सचेतन, पंचतंत्र की कथा-31 : सूचीमुख और बंदर की कथा
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके पसंदीदा कार्यक्रम “सचेतन” में, जहाँ हम प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक कहानियों के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सीखते हैं। आज की कहानी है “सूचीमुख और बंदर की कथा”। यह कहानी हमें सिखाती है कि जहाँ समझदारी से काम लेने की जरूरत हो, वहाँ मूर्खों के साथ व्यर्थ की बहस करना कितनी बड़ी भूल हो सकती है। तो चलिए, कहानी शुरू करते हैं।सूचीमुख पक्षी को अंग्रेज़ी में स्पैरो (Sparrow) कहते हैं। यह पैसर वंश का पक्षी है। यह दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों में पाया जाता है। इंसानों ने इसे दुनिया भर में फैला दिया है।
कथा:
किसी पहाड़ी प्रदेश में बंदरों का एक झुंड रहता था। हेमंत ऋतु की ठंडी हवाओं और लगातार गिरती बारिश से बचने के लिए वे बहुत परेशान थे। ठंड के कारण कांपते हुए, बंदरों ने जामुन जैसे लाल बीजों, जिन्हें घुमचियां कहते हैं, को आग के अंगारे समझ लिया। उन्होंने घुमचियों को इकट्ठा किया और फूंकने लगे, यह सोचते हुए कि इससे आग जल जाएगी और वे ठंड से बच सकेंगे।
उन्हें इस तरह मेहनत करते देख, पास ही बैठा सूचीमुख नाम का एक पक्षी चकित हो गया। उसने बंदरों के इस प्रयास को व्यर्थ मानते हुए कहा, “अरे मूर्खो! ये अंगारे नहीं, घुमचियां हैं। इन्हें फूंकने से आग नहीं जलेगी। तुम इस बेकार की मेहनत में क्यों लगे हो? बेहतर होगा कि तुम किसी वन, गुफा, या पर्वत कंदरा में जाकर ठंड से बचने का उपाय करो।”
बंदरों में से एक बूढ़े बंदर ने यह सुनते ही गुस्से में कहा, “अरे मूर्ख पक्षी! तुझे हमारे काम में दखल देने की क्या जरूरत है? चुपचाप यहाँ से भाग जा। कहा गया है कि जो संकट में पड़े मूर्ख से या हारे हुए जुआरी से अपना भला चाहता है, उसे बोलने से नुकसान होता है।”
लेकिन सूचीमुख पक्षी ने बूढ़े बंदर की बात को नजरअंदाज कर दिया और अन्य बंदरों को सलाह देना जारी रखा, “तुम लोग व्यर्थ में अपना समय और मेहनत बर्बाद कर रहे हो। यह सब तुम्हारे किसी काम का नहीं है।” उसकी यह बात सुनकर ठंड और गुस्से से परेशान एक बंदर का गुस्सा और भड़क गया। उसने सूचीमुख को पकड़ लिया और पत्थर पर पटक दिया, जिससे उसकी वहीं मौत हो गई।
कहा गया है कि “जिस व्यक्ति के काम में बार-बार विघ्न आता हो या जो संकट में पड़ा हो, उससे बातचीत करना या सलाह देना बुद्धिमान व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। हारे हुए जुआरी या मूर्ख से अपना भला चाहने वाले को भी नुकसान उठाना पड़ता है।” यही बात सूचीमुख पक्षी ने अपने कर्म से सिद्ध कर दी।
इससे हमें यह सीख मिलती है कि “मूर्ख को उपदेश देना न केवल व्यर्थ है, बल्कि यह उसके क्रोध और प्रतिशोध को भी बढ़ा सकता है।” जैसे ज़िद्दी लकड़ी झुकाई नहीं जा सकती और पत्थर से छुरे का काम नहीं लिया जा सकता, वैसे ही अयोग्य व्यक्ति को समझाने का प्रयास व्यर्थ होता है। इसलिए कहा गया है, “जो संघर्षों से भरे मूर्खों को उपदेश देता है, उसे हमेशा नुकसान होता है। मूर्खों से अपनी बुद्धिमानी के चिह्न साझा करने से बचना चाहिए।” यही करटक का संदेश दमनक को था।
तो दोस्तों, यह थी आज की कहानी “सूचीमुख और बंदर की कथा।” अगली बार फिर मिलेंगे “सचेतन” के एक और नए एपिसोड में, जहाँ हम एक और प्रेरक कहानी लेकर आएंगे। तब तक के लिए धन्यवाद, खुश रहिए, और सदा सतर्क रहिए। नमस्कार!