सचेतन 2.102 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – राक्षसों द्वारा हनुमान जी की पूँछ में आग लगाना और उनका प्रतिकार

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हनुमान जी और लंका में पूंछ में आग की कथा

नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका “धार्मिक कथाएँ” सचेतन के इस विचार के सत्र में। आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं रामायण की एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक कथा – “राक्षसों द्वारा हनुमान जी की पूँछ में आग लगाना और उनका प्रतिकार।” तो चलिए, इस रोचक कथा की ओर बढ़ते हैं।

राक्षसों का हनुमान जी की पूँछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाना एक प्रसिद्ध घटना है, जिसे सुनकर हर कोई हनुमान जी की वीरता और साहस का प्रशंसक बन जाता है। कथा का आरंभ होता है जब हनुमान जी सीता माता की खोज में लंका पहुँचते हैं और उन्हें रावण की अशोक वाटिका में पाते हैं।

शांत और गहरी भावना चारों ओर थी, हनुमान जी को बंदी बना लिया गया और उन्हें रावण के सामने प्रस्तुत किया गया। रावण का छोटा भाई महात्मा विभीषण, जो धर्म और नीति का पालन करता था, ने रावण से कहा कि दूत का वध करना अनुचित है। रावण ने विभीषण की बात मानी और कहा, ‘तुम्हारा कहना ठीक है। दूत का वध नहीं करना चाहिए, परंतु इसे दंड अवश्य दिया जाना चाहिए। वानरों को अपनी पूंछ बहुत प्रिय होती है। अतः इसकी पूँछ में आग लगा दो।

रावण की आज्ञा से राक्षसों ने हनुमान जी की पूँछ में पुराने सूती कपड़े लपेट दिए और उस पर तेल छिड़ककर आग लगा दी। जैसे ही आग लगी, हनुमान जी का शरीर विशाल हो गया, और वे क्रोध से भर उठे। उनका मुख प्रातःकाल के सूर्य की भाँति तेजस्वी हो गया और वे जलती हुई पूँछ से ही राक्षसों को पीटने लगे।

हनुमान जी ने अपनी जलती हुई पूँछ से राक्षसों को मारा, परंतु राक्षसों ने उन्हें पुनः कसकर बाँध दिया। यह देख समस्त निशाचर प्रसन्न हो गए। वीरवर हनुमान जी ने विचार किया, ‘यद्यपि मैं बँधा हुआ हूँ, तो भी इन राक्षसों का मुझपर जोर नहीं चल सकता। मैं बन्धनों को तोड़कर ऊपर उछल जाऊँगा और इन्हें मारूँगा। मैं श्रीराम के हित के लिए यहाँ आया हूँ, तो भी ये दुरात्मा राक्षस मुझे बाँध रहे हैं। इससे मैं जो कुछ कर चुका हूँ, उसका बदला नहीं पूरा हुआ है।

हनुमान जी ने अपने बल और बुद्धि का प्रयोग करते हुए बन्धनों को तोड़ दिया और पूरी लंका में आग लगा दी। लंका की हर गली और घर में आग फैल गई, और राक्षसों में हाहाकार मच गया। हनुमान जी ने अपनी पूँछ की आग से लंका को जलाकर रावण के अहंकार को धूल में मिला दिया।

यह हनुमान जी और लंका में पूंछ में आग की कथा है यह “प्रकाश की गूंज” और भगवान हनुमान जी की उस अद्भुत कथा है, जब लंका में राक्षसों ने उनकी पूंछ में आग लगा दी थी। 

यह वह समय था जब हनुमान जी लंका में देवी सीता की खोज में लगे थे। उन्होंने रावण के अद्भुत महल और लंका की विशाल संरचना का अवलोकन किया था। लेकिन जब राक्षसों ने उन्हें पकड़ा और उनकी पूंछ में आग लगाने का निर्णय लिया, तो हनुमान जी ने सोचा…

