षसी का रूप धारण किया। वह समुद्र के पार जाते हुए हनुमान् जी को घेरकर उनसे इस प्रकार बोली- ‘कपिश्रेष्ठ! देवेश्वरों ने तुम्हें मेरा भक्ष्य बताकर मुझे अर्पित कर दिया है, अतः मैं तुम्हें खाऊँगी तुम मेरे इस मुँह में चले आओ। ‘पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने मुझे यह वर दिया था। ऐसा कहकर वह तुरंत ही अपना विशाल मुँह फैलाकर हनुमान् जी के सामने खड़ी हो गयी। 

सुरसा के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने प्रसन्न मुख होकर कहा- देवि! दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजी अपने भाई लक्ष्मण और धर्मपत्नी सीताजी के साथ दण्डकारण्य में आये थे, वहाँ परहित-साधन में लगे हुए श्रीराम का राक्षसों के साथ वैर बँध गया। दण्डकारण्य/ दण्डक वन प्राचीन भारत का एक क्षेत्र है जो ये वर्तमान में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में आता है।

रावण ने उनकी यशस्विनी भार्या सीता को हर लिया। मैं श्रीराम की आज्ञा से उनका दूत बनकर सीताजी के पास जा रहा हूँ। तुम भी श्रीराम के राज्य में निवास करती हो। अतः तुम्हें उनकी सहायता करनी चाहिये। अथवा (यदि तुम मुझे खाना ही चाहती हो तो) मैं सीताजी का दर्शन करके अनायास ही महान् कर्म करने वाले श्रीरामचन्द्रजी से जब मिल लूँगा, तब तुम्हारे मुख में आ जाऊँगा—यह तुमसे सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूँ। 

हनुमान जी के ऐसा कहने पर इच्छानुसार रूप धारण करने वाली सुरसा बोली— ‘मुझे यह वर मिला है कि कोई भी मुझे लाँघकर आगे नहीं जा सकता’। फिर भी हनुमान जी को जाते देख उनके बल को जानने की इच्छा रखने वाली नागमाता सुरसा ने उनसे कहा— ‘वानरश्रेष्ठ! आज मेरे मुख में प्रवेश करके ही तुम्हें आगे जाना चाहिये। पूर्वकाल में विधाता ने मुझे ऐसा ही वर दिया था। ऐसा कहकर सुरसा तुरंत अपना विशाल मुँह फैलाकर हनुमान जी के सामने खड़ी हो गयी। 

सुरसा के ऐसा कहने पर वानरशिरोमणि हनुमान जी कुपित हो उठे और बोले— ‘तुम अपना मुँह इतना बड़ा बना लो जिससे उसमें मेरा भार सह सको’ यों कहकर जब वे मौन हुए, तब सुरसा ने अपना मुख दस योजन विस्तृत बना लिया। यह देखकर कुपित हुए हनुमान् जी भी तत्काल दस योजन बड़े हो गये। उन्हें मेघ के समान दस योजन विस्तृत शरीर से युक्त हुआ देख सुरसा ने भी अपने मुख को बीस योजन बड़ा बना लिया। 

योजन को भारतीय खगोलविदों ने अलग-अलग तरीक़े से दूरी मापने का साधन बताया है। सूर्य सिद्धान्त में 1 योजन को 8 किलोमीटर के बराबर होता है आर्यभटीय में भी 1 योजन को 8 मील लिया गया है। भास्कराचार्य के सिद्धान्त शिरोमणि में पृथ्वी का व्यास 1581 योजन बताया गया है, इस आधार पर भी योजन 8 किलोमीटर ही आता है। 

तब हनुमान जी ने क्रुद्ध होकर अपने शरीर को तीस योजन अधिक बढ़ा दिया। फिर तो सुरसा ने भी अपने मुँह को चालीस योजन ऊँचा कर लिया। यह देख वीर हनुमान् पचास योजन ऊँचे हो गये। तब सुरसा ने अपना मुँह साठ योजन ऊँचा बना लिया। फिर तो वीर हनुमान् उसी क्षण सत्तर योजन ऊँचे हो गये। अब सुरसा ने अस्सी योजन ऊँचा मुँह बना लिया। 

तदनन्तर अग्नि के समान तेजस्वी हनुमान् नब्बे योजन ऊँचे हो गये। यह देख सुरसा ने भी अपने मुँह का विस्तार सौ योजन का कर लिया। 

सुरसा के फैलाये हुए उस विशाल जिह्वा से युक्त और नरक के समान अत्यन्त भयंकर मुँह को देखकर बुद्धिमान् वायुपुत्र हनुमान् ने मेघ की भाँति अपने शरीर को संकुचित कर लिया। वे उसी क्षण अँगूठे के बराबर छोटे हो गये।

फिर वे महाबली श्रीमान् पवनकुमार सुरसा के उस मुँह में प्रवेश करके तुरंत निकल आये और आकाश में खड़े होकर इस प्रकार बोले- ‘दक्षकुमारी! तुम्हें नमस्कार है। मैं तुम्हारे मुँह में प्रवेश कर चुका। लो तुम्हारा वर भी सत्य हो गया। अब मैं उस स्थान को जाऊँगा, जहाँ विदेहकुमारी सीता विद्यमान हैं।

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