सचेतन, पंचतंत्र की कथा-42 : हिरण्यक और लघुपतनक की कथा

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-42 : हिरण्यक और लघुपतनक की कथा

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मित्रता सुबह और दोपहर की छाया के समान है – शुरुआत में छोटी, लेकिन समय के साथ बढ़ती जाती है।

पिछले सत्र में हमने सुना की दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर के पास एक घना बरगद का पेड़ था, जहां लघुपतनक नाम का बुद्धिमान कौआ रहता था। एक दिन उसने देखा कि एक बहेलिया जाल और चावल लेकर पेड़ की ओर बढ़ रहा है। सतर्क लघुपतनक ने तुरंत अन्य पक्षियों को चेतावनी दी कि यह बहेलिये का जाल है और चावल विष समान हैं। सभी पक्षियों ने उसकी बात मानी और सुरक्षित रहे। उसी दौरान, चित्रग्रीव नामक कबूतरों का राजा अपने झुंड के साथ वहां आया। नीचे बिखरे चावल देखकर वे लालच में पड़ गए और कौए की चेतावनी को अनसुना कर दिया। जैसे ही उन्होंने चावल खाना शुरू किया, वे सभी बहेलिये के जाल में फंस गए।

चित्रग्रीव ने संकट में धैर्य से काम लिया और अपने साथियों को एकजुट किया। उन्होंने मिलकर अपने पंख फड़फड़ाए और जाल को लेकर उड़ गए। बहेलिया उन्हें रोकने में असफल रहा। चित्रग्रीव ने समझदारी दिखाते हुए अपने मित्र हिरण्यक चूहे की मदद लेने का निश्चय किया। हिरण्यक ने पहले सभी कबूतरों को मुक्त किया और फिर चित्रग्रीव को आजाद किया। इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि लालच और अनदेखी चेतावनी अनर्थ को बुलाते हैं, जबकि एकता, धैर्य और सच्ची मित्रता किसी भी संकट का समाधान कर सकती है। सच्चा मित्र विपत्ति के समय ही पहचाना जाता

“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ के इस नए एपिसोड में। आज की कहानी है ‘हिरण्यक और लघुपतनक’ की, जो हमें सच्ची मित्रता, विश्वास, और सदाचारी सेवा का महत्व सिखाती है। चलिए, शुरू करते हैं।”

यह सब देखकर पास के पेड़ पर बैठा लघुपतनक नाम का कौआ हिरण्यक की बुद्धिमानी से बहुत प्रभावित हुआ। उसने सोचा: “इस चूहे की बुद्धि और साहस अद्भुत है। मुझे इसे अपना मित्र बनाना चाहिए।”

कौआ पेड़ से नीचे उतरा और हिरण्यक के किले के पास जाकर बोला: “हे हिरण्यक, मैं लघुपतनक नाम का कौआ हूँ। मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ।”

हिरण्यक ने जवाब दिया: “अरे, तू मेरा शत्रु है। मैं तेरा भोजन हूँ। हम दोनों के बीच मित्रता कैसे हो सकती है?”

कौआ ने कहा: “अरे हिरण्यक! मैंने तुझसे कभी मुलाकात तक नहीं की, फिर तेरी मुझसे शत्रुता क्यों?”

हिरण्यक ने शांत स्वर में उत्तर दिया: “वैर दो प्रकार के होते हैं – सहज वैर और नकली वैर। तू मेरा सहज वैरी है। कहा भी गया है:
‘नकली दुश्मनी नकली गुणों से खत्म हो जाती है, पर सहज वैर बिना मरे खत्म नहीं होता।'”

कौआ उत्सुक होकर बोला: “मैं इन दोनों प्रकार की शत्रुताओं का लक्षण जानना चाहता हूँ। बता, सहज और नकली शत्रुता में क्या अंतर है?”

शत्रुता के प्रकार का विवरण

हिरण्यक ने समझाया:
“किसी कारण से उत्पन्न शत्रुता नकली होती है। योग्य उपचार करने से यह खत्म हो जाती है। लेकिन स्वाभाविक शत्रुता कभी समाप्त नहीं होती। जैसे:

  • नेवला और सर्प,
  • घास खाने वाले और मांसाहारी,
  • जल और अग्नि,
  • देव और दैत्य,
  • कुत्ते और बिल्ली।

इनमें किसी ने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है, फिर भी वे स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे को सताते हैं।”

कौआ गंभीरता से बोला: “यह तो वैर अकारण है। लेकिन मेरी बात सुन,
‘कारण से ही मित्रता होती है और कारण से ही शत्रुता। बुद्धिमान को हमेशा मित्रता की ओर ध्यान देना चाहिए। शत्रुता से कुछ नहीं मिलता। इसलिए, मित्र धर्म निभाते हुए तू मेरे साथ मित्रता कर।'”

मित्रता पर चर्चा

हिरण्यक ने मुस्कुराते हुए कहा: “तेरे साथ मेरी मित्रता कैसे हो सकती है? सुन –
‘मित्र होते हुए भी एक बार दुश्मनी करने वाले के साथ सुलह करना खच्चर के गर्भ की तरह है, जो असंभव है।’ और यह मत सोच कि गुणवान होने से दुश्मनी नहीं होगी। कहा गया है:

  • व्याकरण शास्त्र बनाने वाले पाणिनि को सिंह ने मार डाला।
  • जैमिनि मुनि को हाथी ने कुचल दिया।
  • समुद्र के किनारे मगर ने छंद-शास्त्र के ज्ञानी पिंगल को खा लिया।

गुणहीन और क्रोधी जीवों को गुणों से कोई मतलब नहीं होता।”

कौआ समझाते हुए बोला: “यह सही है। लेकिन सुन: ‘उपकार से मित्रता होती है। भय और लालच से मूर्खों की मित्रता होती है। और सज्जनों की मित्रता केवल भेंट से भी हो सकती है।’

दुर्जन मिट्टी के घड़े की तरह है, जो आसानी से टूटता है और जुड़ता नहीं। लेकिन सज्जन सोने के घड़े के समान है, जिसे तोड़ना कठिन है, और जोड़ना सरल।”

सज्जनों की मित्रता का महत्व

कौआ आगे बोला: “सज्जनों की मित्रता ईख की तरह है, जिसका रस धीरे-धीरे बढ़ता है। यह स्थायी होती है।  सज्जन लोग अपने विपरीतों के प्रति भी उदार होते हैं। और उनकी मित्रता सुबह और दोपहर की छाया के समान है – शुरुआत में छोटी, लेकिन समय के साथ बढ़ती जाती है।

कहानी की शिक्षा

“दोस्तों, कौआ और हिरण्यक की इस चर्चा से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. शत्रुता और मित्रता का विवेक: कारण और स्वभाव के आधार पर संबंध बनाए जाएं।
  2. मित्रता का महत्व: सज्जनता और उपकार से मित्रता स्थायी बनती है।
  3. संबंधों में सावधानी: दुर्जनों के साथ मित्रता न करें, क्योंकि वह क्षणिक होती है।

याद रखें, विवेक से बनाई गई मित्रता जीवन को सुखद बनाती है।”

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