मैं युद्धस्थल में अकेला ही इन समस्त राक्षसों का संहार करने में पूर्णतः समर्थ हूँ, किंतु इस समय श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिये मैं ऐसे बन्धन को चुपचाप सह लूँगा। ऐसा करने से मुझे पुनः समूची लंका में विचरने और इसके निरीक्षण करने का अवसर मिलेगा; क्योंकि रात में घूमने के कारण मैंने दुर्ग रचना की विधि पर दृष्टि रखते हुए इसका अच्छी तरह अवलोकन नहीं किया था। अतः सबेरा हो जाने पर मुझे अवश्य ही लंका देखनी है। भले ही ये राक्षस मुझे बारंबार बाँधे और पूँछ में आग लगाकर पीड़ा पहुँचायें। मेरे मन में इसके कारण तनिक भी कष्ट नहीं होगा।

और फिर क्या था, राक्षसों ने हनुमान जी को पकड़कर उनकी पूंछ में आग लगा दी और उन्हें लंका नगरी में घुमाने लगे। वे शंख और भेरी बजाकर हनुमान जी के अपराधों की घोषणा करते हुए उन्हें शहर में घुमा रहे थे।

शत्रुदमन हनुमान जी बड़ी मौज से आगे बढ़ने लगे। समस्त राक्षस उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। महाकपि हनुमान् जी राक्षसों की उस विशाल पुरी में विचरते हुए उसे देखने लगे। उन्होंने वहाँ बड़े विचित्र विमान देखे। परकोटे से घिरे हुए कितने ही भूभाग, पृथक्-पृथक् बने हुए सुन्दर चबूतरे, घनीभूत गृहपंक्तियों से घिरी हुई सड़कें, चौराहे, छोटी-बड़ी गलियाँ और घरों के मध्यभाग—इन सबको वे बड़े गौर से देखने लगे। सब राक्षस उन्हें चौराहों पर, चार खंभेवाले मण्डपों में तथा सड़कों पर घुमाने और जासूस कहकर उनका परिचय देने लगे।

इस बीच, लंका की राक्षसियों ने सीता जी को जाकर यह अप्रिय समाचार दिया कि हनुमान जी की पूंछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाया जा रहा है। यह सुनकर सीता जी शोक में डूब गईं और अग्निदेव की उपासना करने लगीं।

सीता जी (शांत और दृढ़ स्वर) कहती हैं अग्निदेव! यदि मैंने पति की सेवा की है और यदि मुझमें कुछ भी तपस्या तथा पातिव्रत्य का बल है तो तुम हनुमान के लिये शीतल हो जाओ। यदि बुद्धिमान् भगवान् श्रीराम के मन में मेरे प्रति किंचिन्मात्र भी दया है अथवा यदि मेरा सौभाग्य शेष है तो तुम हनुमान् के लिये शीतल हो जाओ। यदि धर्मात्मा श्रीरघुनाथजी मुझे सदाचार से सम्पन्न और अपने से मिलने के लिये उत्सुक जानते हैं तो तुम हनुमान् के लिये शीतल हो जाओ। यदि सत्यप्रतिज्ञ आर्य सुग्रीव इस दुःख के महासागर से मेरा उद्धार कर सकें तो तुम हनुमान् के लिये शीतल हो जाओ।

और सचमुच, सीता जी की पवित्रता और उनकी प्रार्थना के बल से अग्निदेव हनुमान जी की पूंछ के लिए शीतल हो गए। हनुमान जी की पूंछ में जलते हुए भी उन्हें कोई कष्ट नहीं हुआ और उन्होंने लंका को जलाने का निर्णय लिया।

हनुमान जी ने अपनी पूंछ को लहराते हुए लंका में आग लगा दी। जल्द ही पूरी लंका धधक उठी, और राक्षसों का नगर जलने लगा।

इस प्रकार, हनुमान जी ने अपनी शक्ति और बुद्धिमता का परिचय दिया और लंका को जलाकर रावण को संदेश दिया कि श्रीरामचन्द्रजी की शक्ति अपरमित है। यह कथा हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए धैर्य, साहस और बुद्धिमता का मार्ग अपनाना चाहिए।

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